वर्तमान समय में, जल संकट एक गंभीर समस्या बन चुकी है। अधिकांश भारतीय राज्यों में, वर्षा के खत्म होते ही जल संकट की समस्या बढ़ती जा रही है। गर्मी के मौसम में जल संकट का खतरा बढ़ जाता है।
हमने अपनी पूर्वजों की जल संस्कृति को तिलांजलि दे दी है, और यह समस्या बढ़ गई है क्योंकि हम अपने जल संसाधनों का सही तरीके से प्रबंधन नहीं कर रहे हैं।
जल संकट की दो पहलुओं की चुनौती:
वर्तमान में, जल संकट हमारे सामने दो प्रमुख चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहा है।
पेयजल की कमी: बहुत से स्थानों पर पेयजल की कमी है। लोग बहुत दूर जाकर पानी की खोज करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
जल की गुणवत्ता का बिगड़ना: वह जल जो हमारे पास है, उसकी गुणवत्ता भी दिन पर दिन कम हो रही है। यह समस्या हमारे स्वास्थ्य को खतरे में डाल रही है।
समाधान: वर्षा जल संचयन
इस समस्या का समाधान वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) में है। जैसे कि कहावत है, "बूँद-बूँद से सागर भरता है," वर्षा जल संचयन के तकनीक से बारिश की बूँदें सहेजी जा सकती हैं और उनका उपयोग किया जा सकता है।
उदाहरण: श्यामजी जाधव की कहानी
एक उदाहरण है श्याम जी जाधव की कहानी, जो गुजरात के किसान हैं। वे कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद वर्षा जल संचयन के प्रयास कर रहे हैं। उनकी सौराष्ट्र लोकमंच संस्था ने साधारण वर्षा जल संरक्षण संयंत्रों का प्रयोग कर गुजरात के लगभग 3 लाख कुओं और बोरवेलों को बचाया है।
निष्कर्ष:
जल संकट को समझने, समझाने, और इसे सहेजने का समय आ चुका है। हमें अपने पूर्वजों के संजीवनी रास्तों पर चलना होगा, ताकि हम बूँद-बूँद पानी को समृद्ध बना सकें और आने वाले पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित जल संग्रहण तंत्र बना सकें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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