 Published By:दिनेश मालवीय
 Published By:दिनेश मालवीय
					 
					
                    
हम आपके सामने ऐसे विषयों को लेकर आते हैं, जिनके विषय में लगभग सभी लोगों को जिज्ञासा होती है. वैसे तो हर जिज्ञासा का काफी कुछ समाधान शास्त्रों को पढ़कर हो जाता है, लेकिन शास्त्रों को पढ़ने का समय कम ही लोगों के पास होता है. शास्त्रों को पढने की ओर रुझान भी कम ही लोगों का होता है. इसके अलावा व्यक्ति बहुत विस्तार में भी नहीं जाना चाहता. उसे सीधा-सरल और सटीक जवाब चाहिए होता है. हम इन विषयों पर सनातन धर्म के शास्त्रों और ऋषियों की वाणी के आधार पर समाधान लेकर आते हैं. धर्म से जुडी अनेक बातों में “परलोक” बहुत महत्वपूर्ण विषय है. बहुत सारे लोग यह जिज्ञासा करते हैं, कि मरने के बाद आत्मा का क्या होता है? यह शरीर के साथ ही समाप्त हो जाती है या इसका अस्तित्व किसी रूप में बना रहता है? यह भी बहुत जिज्ञासा का विषय है कि जो व्यक्ति मृत हो गया है, उसे अर्पित कि हुई चीज़ें उस तक पहुंचती है या नहीं ?
इन प्रश्नों पर हम अपने सनातन धर्म के शास्त्रों के आधार पर समाधान सामने लेकर आये हैं. हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मनुष्य द्वारा किये जाने वाले कर्मों का फल कर्म करने वालों को मिलता ही है. ऐसा हो ही नहीं सकता, कि किसीके द्वारा किये गये किसी भी अच्छे या बुरे कर्म का फल उसे नहीं मिले. यह असंभव है. कर्म का फल इस लोक में मिल जाता है, लेकिन बचा हुआ फल परलोक में मिलता है. जहाँ तक मृत व्यक्ति को अर्पित की जाने वाली चीज़ों का सवाल है, तो हमारे शास्त्रों के अनुसार, यह चीज़ें मृत व्यक्ति की आत्मा तक अवश्य पहुँचती हैं. इसकी बहुत सूक्ष्म व्यवस्था है. लेकिन कुछ लोग यह जिज्ञासा करते हैं, कि यदि कोई व्यक्ति मुक्त हो गया हो, तो उसे अर्पित की जाने वाली चीज़ों का क्या होता है? इसके विषय में शास्त्र कहते हैं, कि उसके लिए समर्पित चीज़ें, समर्पित करने वाले के कोष में जमा हो जाती हैं.
कठोपनिषद में नचिकेता ने यमराज से प्रश्न किया था, कि मरने पर आत्मा रहता है या नहीं? यमराज ने कहा, कि अवश्य रहता है. रामायण में उल्लेख आता है, कि लंका युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीराम के मृत पिता दशरथजी उनके पास आकर और उनसे बात करते हैं. दूसरे ग्रंथों में भी इससे सम्बंधित अनेक विवरण मिलते हैं. कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति की बात, गीता में भी कही गयी है. मनुष्य जो कर्म करता है, उसके अनुसार ही उसके ह्रदय में संस्कार संचित होते हैं. उसी के अनुसार उसके अंत:करण में वृति का निर्माण होता है. वृत्ति के अनुसार ही अंतकाल में स्मृति होती है. स्मृति के अनुसार ही भावी जन्म होता है. कर्मों के भेद के कारण ही यह निर्धारित हो जाता है, कि अगले जन्म में व्यक्ति किस परिवार में जन्म लेगा, उसकी उम्र कितनी होगी, उसे क्या सुख या दुःख मिलेंगे और उसका स्वभाव कैसा होगा. इस तरह, व्यक्ति में जो बुद्धि,स्वभाव और भोग की भिन्नता होती है, उसका मूल कारण कर्म ही है.
सनातन धर्म में श्राद्ध-तर्पण का उल्लेख बहुत प्रमुखता से मिलता है. श्रीराम ने चित्रकूट निवास के दौरान अपने पिता की मृत्यु का समाचार पाने के बाद वहाँ मंदाकिनी नदी के तट पर जाकर तर्पण किया था. पाण्डव भी कर्ण का तर्पण करते हैं. जहाँ तक इस प्रश्न का सवाल है, कि मृत व्यक्ति के लिए किया जाने वाला तर्पण मृत व्यक्ति को किस प्रकार पहुँचता है, इस बात को एक रूपक से समझा जा सकता है. मान लीजिये, आप किसी व्यक्ति के खाते में पैसे जमा कराते हैं, तो यह राशि उसी व्यक्ति के नाम से बैंक में जमा हो जाती है. राशि उसी व्यक्ति को मिलती है, जिसका खाता होता है. इसी तरह पितरों के नाम से किया हुआ पिंड, तर्पण, भोज आदि कर्म का जितना मूल्य आँका जाता है, उतना ही फल उस प्राणी को वह जिस योनी में होता है, वहीँ उसे मिलता है.
मिसाल के तौर पर यदि मृतक ने गाय के रूप में जन्म लिया हो, तो उसे घास के रूप में, देवता है, तो अमृत के रूप में अरु बंदर है, तो फल के रूप में वह वस्तु मिल जाती है. यदि मरने वाले व्यक्ति को मुक्ति मिल गयी हो, तो उसके निमित्त किया हुआ कर्म करने वाले को ही मिलता है. जैसे हम किसी व्यक्ति को डाक से पात्र भेजें और वह यदि मर गया हो या भेजे गये पते पर नहीं मिले, तो वह पात्र आपको लौट आता है. मित्रो, धर्म और अध्यात्म के विषय बहुत सूक्ष्म और गूढ़ होते हैं. आशा करते हैं, कि मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति और श्राद्ध-कर्म के विषय में आपकी जिज्ञासाओं का समाधान अवश्य हो गया होगा.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024 
                                यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024 
                                लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024 
                                संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024 
                                आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024 
                                योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024 
                                भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024 
                                कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                