जब न तो स्थूल शरीर की 'क्रिया' हो, न सूक्ष्म शरीर का 'चिन्तन' हो और न कारण शरीर की 'निद्रा' तथा 'बेहोशी' हो, तब जाग्रत्-सुषुप्ति होती है। जाग्रत् सुषुप्ति और चुप-साधन एक ही हैं। समाधि में तो लय, विक्षेप, कषाय और रसास्वाद- ये चार दोष (विघ्न) रहते हैं, पर जाग्रत्-सुषुप्ति में ये दोष नहीं रहते।
ध्येय परमात्मा का होने से जब साधक की वृत्तियाँ परमात्मा में लग जाती हैं, तब जाग्रत्-सुषुप्ति होती है। इसमें सुषुप्ति की तरह बाह्य ज्ञान नहीं रहता, पर भीतर में ज्ञान का विशेष प्रकाश (स्वरूप की जागृति) रहता है।
स्वामी रामसुख दास - जाग्रत-सुषुप्ति के लक्षण:
स्थूल शरीर की क्रियाएँ (जाग्रती): जाग्रत-सुषुप्ति का प्रमुख लक्षण है कि इस स्थिति में स्थूल शरीर की क्रियाएँ विलिन हो जाती हैं। यहां, व्यक्ति बाह्य जगत की ओर ध्यान नहीं देता है और उसके स्थूल शरीर में कोई गतिविधियाँ नहीं होती।
सूक्ष्म शरीर का चिन्तन (सुषुप्ति): जाग्रत-सुषुप्ति में सूक्ष्म शरीर (मन, बुद्धि) का चिन्तन होता है। यह चिन्तन अवस्था से अलग होता है और व्यक्ति की आंतरिक अवस्था को सूचित करता है।
कारण शरीर की निद्रा (सुषुप्ति): इस स्थिति में व्यक्ति कारण शरीर की निद्रा में होता है। यह निद्रा बिना सपनों के होती है और यह सुखमयी होती है।
ज्ञान की विशेष प्रकाश (सुषुप्ति में जागन): जाग्रत-सुषुप्ति में बाह्य जगत का ज्ञान नहीं होता, लेकिन व्यक्ति के अंतरात्मा का ज्ञान होता है। यह ज्ञान अच्छादित अवस्था को सुचारने में मदद करता है और व्यक्ति को आत्मा के सच्चे स्वरूप की पहचान करने में मदद करता है
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024