भाग्य निश्चित ही एक स्थान रखता है लेकिन यह भाग्य है क्या यह भाग्य हमारे ही प्रारब्ध के कर्म का फल है. हमारे प्रारब्ध के कर्म फल ग्रह नक्षत्र तारों की विभिन्न स्थितियों के रूप में हमारी कुंडली में मौजूद होते हैं यह हमें अपने अनुसार नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं.
हमारे प्रारब्ध के कर्म फल के अनुसार ही हमें जन्म स्थान जन्म ग्रह और रिश्ते नाते मिलते हैं लेकिन हम अपने वर्तमान के कर्मों के आधार पर अपनी भाग्य की रेखाओं को बदल सकते हैं।
विद्या की रेखा बनायी है गुरुकुल में पढ़ रहे एक बालक को धातु रूप ठीक से याद नहीं हो पाते थे. आचार्य उसे हर दिन डांटते-पीटते. एक दिन बालक ने छड़ी की मार के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो आचार्य ने कहा- "तू कैसे पढ़ेगा? तेरे हाथ में विद्या की रेखा ही नहीं है."
सुन कर उदास बालक ने पूछा- "आचार्य महोदय, विधाता हाथ पर विद्या की रेखा कहां बनाते हैं?"
आचार्य ने बालक के हाथ पर अंगुली रख कर बता दिया. फिर, वे अन्य छात्रों को पढ़ाने में व्यस्त हो गये. थोड़ी देर बाद उनका ध्यान बालक की तरफ गया. उन्होंने देखा कि बालक का हाथ खून से सना है. चकित होकर उन्होंने पूछा- “अरे! इतना रक्त क्यों बह रहा है?"
बालक ने कहा- "मैंने अपने हाथ में विद्या की रेखा स्वयं ही बना ली है जिसे किसी कारण से विधाता ने नहीं बनाया था."
बच्चे की मासूमियत और पढ़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति देख कर आचार्य समझ गये कि यह बालक निश्चय ही महान ज्ञानी बनेगा. उनका अनुमान सही सिद्ध हुआ. उस बालक ने बड़े होकर संस्कृत का पहला व्याकरण लिखा. आज उस बालक को संसार आचार्य पाणिनि के नाम से जानता है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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