आज हम शिव के द्वारा बताए गए महायोग के रहस्यों पर और ज्यादा चर्चा करेंगे| इस महायोग से होने वाली क्रियाओं, मुद्राओं, अनुभूतियों के बारे में चर्चा करेंगे| जब शक्तिपात से हमारी आंतरिक शक्ति जागृत होती है तो क्या होता है? कौन-कौन से अनुभव आते हैं? और हम कैसे जाने कि हमारी कुंडलिनी जागृत हो गई है? हमें कैसे पता चलेगा कि शक्तिपात हो गया?
यह सवाल आम तौर पर साधकों के जहन में आते हैं और इन सभी सवालों का जवाब शक्तिपात के द्वारा कुंडलिनी जागरण से स्वतः ही मिल जाता है| फिर भी हमें भ्रम रहता है और कई साधक पूछते हैं कि वास्तव में किस तरह की अनुभूतियां होनी चाहिए? अनुभूतियों का क्या महत्व है और जो अनुभूतियां होती हैं उनका क्या अर्थ है?
सभी साधकों के जहन प्रत्यक्ष अनुभूति को लेकर प्रश्न खड़ा होता है| वह हर अनुभूति का अर्थ जानना चाहते हैं| वह पता करना चाहते हैं कि खास तरह की अनुभूति क्रिया बंध मुद्रा उनकी साधना की किस स्थिति का वर्णन करती है?
एक और बात यहां पर साधकों के बीच में चलती है कि इन अनुभूतियों के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं की जानी चाहिए| कई साधकों को अनुभूतियां होती हैं| कई साधकों को क्रियाएं होती हैं|
कई साधकों को नहीं भी होती| जरूरी नहीं है कि कुण्डलिनी क्रियाओं के माध्यम से ही अपनी उपस्थिति का बताए| किसी-किसी में कला का उदय हो सकता है, किसी में क्रियाएं हो सकती हैं, भक्तिभाव का उदय हो सकता है| अलग-अलग साधकों में उनकी पात्रता, वर्तमान स्थिति, प्रगति के अनुसार अनुभव प्रकट होते हैं|
जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति को क्रिया हो| लेकिन आम पर महायोग में शक्तिपात के बाद क्रियाओं की अनुभूति का महत्व बताया गया|
शक्ति की उपस्थिति का पता चलना| प्राण का प्रवाह तेज होना| सहज रूप से साधकों में अमूमन आती ही है| शुरुआत में साधकों की तर्क बुद्धि मन यह सवाल खड़ा करता है कि यह अनुभव वास्तव में कुंडलिनी शक्ति के माध्यम से कराए जा रहे हैं या हमारी मन की कल्पनाएं हैं? यह काल्पनिक अनुभव हैं, मन के घोड़े हैं जो दौड़ रहे हैं?
लेकिन धीरे-धीरे जब वह उन अनुभूतियों की गहराइयों में जाता है तो पता चलता है कि ये अनुभूतियां मन की कल्पनाएं नहीं हैं| वह अपने मन से ऐसे अनुभव प्रकट नहीं कर सकता जिनके बारे में वह जानता तक नहीं है|
ऐसे कौन से अनुभव हैं जो आम तौर पर साधकों को होते हैं?
मदर पावर यह जानती है कि आपको किन अनुभूतियों की जरूरत है| उनके माध्यम से कुंडलिनी को ज़रूर कोई परिवर्तन करना है| रूपांतरण की किसी प्रक्रिया को घठित करना है, और उनकी आपके शरीर को आवश्यकता है| आपके मन बुद्धि चित्त और अहंकार को उनकी जरूरत है| आपके रूपांतरण को उनकी जरूरत है| आप के संस्कारों के विसर्जन के लिए उन क्रियाओं और मुद्राओं की आवश्यकता है|
गुरुदेव द्वारा दिये गये मंत्र का आप जाप करते रहें| सुबह और शाम निश्चित समय भोजन से पहले खाली पेट आप बैठें| इसके बाद क्या होना है इसका निर्णय स्वयं शक्ति करेगी आप नहीं| इन अनुभवों के लालच में आप ना पड़े और इनकी इच्छा न करें|
अनुभूतियों का कोई बहुत महत्व नहीं है यदि वह इच्छा करके हासिल किए जाएं| हलाकि चाह कर इस तरह के अनुभव उत्पन्न नहीं किए जा सकते| फिर भी मन की कल्पनाओं से कुछ अनुभूतियां जरूर हो जाती हैं| जैसे विभिन्न चक्रों पर हम ध्यान करते हैं तो थोड़े-थोड़े अनुभव उन चक्रों पर हो जाते हैं| क्रिया की प्रतिक्रिया जरूर होती है|
कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है, जब शक्तिपात हो जाता है, तो फिर व्यक्ति को स्वयं कुछ नहीं करना है, उससे तो सिर्फ बैठना है, सुबह शाम निश्चित समय पर, अपने आपको गुरु रुपी कुंडलिनी शक्ति के सामने समर्पित कर देना है| उसके सामने उपस्थित हो जाना है फिर उसके ऊपर छोड़ देना है| क्या हो रहा है क्या नहीं हो रहा?
महादेव बताते हैं कि शक्तिमान गुरु के अनुग्रह से अंतर शक्ति जागृत होती है| आत्मशक्ति उद्बोधित हो जाती है और प्राण आधार में रुक जाता है| जब प्राण अधार चक्र में यानी मूलाधार चक्र में रुकता है तो साधक का शरीर कांपने लगता है| वाइब्रेशन होने लगता है|
जब शक्तिपात होता है तो पहला अनुभव आम तौर पर साधकों को वाइब्रेशन का होता है| मूलाधार में प्राण रुकने के कारण साधक या योगी आनंदित होकर नृत्य करने लगता है| डांस, नृत्य करने की इच्छा जागृत होती है| कुंडलिनी जागृती के बाद आम तौर पर ज्यादातर साधकों के अंदर नृत्य करने की इच्छा होती है| शरीर को हिलाने-डुलाने की इच्छा होती वाइब्रेशन होता है|
ऐसा क्यों होता है? आधार चक्र में वायु के निरोध होने से होता है| सारा विश्व देखने लगता है| आधार चक्र में वायु का निरोध होने से सारा विश्व दिखने लगता है| क्योंकि कुंडलिनी शक्ति मूलाधार में ही निवास करती है|
उसकी स्थिति के कारण सृष्टि का आधार मूलाधार है| पूरी सृष्टि किसी ना किसी आधार पर स्थित है| वह आधार भले ही हमें नहीं दिखता है| लेकिन उस आधार को ही हम शेषनाग कहते हैं| शेषनाग क्या है जो दिखाई देता है उसके अलावा जो कुछ मौजूद है वह शेषनाग है| उसी को साइंस डार्क एनर्जी कहता है| वही आधार शक्ति कुंडलिनी, शेषनाग है|
शेषनाग पर पूरा विश्व टिका हुआ है| पूरे विश्व का आधार शेषनाग है| जिसको हम सिंबॉलिक रूप में अपने ग्रंथों में देखते हैं|
शरीर का आधार जैसे मूलाधार है वैसे ही सृष्टि का आधार शेषनाग है| मूलाधार में वह इस कुंडलिनी शक्ति सर्पेंट पॉवर निवास करती है| इसलिए आधार का ही आश्रय लेना चाहिए| हम जिसके आधार पर टिके हुए हैं, जिसके कारण हमारा अस्तित्व है, उसी आधार का हमें आश्रय लेना चाहिए| उसी आधार के सहारे हमें अपनी साधना आगे बढ़ानी चाहिए|
साधक के मन में यह सवाल आता है वाइब्रेशन क्यों होता है? वाइब्रेशन इसलिए होता है कि उस द्वार को खोलने के लिए कुंडलनी शक्ति प्राण को वायु को वहां एकत्रित करती है और उससे सुसुम्ना के एंट्री के गेट पर ठोकर मारती है, टक्कर मारती है, चोट करती है, ताकि वह गेट खुल जाए, इसीलिए हमारे शरीर में वाइब्रेशन होता है| योग शास्त्र कहते हैं भगवान उस द्वार के खुल जाने से मनुष्य संसार बंधन से मुक्त हो जाता है|
शक्तिपात होने से किस तरह के अनुभव आते हैं?
कौन सा चक्र कब खुलेगा? कैसे खुलेगा? उस चक्र को खोलने से क्या अनुभूतियां आएंगी यह कुंडलिनी शक्ति पर छोड़ दीजिए| किसी को अनुभूतियां आएंगी किसी को नहीं आएंगी|
अंतर में शक्ति किस तरह से कार्य कर रही है, यह वही जानती है, लेकिन योग शास्त्रों ने कुछ मार्ग दर्शन किया है ताकि साधक का मन लगा रहे| उसे यह पता रहे कि वह जिस मार्ग पर है वह सही मार्ग है| वह भूत-प्रेत द्वारा किसी बाधा के द्वारा घटित नहीं है बल्कि स्वयं साक्षात महादेवी महाशक्ति के द्वारा यह अनुभव कराए जाते हैं| इन अनुभवों का ज्ञान होना जरूरी है| वरना साधक भटक सकता है| भ्रमित हो सकता है, लोग उसे डायवर्ट कर सकते हैं|
शरीर घड़े की तरह श्वास से भर जाता है है और फिर बार बार श्वास-प्रश्वास होता है| अपने आप स्वास्थ्य ही से बाहर जाती है अंदर आती है| शरीर संभाले नहीं संभलता जैसे ही वह बैठता है अपने आप उसकी बॉडी आगे की तरफ में झुकने लगती है, कभी दाएं जाती है कभी बाएं जाती है, कभी एक घुटने पर सिर लगता है, कभी दूसरे पर|
शरीर की शुद्धि,मन, प्राण की शुद्धि के लिए इस तरह की क्रियाएं होती हैं| यदि ऐसा होने लगे तो समझ लेना कि कुंडलिनी शक्ति जागृत हो गई और अपना कार्य करने लगी| उस समय हमें क्या करना चाहिए उस समय साधक को चुपचाप बैठना चाहिए| क्योंकि करने वाला साधक नहीं है करने वाली कुंडलिनी शक्ति है और चुपचाप बैठ कर देखो कि क्या हो रहा है|
आसन स्थिर हो जाएगा| सीधे बैठ जाओगे| अपने आप रीढ़ की हड्डी सीधी हो जाएगी| अपने आप उड्डियान बंध यानि पेट अंदर खींचने लगना, जालंधर बंध यानि गला नीचे झुककर ठुड्डी कंठकूप में लगने लगना, मूलबंध या अपने शरीर के निचले अंगों खींचने लगना व तालू में उलटकर जाए, जिसको खेचरी मुद्रा कहते हैं, फुर्ती आने लगे, हाथ पैर अपने आप खिंचने लगे तो समझ लेना कि कुंडलनी शक्ति क्रियाशील हो गई|
योग विज्ञान कहता है जब आसन दृढ़ता से लगा रहे, आंखों के तारे घूमने लगे, अपने आप आंखें बंद हो जाएं और आंखें चारों तरफ घूमने लगे, तारों की तरह दिखाई देने लग जाए, केवल कुंभक हो जाए, तो समझ लेना कि कुंडलिनी देवी क्रियाशील हो गई|
जैसे ही शक्तिपात होगा यह सब अनुभव उसे आने लगेंगे| यदि उसका संपर्क अपने गुरु,गुरु शक्ति से गहराई से जुड़ गया है तो बहुत देर नहीं लगेगी, यह अनुभव आने में, प्राण कला के स्रोत मूलाधार से सहस्रार में जाते मालूम पड़ेगे, जिस शरीर अंग में भी आप कल्पना करेंगे शरीर का वह हिस्सा वाइब्रेट करने लगता है, मूव करने लगता है|
मेरुदंड में कंपन मालूम पड़े, रीढ़ की हड्डी वाइब्रेट करने लगे, शरीर में शून्यता लगे,शरीर से विद्युत स्रोत चलें, पूरे शरीर में ऐसा लगे जैसे कि एनर्जी सर्कुलेट हो रही है, एनर्जी एक जगह से दूसरी जगह जा रही है, बिजली कौंध रही है, बिजली व्याप्त हो रही है, शरीर चक्की की तरह घूमने लगे, श्वास-प्रश्वास बाहर ही नहीं निकले, मेंढक की तरह उछलने लगे, घूमने लगे, चक्कर लगाने लगे, शीर्षासन, शावासन लग जाए| पूरी नाड़ियों में खिंचाव होने लगे और ऐसा लगे जैसे शरीर से प्राण निकल रहा है, आनंद आए तो समझना योग माया कुंडलिनी शक्ति क्रियाशील हो गई|
ऐसा लगे कि शरीर में कोई प्रवेश कर गया है, और उसके कारण तरह-तरह के आसन अपने आप होने लगे, तकलीफ तब भी ना हो, इतने विविध प्रकार के आसन, इतनी विविध प्रकार की क्रियाएं होती हैं, जिनका वर्णन ही नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके बाद भी शरीर में किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होती, पंद्रह-बीस मिनट, आधे घंटे जब तक अद्भुत प्रकार की क्रियाएं होती उसके बाद हम ऐसे हो जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं| शरीर हल्का हो जाता है|
किसी तरह का कोई कष्ट नहीं बल्कि कष्ट दूर हो जाते हैं| कहीं भी शरीर में नस नाड़ियों में कोई खिंचाव होता है वह दूर हो जाता है| कुंडलिनी शक्ति के जागरण से रीढ़ की हड्डी वक्राकार न रहकर सीधी हो जाती है| गर्दन सीधी हो जाती है| व्यक्ति तनकर चलने लगता है और यह सब ऊर्जा के सहज प्रवाह के कारण होता है| अलग-अलग तरह की चेष्टाएं होने लगती हैं|
हाथ पैर घूमने लगते हैं| मुंह से अलग-अलग तरह के शब्द निकलते हैं| जिनकी भाषा समझ में नहीं आती है| ध्यान में पशु-पक्षी मेंडक के जैसे शब्द निकलते हैं| अलग-अलग तरह के भाव होते हैं| हर जगह प्राण की गति मालूम होती है| जहां महसूस करो वही प्राण की क्रिया महसूस होने लगती है| अष्टप्रहर कुंडलिनी शक्ति की अनुभूति अंदर होती है| और मन एकाग्र होते ही शरीर वाइब्रेट करने लगता है| सोते समय भी कई बार शरीर में वाइब्रेशन का अनुभव होता है| प्राण कला के स्रोत सहस्त्रार में जाते हुए अनुभव में आते हैं| स्वप्न में मे मन क्रियात्मक रहता है| अलग-अलग तरह के स्वप्न आते हैं लेकिन फिर भी सुबह थकान नहीं होती तो समझ लेना कि कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो गयी|
व्यक्ति गाने लगता है, विचित्र तरह का संगीत निकलता है, कविता की रचना करने लगता है, पेंटिंग्स बनाता है, तरह-तरह की पेंटिंग्स बनाता है, ऐसे-ऐसे चित्र बनाता है जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते, ऐसा लगता है कि किसी एलियन ने आकर यह पेंटिंग की हो, अलग-अलग तरह की आकृतियां बनाता है,
अलग-अलग तरह के पोज़ बनाता है, गं लेखक बन जाता है कोई कवि बन जाता है| कविताएं निकलती हैं, भजन बनते हैं, दोनों हाथ जुड़ते हैं और ऐसा लगता है कि हम विश्व की शक्ति को ग्रहण कर रहे हैं, दोनों हाथ जोड़कर चक्र जैसी आकृति बनती है और अलग-अलग जगहों तक वह दोनों हाथ जाते हैं, अलग-अलग तरह की मुद्राएं बनती हैं|
मुंह में रस आने लगता है, अलग-अलग तरह की ध्वनियां सुनाई देती हैं, अनेक प्रकार के स्वाद महसूस होते हैं तो समझना चाहिए सरस्वती रूपा कुंडलनी शक्ति क्रियाशील हो गई|
कभी-कभी ऐसा लगे कि कुछ भी मत सुनो, कुछ भी मत कहो, चुपचाप बैठो, इस मस्ती में डूबे रहे हो, दिनभर शरीर एक्टिव रहे, दिनभर ऐसा लगे कि काम करते जाओ फिर भी थकान ना हो, शरीर हल्का हो जाए, उड़ता हुआ नजर आए, मन प्रफुल्लित रहे, स्वप्न में भी अप्रसन्नता ना रहे, गलत हो या सही हो मन विचलित न हो, तो समझ लेना कि ब्रह्म शक्ति कुंडलिनी क्रियाशील हो गई|
देवताओं के दर्शन होने लगे, दिव्य, गंध, रूप, रस, शब्द, स्पर्श का अनुभव हो, दिव्य आत्माओं से आदेश मिलने लगे तो समझ लेना कि देवी शक्ति जागृत हो गई|
तरह-तरह का ज्ञान अंतर से प्रकट होता है| जो ज्ञान की बातें बाहर से हम ग्रहण करते हैं उनका सही सही अर्थ निकाल लेते हैं| शास्त्रों, ग्रंथ को पढ़ते हैं और गूढ़ से गूढ़ बातें आसानी से समझ में आ जाती है| सूक्ष्म शरीर सामने दिखने लगता है| प्रकाश नजर आता है, वेद वेदांत का गूढ़ रहस्य समझ में आने लगता है, मन के संदेह मिटने लगते हैं, व्याख्या करने की विचित्र शक्ति आ जाती है|
इस तरह कुंडलिनी शक्ति अलग-अलग प्रकृति वालों को उसके मन प्राण और शरीर के मुताबिक अलग-अलग रूप से योग शास्त्र कथित समाधि के लिए शिव शक्ति सम्मेलन के लिए अलग-अलग प्रकार की चेष्टाएं और क्रियाएं कराती है|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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