Published By:धर्म पुराण डेस्क

चिंता किस बात की, मैं हूँ ना

समय-समय पर अपने घर के सदस्यों के लिए गिफ्ट वगैरह लाना उसे अच्छा लगता है जिससे वह कोई समझौता नहीं करता। खुद पर ज्यादा खर्च करना उसे पसंद नहीं। भाई-बहनों को उनके लिए कुछ गिफ्ट बतौर लाकर दे देते हैं वह सामान खुशी से वे लोग उपयोग करते है।

इन खर्चों के अलावा कुछ सेटिंग भी कर लेता है। सोचता है शादी के बाद बीवी के काम आएंगे और उसे किसी चीज के लिए ना नहीं कहना पड़ेगा। अच्छा सा घर देखकर शादी भी हो गई। हनीमून मनाने के बाद फिर से उदय जॉब पर आ गए और अपना परिवार ठीक तरह से देखने लगे।

उसकी बीवी प्रिया  ने भी उनकी सैलरी जानने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। लेकिन कोई भी चीज की मांग करती 1-2 दिनों में बाकायदा उनके हाथों में होगी और घर की जरूरतों के लिए भी उदय उसे पैसे देना नहीं भूलता। किसी वस्तु का कहने में संकोच भी करती तो उसे बोलकर समझा देना चिंता क्यों करती हो, मैं हूँ ना। बीवी को मायके में कभी नीचा नहीं देना पड़े इसके लिए किसी भी समारोह आदि के मौके पर वहां की भी जिम्मेदारियों को समझकर अपनी तरफ से उदय कोई कमी नहीं रहने देता।

शादी की दूसरी वर्षगांठ आते-आते उदय का बैंक अकाउंट तो निल (खत्म) हो गया। अब किसी सामान की जरूरत पड़ती तो वह दोस्तों से थोड़ा-बहुत उधार लेकर काम चला लेता था लेकिन प्रिया  को भी कानों-कान इसकी खबर नहीं लगने देता और समय से दोस्तों का रुपया सैलरी मिलने पर उदय लौटा भी देता था।

खरीदारी के काम से आते-जाते क्रेडिट कार्ड के बारे में पता चला। उदय बैंकों से जानकारी लेने के बाद बनवा लिए। अब बजाय दोस्तों के पास जाने के वह इन्हीं कार्डों से खरीदारी कर लेता और समय सीमा पर उनका पैसा भी चुका देता।

तीसरी वर्षगाँठ पर भी बीवी को उदय ने कीमती साड़ी समेत ढेर सारे तोहफे भी दिए। दो-तीन महीने बाद उसके यहाँ सुंदर से बेटे ने जन्म लिया। उसी की परवरिश में किसी तरह की कमी नहीं रहने दी। बढ़िया खिलौनों से लेकर उसकी ड्रेस, इलाज आदि सभी बात का ख्याल उदय रखता। स्वाभाविक भी है आखिर पहला बेटा था। लेकिन अब बीवी-बच्चे दोनों के लिए उसने अपने रोजमर्रा के जो खर्च थे उनमें और कमी कर ली थी।

आर्थिक मंदी के चलते कंपनी ने उदय की सैलरी में 10-15 फीसदी की कटौती कर दी और उसके 90 हजार रुपए किस क्षेत्रीय बैंक में जमा थे वह डूब गए और लोगों की जमा राशि भी अधर में लटक गई।

एक साथ लगे इन दो आर्थिक झटकों ने उसे हिलाकर रख दिया। लेकिन उसने इसका अहसास घर पर किसी को नहीं होने दिया। सैलरी में हुई कटौती की कमी को पूरा करने के लिए उसने कर्ज का सहारा लेने से परहेज नहीं किया। लेकिन मंदी के असर ने उसे भी जकड़ लिया और बेटे मानस का बढ़िया से स्कूल में एडमिशन भी इसे इसी सत्र में कराया था।

मानस के एडमिशन को लेकर उदय थोड़ा परेशान रहने लगा। एक दिन बहुत जिद करने पर उसने प्रिया  को बैंक में उसकी डूबी राशि और वेतन में कटौती के बारे में बताया।

प्रिया  बोली “मानस के एडमिशन में कितना खर्च आएगा।”  “25 से 30 हजार” उदय ने बोला। प्रिया  ने उत्तर दी “बस इतनी सी बात है? हम कल ही जाकर यह फीस जमा करा देंगे।”

उदय ने अपनी आर्थिक स्थिति प्रिया  को एयसे बताया। “लेकिन प्रिया  अब दिन बदल चुके हैं। मुझ पर लगभग बैंकों का 1 लाख रुपए का कर्ज भी है।” 

तब प्रिया  ने बोली “आप चिंता क्यों करते हैं, मैं हूँ ना। मेरे पास 35-40 हजार रुपए रखे हैं।”  उदय ने पुछा, “लेकिन तुम्हारे पास यह रुपए कहां से आए।”

तब प्रिया  ने बोली “यह सब आपके ही पैसे हैं जो मैंने बुरे वक्त के लिए बचाकर रखते हैं। क्योंकि मेरी जरूरत का सामान तो सब आप ही ला देते हैं तो पैसे का मैं क्या करती।”

प्रिया  ने फिर और एक बात बोली “परंतु आपको मुझसे एक वादा करना पड़ेगा। अब मुझ पर होने वाली फिजूलखर्ची को बंद करो क्योंकि अब हमें प्रकृति  के आगे के एजुकेशन के लिए भी पैसों की व्यवस्था करनी चाहिए। मुझे जो भी जरूरी सामान लगेगा मैं खुद बता दूंगा।”

इसके बाद दोनों बजट बनाकर अच्छे से घर चलाने लगे और उनका कर्ज भी उतर गया। क्योंकि अब उन्हें पता लगा कि दो-ढाई हजार रुपए उनके प्रतिमाह फिजूल ही खर्च हो रहे थे। उदय इतना अच्छा जीवनसाथी पाकर खुश था जो कि अपने पति की परेशानियों को बिना कहे भी समझ गई थी और उनकी गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई थी।

 

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