Published By:अतुल विनोद

आनंद(Bliss) क्या है इसे कैसे प्राप्त करें? अतुल विनोद हमारा दर्शन जीवन को आनंद की अभिव्यक्ति मानता है| हम सब उस परब्रह्म परमात्मा के सनातन अंश है तो हमारा जीवन उस परमात्मा की तरह आनंदित रहने के लिए ही है| भारतीय दर्शन की बुनियाद ही आनंद है| आनंद जीवन की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है|
हमारी किताबें, हमारा आर्ट, हमारा म्यूजिक सब कुछ आनंद से भरा हुआ है| भारतीय संगीत का हर राग आनंद के समुद्र से सुर लहरिया निकालने के लिए है| भारतीय संगीत कला जीवन की गहराइयों में रचे बसे आनंद को गुंजित कर देता है| उसे स्पंदित और परिलक्षित कर देता है|
भारतीय साहित्य कला और संगीत निराशा, शोक और दुख की छाया से मुक्त है| भारत की पुरानी किताबें देखिए, संगीत की तान सुन लीजिए, या कला की अभिव्यक्ति देख लीजिए आपको कहीं भी दुख निराशा और सस्ती भावुकता नहीं दिखाई देगी| हां आज के गानों, गजलों, कला और किताबों में आपको जरूर टूटे हुए दिल की दास्तान देखने और सुनने को मिल जाएगी|इनसे ज्यादा नाता आपको आनन्द से पूरी तरह दूर कर देगा... दर्द भरी नकली गजलों और सेड सोंग्स आनंदमयी भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाते|
हमारा दर्शन हमें निराशा की गर्त में नहीं धकेलता बल्कि मृत्यु में भी आनंद और मृत्यु के बाद परमानंद मिलने की दिलासा देता है|हमारी सोच है दुख में भी सुख के दर्शन करना| कष्ट और तकलीफ को भी अपने ही कर्म फल का नतीजा मानकर उन्हें सहजता से अक्सेप्ट (Accept) करके उन्हें भोगना ताकि हमारे पाप कट जाए| हम टफ सिचुएशन में भी उत्साह और आशा की किरण देखते हैं| हम मानते हैं कि परमात्मा हमारी रगों में बह रहा है और उसके जरिए हमारे अंदर आनंद की किरणें प्रकाशित होती हैं| हमारा परमात्मा हंसता मुस्कुराता देव है|
जिसके चेहरे पर आनंद की मधुर मुस्कान है| हमारा भगवान दयालु है, प्रेमी है, सुंदर है, सहज है|जब हमारा परमात्मा आनंद से भरा हुआ है तो उस आनंद का तत्व हमारे अंदर क्यों नहीं है? हम मानते हैं कि आनंद का सोर्स हमारे ह्रदय में है| बस हमारे दृष्टिकोण की वजह से वो स्रोत हमें दिखाई नहीं देता| उस स्रोत को हमने अपने दुख और निराशा के टेम्परेरी फीलिंग्स के कारण बंद कर रखा है| जैसे-जैसे हम जागरूक होते जाते हैं|
अपने जीवन के अभिनय से पैदा हुए भावनात्मक दबाव को खत्म करते चले जाते हैं|हम अपना काम पूरी तन्मयता से करते हैं| नतीजे को परमात्मा को अर्पित करते हुए कार्य में आनंद लेना हमारी प्रकृति और प्रवृत्ति है| भारतीय दर्शन ने आनंद के 4 तरीके बताएं हैं| निम्न कोटि का आनंद: ये आनंद हमें भोजन, भोग और नींद से मिलता है| इसमें कोई बुराई नही, ना ही ये पाप है| लेकिन इससे हमे तृप्ति नहीं मिलती, एक समय बाद अधिक क्वालिटी के आनंद की प्यास उठती है| इस आनंद को सनातन धर्म पाशविक आनंद कहता है| क्योंकि बहुत थोड़े समय के लिए होता है| इसलिए हम इस आनंद से थोड़ा और आगे जाने की कोशिश करें|
माध्यम कोटि का आनंद: जब हम भोग, भोजन और नींद के रस से थोड़ा ऊपर उड़ जाते हैं तो हम भाव आनंद लेना सीख जाते हैं| मित्रता, दया, सहायता, उत्सव, हास्य व्यंग, आर्ट व कल्चरल एक्टिविटी, कविता, किताबें, खोज, निर्माण, अविष्कार, डिजाइनिंग करके जो भावनात्मक आनंद हम हासिल करते हैं वो माध्यम कोटि का आनंद कहलाता है|हम सब इस आनंद के सहज भागीदार बन सकते हैं| कोई शौक अपनाकर| समाज सेवा करके| दूसरों को शिक्षा देकर|
दूसरों का स्वस्थ मनोरंजन करके| अच्छे लोगों से दोस्ती करके| कला, कविता, संगीत, गार्डनिंग, टूर एंड ट्रेवल्स से हम मध्यम स्तर का आनंद हासिल कर सकते हैं| और यदि आप को इस आनंद से भी संतुष्टि नहीं मिलती तो आप इससे भी हायर लेवल के आनंद की तरफ बढ़ सकते हैं| यदि आपको कला, संगीत, बागवानी, पर्यटन से भी आनंद नहीं मिलता तो आप की तलाश सर्वोत्कृष्ट आनंद की है| आप उच्च स्तरीय आत्मिक आनंद प्राप्त करना चाहते हैं| हायर लेवल का आनंद हायर लेवल की कॉन्शियसनेस से मिलता है| दरअसल उच्च स्तरीय आनंद के लिए हमें उच्चस्तरीय सत्ता से डाटा का आदान-प्रदान बढ़ाना पड़ेगा| उससे नजदीकी रिलेशन स्थापित करना पड़ेगा| परमात्मा से संबंध बढ़ाने के लिए शिकायतों को छोड़ना पड़ेगा|
जो कुछ है उसे एज it इज़ एक्सेप्ट करें| अपने हालातों के लिए खुद के कर्मों को जिम्मेदार माने| अपनी कमजोरी को मजबूती बनाए| तकलीफ और बाधाओं से सीखें| परमात्मा से नजदीकी आपको दुखों से तात्कालिक मुक्ति नहीं देती| दरअसल जिन्हें हम दुख मान रहे हैं वो हमारी करनी का फल है या हमें मजबूत बनाने का परमात्मा का प्रयास| तकलीफों के बीच भी आनंद के स्रोत हमारे जीवन में हमें दिखाई दे जाएंगे|
मुसीबत के बीच भी कुछ अच्छे दोस्त हमारा साथ नहीं छोड़ते, प्रकृति का दुलार कम नहीं होता, आर्थिक कठिनाइयां होती है लेकिन बच्चे और पत्नी का मधुर प्रेम साथ होता है, छोटी-छोटी चीजें सुख दे सकती है आनंद दे सकती हैं| नीचे अच्छा देखने को नहीं है तो आसमान की तरह सर उठाइए| किसी पेड़ के पास पंहुचिये| बाहर से हमें आनंद की कई लहरें प्राप्त हो सकती है लेकिन आनंद का समुद्र हमारे अंदर उस सत-चित-आनंद मई आत्मा के रूप में उसके साक्षात्कार के बाद ही मिलता है|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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