Published By:धर्म पुराण डेस्क

पेट के रोगों में अतिप्रभावी

लशुनादि वटी:

निर्माण विधि -

छिलका निकाला हुआ लहसुन, सफेद जीरा, शुद्ध गंधक, सेंधा नमक, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल तथा घी में भुनी हुई हींग। प्रत्येक बराबर मात्रा में लेकर इन सबको यथाविधि कूटकर चूर्ण बनाकर कपड़े से छान लें और नींबू के रस में 3 दिन तक घोंटकर 250-250 मि. ग्राम की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लें। 

विशेष:

छिले हुए लहसुन को 3 दिन तक छाछ (मठा) में भिगोकर रखने के बाद निकालकर स्वच्छ जल से धोकर गोली बनाने के लिए लेना चाहिए।

मात्रा अनुपात: 1-3 गोली भोजन करने के बाद गर्म जल से लें।

गुण और उपयोग:

यह पेट में वायु (गैस) की उत्तम औषधि हैं। इसके सेवन से मंदाग्नि, गैस, पेट दर्द आदि में अच्छा लाभ होता है। यह दीपन, पाचन है। अजीर्ण के कारण पेट में वायु भर जाने से डकार आने लगती है। इस वायु को पचाने तथा डकारों को बंद करने के लिए यह वटी अत्यंत उपयोगी है। 

पेट में वायु कुपित होकर उर्ध्व गति हो जाती है, जिससे डकार आने लगती हैं। दिमाग काम करने वालों को यह शिकायत अधिक होती है। 

इसमें जी मिचलाना, सिर भारी रहना, दिल धड़कन बढ़ना, भ्रम, चक्कर, खट्टी डकार, पेट फूलना, अफारा आदि लक्षण होते हैं। इस बटी (लहसुन वटी) के प्रयोग से उर्ध्ववात (डकारों) का शीघ्र शमन हो जाता है।


 

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