 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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विष कन्या योग एक ज्योतिषीय योग है जो भारतीय ज्योतिष शास्त्र में प्रयुक्त होता है। इस योग के अनुसार, अगर किसी जातक की कुंडली में शनि ग्रह अपने स्वामित्व भाव में या किसी महत्वपूर्ण ग्रह के साथ संयुक्त रूप से स्थित होता है और इसका शुभ बल कम होता है, तो ऐसे जातक को विष कन्या योग कहा जाता है।
इस योग के अनुसार, विष कन्या योग वाले जातक कन्याएं गर्भाशय संबंधी समस्याओं का सामना कर सकती हैं। इसके साथ ही, यह योग आर्थिक समस्याओं, निराशा, दुर्भाग्य, आपत्तियों, विवादों और आपातकालिक परेशानियों का भी संकेत करता है।
'विष कन्या योग' में जन्मी कन्याएं बहुत ही क्रोधी स्वभाव की तेज और चालाक होती हैं। यदि ये किसी से चिढ़ जाएं तो उसका सर्वनाश करके ही चैन लेती है। जन्मपत्रिका में विष कन्या योग विभिन्न भावों में राहु और क्रूर ग्रहों से निर्मित होता है।
1). लग्न में शनि हो, पंचम भाव में सूर्य हो और नवम भाव में मंगल हो तो, 'विष कन्या योग' होता है। इन स्थानों में राशि कोई भी हो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता।
2). राहु के नक्षत्र - शतभिषा नक्षत्र की द्वितीया तिथि तथा रविवार को जन्म एवं शतभिषा नक्षत्र की सप्तमी तिथि रविवार को जन्म लेने वाली विषकन्या होती है।
3). आश्लेषा नक्षत्र की द्वितीया तिथि तथा मंगलवार को जन्म लेने वाली आश्लेषा नक्षत्र में, सप्तमी तिथि और मंगलवार के योग में उत्पन्न कन्या आश्लेषा नक्षत्र और द्वादशी तिथि और मंगलवार के योग में जन्म लेने वाली कन्या विष-कन्या होगी। इसके अलावा कुछ अन्य नक्षत्रों, तिथि आदि में जन्मी कन्याएँ भी विषकन्या योग से प्रभावित होती हैं।
इस योग के प्रभाव को कम करने के लिए, जातक को शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए सत्कार्य, उपासना और ध्यान करने की सलाह दी जाती है। कुछ ज्योतिषी उपायों का भी प्रयोग करके इस योग के दुष्प्रभाव को कम करने की कोशिश करते हैं। उचित उपायों का अनुसरण करने से जातक को योग्य फल प्राप्त हो सकता है।
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि ज्योतिष विषय में विशेषज्ञता और व्यापक अनुभव की आवश्यकता होती है। यदि आपको अपनी जन्म कुंडली या किसी ज्योतिषीय मुद्दे के बारे में अधिक जानकारी चाहिए, तो एक प्रमाणित ज्योतिषाचार्य से संपर्क करना सर्वोत्तम होगा।
 
 
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