हम धर्म और संस्कृति ही नहीं, मनुष्य के स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याओं और उनके समाधान के विषय में भी उपयोगी जानकार लेकर आते हैं. शरीर के स्वस्थ रहने पर ही मनुष्य धर्म का पालन कर सकता है. स्वस्थ शरीर से ही कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन हो सकता है. भारत ने विश्व को आयुर्वेद के रूप में विश्व को बहुत अनूठी सौगात दी है. आयुर्वेद के अनुसार पेट की खराबी ही अधिकतर रोगों की जड़ है. लेकिन पेट की खराबी की जड़ क्या हो सकती है, इस पर हम इस एपिसोड में विचार करेंगे.
आज के दौर में पेट से सम्बंधित बीमारियाँ लगातार बढ़ रही हैं. इनमें से अधिकांश का कारण पेट साफ़ न होना है. पेट साफ़ करने की दवाओं और चूर्ण बनाने वालों की पों-बारह हो गयी है. डॉक्टर्स धड़ाधड़ एंडोस्कोपी, कोलोनोस्कोपी और अन्य दूसरी जांचें करके और महंगा इलाज करके चाँदी काट रहे हैं. सैंकड़ों तरह के अनेक फ्लेवर वाले लेग्जेटिव बाजार में आ गये हैं. इनकी टीवी और अखबारों में जमकर विज्ञापनबाजी की जा रही है.
आयुर्वेद औषधियों के निर्माता भी भी पेट के विकार दूर करने के लिए बहुत प्रकार की दवाएं बना रहे हैं. यह बात बिल्कुल सही है, कि पेट का साफ़ न होना पेट ही नहीं अनेक रोगों को जन्म देता है. कहा तो यह भी जाता है, कि पेट ही सारी बीमारियों और स्वास्थ्य की जड़ है. इसलिए पेट को साफ़ रखने की सलाह हजारों साल से दी जाती रही है. पेट में जो खराबियाँ आ रही हैं, उनमें खानपान संबंधी कारण तो मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं ही, लेकिन एक और कारण की तरफ भी यदि ध्यान दिया जाए, तो यह बात बहुत सही मालूम पड़ती है. यह सुनकर शायद आपको आश्चर्य हो, कि इसका बहुत बड़ा कारण वेस्टर्न कोमोड्स भी मुमकिन है.
हालाकि यह बात कुछ लोगों को पढ़ने और सुनाने में अटपटी और अजीब लग सकती है, लेकिन इस पर यदि भारत के प्राचीन आयुर्विज्ञान की रोशनी में कुछ विचार किया जाए, तो यह सही सिद्ध हो सकती है. भारत के प्राचीन ग्रंथों में हर कार्य करने के लिए उपयुक्त आसन बताया गया है. शास्त्रों में उकडू बैठकर मल त्याग करने का निर्देश दिया गया है. इसका कारण यह है, कि इस आसन में बैठकर मल त्याग करने से पेडू, पेट, नाभिमंडल, आँतों आदि पर बाहरी दबाव पड़ता है. यह मल को बाहर निकालने में सहायक होता है. पेट में पड़ी वायु भी इस दबाव से मलद्वार की ओर सरकती है, जिससे अधोवायु की प्रवृत्ति और हाजत होती है. घुटनों का दबाव पसलियों और आमाशय में पड़ने से ऊपरी भाग का वायु ऊपर की ओर जाता है, जो डकार के रूप में बाहर आता है.
आज लगभग हर घर में वेस्टर्न कोमोड्स लगाने का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है. जिन लोगों को घुटनों, कमर आदि में समस्या है, या जो लोग बुजुर्ग हैं, उनके लिए तो वेस्टर्न कोमोड्स आवश्यक हैं, लेकिन सामान्य स्वस्थ लोगों को देशी कोमोड्स का ही उपयोग करना चाहिए. ऐसा करके देखा जा सकता है, जो पेट सम्बन्धी विकारों को कम करने में निश्चय ही सहायक होगा.
उकड़ू बैठकर क्या क्या नहीं करें
अब हम बताते हैं, कि हमारे बुजुर्गों ने अपने अनुभव के आधार पर कुछ कार्य ऐसे बताये हैं, जिन्हें उकड़ू बैठकर नहीं करना चाहिए. इसके पीछे भी मुख्य कारण स्वास्थ्य ही है. इन कार्यों में भोजन, स्वध्य्याय, जप, होम, दान, तर्पण आदि शामिल हैं. इन कामों को उकडू बैठ कर करने से मल-मूत्र आदि होने की सम्भावना बढ़ जाती है, जो अशुद्धता का कारण होता है. इसलिए इस आसन को इन कार्यों में वर्जित किया गया है.
उकडू बैठ कर नहाने की भी मनाही की गयी है. इससे टांगों के पिछले भाग की सफाई ठीक प्रकार से नहीं हो पाती. साबुन, झाग और मेल आदि टांगों के पिछले भाग में लगा रह जाता है. इसके अलावा इस आसन से वायु नीचे की ओर जाती है और मल-मूत्र त्याग की इच्छा होती है. इसलिए उकडू बैठकर स्नान नहीं करना चाहिए. इन बातों को अपनी दिनचर्या में अपनाकर इनकी सच्चाई को आज़माकर देखने में क्या क्या बुराई है? यदि अपने कामों में शरीर की कुछ मुद्रा बदलने भर से हम स्वस्थ और निरोग रह सकते हैं, तो इसे अपनाने में हमें संकोच नहीं होना चाहिए.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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