Published By:धर्म पुराण डेस्क

वास्तु शास्त्र, भूमि का कोई भी कोना यदि कम-ज्यादा हो तो पारिवारिक परेशानियों में वृद्धि होती है।

वास्तु शास्त्र में उल्लेख है कि प्राकृतिक रूप से यदि भूमि की आठ दिशाओं का परिणाम सम और चौरस हो तो वह भूमि उत्तम है। भूमि का कोई भी कोना यदि कम-ज्यादा हो तो पारिवारिक परेशानियों में वृद्धि होती है। अतः जमीन के आकार का निर्णय तथा तदनुसार शुभाशुभ फल अवश्य ही विचार लेना चाहिए|

1. यदि भूमि चौरस तथा समकोण (90°) कोण के आकार वाली अर्थात् वर्गाकार या आयताकार है, तो वह भूमि उत्तम, सर्वसुख आनंद दायी होती हैं तथा धन वैभव आयु एवं आरोग्य में वृद्धि करने वाली है।

2. यदि भूमि त्रिकोण आकृति की है तो यह परिवार के लिए अशुभ है। इसमें स्वामी को मानसिक संताप, अदालत की परेशानियां तथा कार्यों में अपयश प्राप्त होता है।

3. ईशान दिशा का कोण 90° से कुछ अधिक होने पर सुख समृद्धि दायक व शुभ है।

4. वायव्य दिशा का कोण 90° से कुछ अधिक होने पर अशुभ तथा हिंसात्मक कार्यों को कराने वाला है।

5. नैऋत्य दिशा का कोण 90° से कुछ अधिक होने पर अशुभ है। स्वामी की राक्षसी, आसुरी प्रवृत्तियों में वृद्धि होती है। 

6. आग्नेय दिशा का कोण 90° से कुछ अधिक रहने पर चिंताओं में वृद्धि होती है।

7. भूमि वर्तुलाकार अर्थात गोलाकार होने पर स्वामी का स्वभाव अस्थिर प्रवृत्ति का होता है तथा सफलता नहीं मिलती।

8. पांच कोने वाली जमीन दुख उत्पन्न करती है।

9. यदि भूखण्ड प्रवेश करते समय कम चौड़ा तथा पीछे की ओर का भाग अधिक चौड़ा हो तो उसे गोमुखी भूखण्ड कहते हैं !


 

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