Published By:अतुल विनोद

अध्यात्मिक होने का अर्थ क्या है? क्या साधना उपासना करने से हम आध्यात्मिक हो जाते हैं? : अतुल विनोद

अध्यात्म एक ऐसा शब्द है जिसे लेकर बहुत सारी मान्यताएं प्रचलित हैं। लेकिन अध्यात्म का समग्र चिंतन बहुत कम ही उपलब्ध हो पाता है।वास्तव में अध्यात्म क्या है? क्या हम आध्यात्मिक हो सकते हैं? आध्यात्मिक होने के लिए हमें क्या करना पड़ेगा? क्या अध्यात्म और भौतिकता अलग-अलग हैं? ये भी पढ़ें...अध्यात्म क्या है:-जीवन में यह क्यों आवश्यक है -दिनेश मालवीय जब हम अध्यात्म की बात करते हैं तो हमारी सामान्य समझ यही कहती है कि हमें कुछ देर ध्यान करना चाहिए, कुछ देर sadhna उपासना करनी चाहिए। 

ईश्वर का चिंतन करना चाहिए। लेकिन अध्यात्म इतना भर नहीं है। पूजा पाठ उपासना साधना योग ध्यान अध्यात्म के महासागर की महज कुछ बूंदे हैं। जिनसे हमें उस विराट जीवन की झलक मिलती है। वास्तव में अध्यात्म हमारे जीवन की समग्रता का नाम है। दरअसल हमारा पूरा जीवन ही हमें आध्यात्मिक यात्रा के लिए दिया गया है। एक जीवात्मा को जब धरती पर भेजा जाता है तो उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ आध्यात्मिक यात्रा करना होता है। ये भी पढ़ें...अध्यात्मिक उन्नति क्या है? Signs of Spiritual Progress : कुण्डलिनी और अध्यात्म का विज्ञान .. अतुल विनोद पाठक जीवात्मा को चुनौतियां, टास्क, रिश्ते नाते, कर्तव्य, कहीं प्रचुरता तो कहीं अभाव के ब्लू प्रिंट के साथ धरती पर भेजा जाता है। 

आध्यात्मिक होने के लिए हमें जीवन के साथ मिलने वाले हर कर्तव्य, कष्ट, अभाव, प्रभाव, उन्नति अवनति और पुरस्कार के प्रति आध्यात्मिक भाव रखना होता है।  आध्यात्मिक भाव के साथ हर कर्तव्य को धैर्य से पूरा करने की क्षमता विकसित करना| मुश्किलों, तकलीफ़ों, चुनौतियों में धैर्य रखना, मुश्किलों से भागना नहीं| अपने मूल आध्यात्मिक स्वरूप का ध्यान रखकर जो पाठ हमें इस जीवन में सिखाया जा रहा है उस पाठ को सीखने की कोशिश करना। समझना कि हमने क्यों जन्म लिया है? हमें प्रकृति क्या सिखाना चाहती है? और जो जो चैलेंजेस हमारे जीवन में आते हैं वह किन कारणों से आए हैं। कुल मिलाकर धरती का ये जीवन सिर्फ आपकी क्लीनिंग, लर्निंग, डिटॉक्सिफिकेशन, परीक्षा और ट्रेनिंग के लिए है।  

दरअसल जैसे हम भौतिक जीवन में Promotion की इच्छा रखते हैं वैसे ही हम जीवात्मा के रूप में पदोन्नति की इच्छा रखते हैं। भौतिक जीवन का प्रमोशन कुछ समय का होता है| उच्च लोकों में प्रमोशन के लिए हमें अपनी और आध्यात्मिक बनते जाना होता है।  जीवात्मा धरती पर कुछ उद्देश्य/टास्क/चैलेंज लेकर जन्म लेती है। जो उनका सफलतापूर्वक सामना करती है। अभाव में संतुलन और शक्ति, प्रभाव, पद, धन संपदा में सहजता रखती है वह पास हो जाती है उसे प्रमोशन मिलता है। जो जीवात्मा अपने उद्देश्य को भूल जाती है और अपनी चुनौतियों से भागना शुरू कर देती है। अभाव से निपटने के लिए गलत रास्ते इस्तेमाल करने लगती है वह जीवात्मा Promotion की जगह डिमोशन प्राप्त करती है| 

ये भी पढ़ें...भौतिकवाद बनाम अध्यात्मवाद ….भौतिक और अध्यात्मिक शक्तियों का गूढ़ रहस्य …  P अतुल विनोद  डिमोशन का अर्थ जिस लोक से यात्रा शुरू हुई थी उससे भी नीचे के लोक में पहुंच जाना| फिर उस स्थिति में वापस आने के लिए और ज्यादा कष्ट पूर्ण जन्म लेना| आध्यात्मिक होने का अर्थ सिर्फ योग ध्यान आसन करना नहीं है। आध्यात्मिक होने का अर्थ जीवन के हर पहलू में आध्यात्मिक भाव लाना है। सुबह से लेकर शाम तक कैसे व्यवस्थित रूप से जीना, कैसे दूसरे लोगों से संवाद करना, कैसे कठिनाइयों के बीच अपने मूल स्वरूप का ध्यान रखना। हर प्रकार की परीक्षा का सफलतापूर्वक सामना करना और जीवन से मिले हुए हर पाठ को अंगीकार करना यही अध्यात्म है। ये भी पढ़ें... अध्यात्म में कहीं कोई मंजिल नहीं होती ?...अतुल विनोद

 

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