 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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भगवान शिव के परम भक्त थे श्वेत मुनि। वे पर्वतों की निर्जन गुफाओं में अटल आत्मविश्वास से भरे अपनी आयु के उत्तरार्द्ध में शिव उपासना करते रहते थे।
एक दिन वे रुद्राध्यायी का पाठ कर रहे थे कि सामने एक विकराल आकृति देख चौंक पड़े। देखा यमदूत उन्हें लेने के लिए पहुंचा है। श्वेत मुनि ने पहले उसे नमस्कार किया और फिर अपनी पूजा में लीन हो गए। यमदूत ने उन्हें टोका।
पूजा में निरन्तर विघ्न अनुभव कर मुनि ने यमदूत को समझाया - मैं मृत्युंजय महाकाल की आराधना कर रहा हूं। ऐसे में विघ्न करना ठीक नहीं है, लेकिन आज्ञा से बंधा यमदूत सुनने को तैयार न था । यमदूत ने मुनि से कहा शिवलिंग शक्ति - शून्य है। पाषाण में शिव की कल्पना करना मूढ़ता है। अतः तत्काल चलने की तैयारी करो। अब मेरे लिए यहां प्रतीक्षा करना कठिन है।
श्वेत मुनि दूत के तर्क से सहमत नहीं थे। बोले-पाषाण भी परमात्मा ही है, क्योंकि भगवान तो कण-कण में व्यास है। मुनि का इतना कहना था कि दूत ने तलवार उठा ली। तलवार उठाते ही श्वेत मुनि ने अटल विश्वास के परिणामस्वरूप तत्क्षण पाषाण से भगवान प्रकट हो गए।
शिव को साक्षात देख यमदूत भाग खड़ा हुआ। मृत्यु को सम्मुख पाकर भी श्वेत मुनि ने अपने विश्वास को डिगने नहीं दिया, अतः पुण्य के भागी बने और यश के भी। संदेश दिया विश्वास रखो और अपने कर्म पर अटल रहो, परिणाम में विजय ही मिलेगी।
दरअसल, विश्वास अटल हो तो पाषाण से भी परमात्मा प्रकट हो जाता है। विश्वास बड़ी पूंजी है। कोई भी काम करें यदि विश्वास रखने की कला आ गई तो विजय श्री मिलकर ही रहेगी।
 
 
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