अर्श की व्याख्या-
दुश्मन की तरह पीड़ा देता है, अतः उसे 'अर्श' कहते हैं अरिवत शृणाति इति 'अर्श'। शत्रु जैसे मार्ग का अवरोध करता है, उसी तरह यह व्याधि मल मार्ग को गुदा मार्ग को बंद करता है, उसे 'अर्श' कहते हैं।
लक्षण-
गुदा के भागों में जो अंकुर की तरह स्पर्श-गम्य होता है। (बाह्ययार्श) गुदमार्ग में अंकुर की तरह चुभता है।
(आभ्यंतर अर्श) अर्श में दोष-
1. वात, पित्त, कफ अर्श के दूष्य
2. त्वचा, रक्त, मांस और मेद
अर्श के प्रकार-
अर्श-
1. सहज,
2. जातोत्तर (कालज)
अर्श-
1. बाह्य
2. आभ्यंतर
शुष्क- यह वात कफाधिक्य वाले होते हैं।
1. स्रावी- यह पित्तरक्ताधिक्य वाले होते हैं। सांप्रत काल में शुष्क और स्रावी अर्श ज्यादा चिकित्सा में देखने को मिलते हैं।
अर्श-
1. वातज,
2. पित्तज,
3. कफज,
4. रक्तज,
5. सन्निपातज,
सहज अर्श के सामान्य हेतु-
1. विरुद्धान्न खाने से।
2. गुरु, मधुर, शीतल, असात्म्य अन्न खाने से।
3. खीर, दूध, दही का पानी और गुड़ से बने हुए भक्ष्य खाने से।
4. मल प्रवृत्ति के समय ज्यादा जोर (प्रवाहण) करने से।
5. उड़द का यूष, गन्ने का रस, अंकुरित चना, मूंग, मोठ इत्यादि खाने से।
6. सुबह का पका हुआ अन्न शाम को खाने से, सड़ा हुआ अन्न खाने से, बिगड़ा हुआ मद्य पीने से।
7. अति स्नेहपान (तेल, घी) से उचित व्यायाम और व्यायाम न करने से।
8. दिन में सोने से, ऊँट की सवारी करने से, साइकिल ज्यादा चलाने से।
9. मल-मूत्र के वेग को रोकने से और न आये हुए वेग को निकालने से।
10. स्त्रियों में कच्चा गर्भ गिर जाने से आजकल यह गर्भपात (Abortion) एक फैशन बन गयी है। प्रसूति के समय गुद-मार्ग पर पीड़न होने से अर्श होते हैं।
अर्श का पूर्वरूप-
1. पेट में गुड़गुड़ाहट होना।
2. ज्यादा डकार आना।
3. मल-प्रवृत्ति कम होना।
4. अन्न पर अरुचि होना।
5. पेट में जलन होना।
6. प्यास ज्यादा लगना।
7. गुदा में कुछ कट रहा हो, ऐसा प्रतीत होना।
8. नींद ज्यादा आना।
9. मूत्र प्रवृत्ति ज्यादा होना।
10. अपानवायु की प्रवृत्ति आवास के साथ होना।
11. दुर्बलता की अनुभूति होना।
रूप-
बाह्यार्श गुदा की परीक्षा करने से बाहर के भाग में देखने को मिलते हैं।
आभ्यंतर अर्श प्रोक्टोस्कोप (Proctoscope) की सहायता से भीतर देखने से भीतरी भाग में मसूर, उड़द, यव, बेर, जांबूफल, गोस्तन, पोपट की जांच या जिह्वा सदृश, कमल की कली के सदृश अंकुर देखने को मिलते हैं।
अर्श-
औषधि से मिटने वाले 1 से 2 डिग्री तक के अर्श औषध सेवन और पथ्य पालन से मिट जाते हैं।
क्षार सूत्र से मिटने वाले-2 डिग्री प्राप्त कर लेने के बाद औषधि से नहीं मिटते यह मेरा स्वानुभव है। इसमें "मल प्रवृत्ति के समय वेदना बहुत होती है। (वेदना मल प्रवृत्ति बगैर जीवन व्यतीत हो, तो कितना अच्छा" ऐसा आतुर महसूस करता है। इस अवस्था में क्षार सूत्र या शस्त्रकर्म ही इलाज है।
वैध- टी जी पंचोली
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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