Published By:दिनेश मालवीय

संस्कृति क्या है ? हिन्दू संस्कृति की विशेषताएँ .. दिनेश मालवीय

संस्कृति क्या है ? हिन्दू संस्कृति की विशेषताएँ .. दिनेश मालवीय

 

ऐसे अनेक शब्द हैं, जिन्हें हम बार-बार बोलते चले जाते हैं, लेकिन उनका ठीक-ठीक अर्थ हमें पता नहीं होता. आजकल “संस्कृति” शब्द का बहुत चलन है. संस्कृति के विकास, संरक्षण और संवर्धन के लिए हर राज्य में तथा राष्ट्रीय स्तर पर अलग से विभाग काम कर रहे हैं. संस्कृति की रक्षा का नारा बुलंद कर असंख्य संगठन और संस्थाएँ इससे जुड़े कामों में संलग्न हैं. सहज ही प्रश्न उठाता है, कि संस्कृति क्या है? आज शिक्षा का बहुत प्रसार हो गया है. आमतौर पर ज्यादादर लोग कह देते हैं, कि संस्कृति यानी कल्चर. लेकिन यह तो बड़ी विचित्र बात हो गयी. संस्कृति शब्द संस्कृत भाषा का है और इसे अंग्रेज़ी शब्द “कल्चर” का पर्यायवाची बताया जा रहा है. जब यह शब्द संस्कृत का है, तो इसका अर्थ भी संस्कृत से ही निकाला जाना चाहिए.

 

लौकिक और पारलौकिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, आर्थिक, राजनैतिक उत्थान के लिए शरीर, मन, बुद्धि आदि से की जाने वाली सम्यक चेष्टाएँ ही संस्कृति कहलाती है. यानी हम अपनी कर्म और ज्ञान इन्द्रियों के माध्यम से जीवन के चहुँमुखी समग्र विकास के लिए जो चेष्टाएँ करते हैं, वे संस्कृति हैं. संस्कृति के एक अंश को सभ्यता कहा जाता है. इन दोनों में कुछ फर्क है. संस्कृति का आधार अनुभव से प्राप्त ज्ञान है, जबकि सभ्यता बुद्धि द्वारा विकसित ज्ञान पर आधारित है. जो ज्ञान अनुभव से मिलता है, वह परिवर्तनशील नहीं होता, जबकि बुद्धि से मिला ज्ञान, यानी सभ्यता में बदलाव होता रहता है. इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है.  हमारे घर में बिजली है. पूरा घर बिजली की रौशनी से भरा हुआ है. लेकिन हम घर में स्थित पूजा-स्थल और तुलसी  चौरे पर दिया जलाते हैं. दीपावली पर तमाम तरह की महंगी सजावटें करने के बावजूद हर घर के द्वार पर आम के पत्तों की माला लगाते हैं, स्वास्तिक चिन्ह बनाते हैं, श्री शुभ लाभ लिखते हैं. बिजली का भरपूर उजाला होने पर भी हम घर के बाहर दिए जलाते हैं. यह संस्कृति है. हम का या अन्य कोई वाहन खरीदते हैं, तो उसकी पूजा करते हैं. यह संस्कृति है.  सभ्यता के बदलते रहने का उदाहरण यह हो सकता है, कि दीयों की बनावट अलग हो गयी है या बिजली के बल्व की जगह अब एलईडी आदि का उपयोग होने लगा है. लेकिन दिये जलाने या घर को रोशन करने या वाहन की पूजा करने की परम्परा, यानी संस्कृति  में बदलाव नहीं आया.

 

हिन्दू संस्कृति

 

विभिन्न देशों की अपनी-अपनी संस्कृति होत्ती है. कहीं-कहीं पर मिलीजुली संस्कृति होती है. संस्कृति में भिन्नताएं मुख्य रूप से देशों की जलवायु, भौगोलिक स्थितियों आदि पर आधारित होती हैं. हिन्दुओं की बहुत समृद्ध संस्कृति है, जो कबसे प्रारंभ हुयी, कोई नहीं जानता. इसीलिए इसे सनातन संस्कृति कहा जाता है. यह धर्म के साथ बहुत घनिष्टता से सम्बद्ध है.  प्रत्येक संस्कृति के कुछ मूल आधार होता है.  इनके बाहरी  स्वरूप में समय के साथ अंतर आता रहते हैं, लेकिन मूल स्वरूप वही रहता है. आधुनिक सन्दर्भ में हिन्दू संस्कृति के प्रमुख आधार इस प्रकार हैं. पहला आधार है, धर्म के अनुसार, यानी ईमानदारी से  अपना कार्य-व्यवसाय करना. साथ ही सदाचार के साथ जीवन जीना.

 

दूसरा आधार है, इस तरह शिक्षा प्राप्त करना, जिससे लौकिक उन्नति के साथ ही पारलौकिक जीवन की ओर बढ़ा जा सके. शरीर को भगवान् का मंदिर मानकर उसे हर तरह से पवित्र रखा जाए. मन को भी यथासंभव विकारों से मुक्त रखा जाए. तीसरा आधार है, वर्ण-धर्म का पालन. वर्तमान में प्राचीन वर्ण व्यवस्था बदल गयी है. इसे पुराने रूप में लागू किया भी नहीं जा सकता. ऐसा करने की कोशिश करना नासमझी है. आजकल हर कोई व्यक्ति हर किसी व्यवसाय में है. कहीं पंडितजी जूते की दुकान खोले बैठे हैं, तो कहीं पहले अछूत माने जाने वाला व्यक्ति रेस्टोरेंट चला रहा है. ऎसी स्थिति में जो जिस काम को कर रहा ही, वही उसका वर्ण हो गया. जो भी व्यक्ति शिक्षा देने का काम कर रहा है, वह नए संदर्भ में ब्राह्मण हो गया. जो व्यक्ति फ़ौज या पुलिस बल में है, वह किसी भी परिवार में जन्मा हो, वह क्षत्रिय ही है. इसी तरह व्यापार करने वाला वैश्य और सेवा के कार्य में लगा व्यक्ति नए संदर्भों में शूद्र है. इसमें ऊँच-नीच की कोई बात नहीं है, कर्म के अनुसार वर्गों का निर्धारण है. कुल मिलाकर बात इतनी है,कि जिस भी व्यक्ति को जो काम मिला है, वह उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करे.

 

चौथा आधार है, आश्रम व्यवस्था. इसमें मनुष्य की आयु सौ वर्ष मानकर 25-25 वर्ष की चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया था. अब न तो मनुष्य सौ साल जीता और न परिस्थितियां ही ऎसी हैं, कि इन चारों आश्रमों का पालन किया जाए. इसमें यही रास्ता है, कि विद्यार्थी जीवन में पूरी एकाग्रता के साथ शिक्षा प्राप्त कर आगामी जीवन को सुचारु रूप से जीने के लायक बना जाए. शादी हो जाने पर परिवार का ठीक से पालन किया जाये. अधिक उम्र हो जाने और बच्चों के आत्मनिर्भर हो जाने पर परिवार में कम से कम दखल दिया जाये. इसके बाद जीवन को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित किया जाये. गृहस्थ धर्म के नियमों को समझकर उनका पालन क्या जाए.

 

पांचवा आधार दैव जगत पर विश्वास है. हिन्दू धर्म-संस्कृति में त्रिदेव को माना जाता है. ब्रह्माजी श्रृष्टि का निर्माण करते हैं, विष्णुजी पालन करते हैं और शिवजी इसका संहार करते हैं. वास्तव में ये तीनों अलग नहीं होकर, एक ही परब्रह्म के तीन पक्ष हैं. आधुनिक विज्ञान की भाषा में इन्हें इलेक्ट्रोन, न्यूटरोन औत प्रोटोन कहा जा सकता है. साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं को माना जाता है, जो विशिष्ट गुणों के प्रतिनिधि हैं. अपनी-अपनी कुल परम्परा और व्यक्तिगत रुचि के अनुसार अपना इष्ट निर्धारित कर उनकी उपासना की जाये. सभी देवी-देवताओं का यथायोग्य सम्मान किया जाए. छठवां आधार है, भीतर बाहर से शुद्ध रहना. भगवान् को  पवित्रता और स्वच्छता बहुत प्रिय है. अपने घर और कार्य-स्थल का वातावरण इस तरह रखा जाए, कि वहां अच्छी चेतनाएं आकर्षित हों. शरीर की शुद्धि के साथ मन की शुद्धि का भी पूरा ध्यान रखा जाये. अनावश्यक सांसारिक पचड़ों में पड़कर चित्त को खराब नहीं किया जाये. अकारण किसीको छुआ नहीं जाए. इसमें जाति-पांति की बात नहीं है. किसीको भी जब तक बहुत ज़रूरी नहीं हो, छूने से बचना चाहिए. आजकल तो जीवाणुओं के द्वारा जो बीमारियाँ फ़ैल रही हैं, उनसे बचाव के लिए यह बहुत ज़रूरी है.

 

सातवाँ आधार है, यज्ञों आदि पर विश्वास रखना. समय-समय पर यज्ञों का आयोजन करना और उनके आयोजन में तन-मन-धन से सहयोग करना. घर में अग्निहोत्र आदि संपन्न करना. आठवां आधार है, वेदों और वेद-सम्मत शास्त्रों में विश्वास रखना. सुविधानुसार उनका अध्ययन करना. बच्चों  को की कम उम्र से ही शास्स्त्रों के बारे में बताते  रहना. इन्हें पढ़नेकी ओर उन्हें प्रेरित करना. हिन्दुओं के लिये जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के लिए सोलह संस्कारों की व्यवस्था है, जिनका यथाशक्ति पालन करना चाहिए. पुनर्जन्म में विश्वास.  हिन्दू धर्म-दर्शन में पुनर्जन्म को माना गया है. यह कोई कपोल-कल्पना नहीं, बल्कि ऋषियों द्वारा साधना से प्राप्त अनुभवसिद्ध प्रमाण है. मनुष्य मोक्ष प्राप्त नहीं होने तक अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में विचरण करता रहता है. प्रेतलोक, नरलोक, पितृलोक, असुरलोक, स्वर्ग नरक आदि पर विश्वास रखना और धर्म के अनुसार आचरण कर बुरे लोगों से बचना. मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना माना गया  है. संक्षिप्त में हिन्दू  धर्म के ये ही मुख्य आधार हैं. समय के साथ बहुत-सी स्थितियों में परिवर्तन भले ही आ गया हो, लेकिन मूल भावना में कोई बदलाव नहीं है. हर हिन्दू को अपनी संस्कृति और धर्म को ठीक  से समझकर  वर्तमान परिवेश के अनुसार उन पर आचरण करने का प्रयास करना चाहिए.

 

 

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