विवाह में सपिण्ड, विचार, गोत्र, प्रवर विचार करना चाहिए। विवाह में स्त्रियों के लिए गुरुबल तथा पुरुषों के लिए रविबल देख लेना चाहिए। कन्या एवं वर को चन्द्रबल श्रेष्ठ अर्थात् चौथा, आठवां, बारहवां, चन्द्रमा नहीं लेना चाहिए। गुरु तथा रवि भी चौथे, आठवें एवं बारहवें नहीं लेने चाहिए..!
विवाह में मांस ग्रहण के लिए व्यास ने कहा है कि माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष, ज्येष्ठ, आषाढ़ महिनों में विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है।
रोहिणी, तीनों उत्तरा, रेवती, मूल, स्वाति, मृगशिरा, मघा, अनुराधा, हस्त ये नक्षत्र विवाह में शुभ हैं। विवाह में सौरमास ग्रहण करना चाहिए। जैसे ज्योतिष शास्त्र में कहा है–
सौरो मासो विवाहादौ यज्ञादौ सावनः स्मृतः।
आब्दी के पितृ कार्य च चन्द्र मास प्रशस्यते।।
बृहस्पति, शुक्र, बुद्ध और सोम इन वारों में विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है। विवाह में चतुर्दशी, नवमी इन तिथियों को त्याग देना चाहिए।
इस प्रकार आपको भी धार्मिक रीति से ही विवाह संस्कार को पूर्ण करना चाहिये।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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