 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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क्यों हम होश पूर्ण नहीं है ..
मूर्च्छा-
मूर्च्छा से हमारा मतलब उस बेहोशी से नहीं है जिसमें शरीर संज्ञाशून्य हो जाता है। शरीर के बेहोश होने को तो मूर्च्छा कहते ही हैं साथ ही एक प्रकार की मूर्च्छा और भी होती है जिसमें शरीर होश में रहता है और हम मूर्च्छा में होते हैं, हमारा मन मूर्च्छा में रहता है जैसे कुछ लोग शरीर से सोये हुए होने पर भी मन से जागे हुए रहते हैं उसी प्रकार कुछ लोग शरीर से जागे हुए रहने पर भी मन से सोये हुए रहते हैं और ऐसे ही लोग आजकल ज्यादातर पाये जाते हैं।
ऐसे लोग मूर्च्छा में रहते हुए ही अपना सब कामकाज करते रहते हैं। एक व्यक्ति गाड़ी ड्राइव करता है तो वह बातें भी करता रहता है और गाड़ी भी चलाता रहता है। वही व्यक्ति जब शुरू-शुरू में गाड़ी चलाना सीखता था तब उसकी यह हालत थी कि नज़र सड़क से हटा भी नहीं पाता था, चौकन्ना रहता था कि कहीं किसी से टकरा न जाए। पर धीरे-धीरे वह कुशल होता गया, अभ्यस्त होता गया और अवचेतन मन के बल पर गाड़ी चलाने लगा।
गेयर बदलना, स्टेयरिंग घुमाना और आवश्यकता पड़ने पर ब्रेक लगाना आदि सबकुछ आदतन करने लगा। जब अवचेतन के भरोसे सब कुछ छोड़कर काम किया जाता है तो मन दूसरे सोच विचार में लग जाता है। अवचेतन से हम राम राम जपते रहते हैं, मन कहीं और उड़ान भरता रहता है। यह जो स्थिति है इसे मूर्च्छा कहते हैं।
'मन का कहीं और मोहित हो जाना, मोह में पड़ना और चलायमान बना रहना मूर्च्छा है। बिना सोचे समझे आदतन और अभ्यासवश काम का किया जाना मूर्च्छा है। हम इसे कुशल होना समझते हैं, दक्ष होना समझते हैं पर आटोमेटिक क्रिया करना, अत्यधिक कुशलता से यन्त्रवत कार्य करना मशीन हो जाना ही है और मशीन जैसी कुशलता होना कम्प्युटर जैसा दक्ष होना जो कि बहुत ही मुश्किल बल्कि असम्भव ही है, आत्मोन्नति नहीं, बौद्धिक विकास नहीं बल्कि मनुष्य से मशीन हो जाना है।
दक्ष हो जाना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं अगर वह दक्षता मशीन जैसी यान्त्रिक और चेतना रहित हो। यन्त्र जैसा कुशल लेकिन जड़वत् और यांत्रिक होना उन्नति नहीं मानी जा सकती। अवचेतन मन और चेतन मन में तालमेल रहे, मन अपने कार्य के प्रति एकाग्र और जागरुक रहे, सतर्क रहे एवं हम जो कुछ भी कार्य करें वह होशपूर्वक, विचारपूर्वक और पूरे मनोयोग से करें तो ही जीवन में उन्नति कर सकेंगे। इसके लिए हमें मानसिक मूर्च्छा त्यागनी होगी।
बुद्धिमानी और मूर्खता में केवल इतना सा फर्क होता है कि बुद्धिमान काम करने के पहले उसके भले बुरे पर विचार कर लेता है और मूर्ख मूर्च्छा वश काम पहले कर जाता है बाद में सोचता है कि यह क्या कर बैठा !
 
 
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