जन्म और मृत्यु जीवन के दो पहलू हैं। जो इस दुनिया में आया है उसे इस दुनिया से विदा भी होना है। इस धरती पर कोई भी जीव अमर नहीं है। हालांकि आत्मा कभी मरती नहीं है।
शरीर के पांच तत्व मृत्यु के बाद पांच तत्वों में ही विलीन हो जाते हैं। मृत्यु अर्थात आत्मा सिर्फ शरीर बदलती है। यह मानव रूपी शरीर किराये के मकान की तरह होता है। इस मकान रूपी शरीर को एक-न-एक दिन खाली करना ही पड़ता है। अतः मृत्यु सत्य है और आत्मा अमर है, यह भूलना नहीं चाहिये।
मृत्यु एक अद्भुत घटना है जिसमें आत्मा जीवन के कर्म, संस्कार आदि को साथ ले जाती है। इसलिये मृत्यु को चिरनिद्रा भी कहा जाता है। मृत्यु अनेक रीति से आती है। कोई-कोई व्यक्ति बहुत दुःखी होकर मरते हैं, कोई पक्षाघात से अचानक ही मर जाते हैं। कोई यात्रा के दौरान मरता है तो कोई फांसी से मरता है। इन सबके पीछे उसके कर्म ही जिम्मेदार होता है।
कोई विरले मनुष्य ही होते हैं जो प्रभु स्मरण करते या सत्संग करते-करते शरीर छोड़ते हैं। कहा जाता है 'अंत मति सो गति । अतः समय मनुष्य की बुद्धि में जिसकी याद होती है, उस अनुसार उसकी गति होती है। इसलिये जब कोई मनुष्य मृत्यु के पास होता है तब उसके पास गीता पढ़ी जाती है, भजन गाए जाते हैं, उसे ईश्वर की याद दिलाई जाती है।
मानव के जन्म के साथ ही उसकी मृत्यु की तिथि, स्थल सब निश्चित कर दिया जाता है। जिस प्रकार फल जब पक जाता है तो वह स्वयं ही जमीन पर गिर जाता है। लेकिन जमीन पर गिरने पर उसके बीज से एक नये वृक्ष की शुरुआत होती है, उसी प्रकार मृत्यु भी जीवन का अंत नहीं है लेकिन नये जीवन का प्रवेश द्वार है।
जीवन एक खेल की तरह होता है। जिस प्रकार खेल में यह पता नहीं होता कि अगले पल क्या होने वाला है, ठीक उसी प्रकार जीवन में भी यह पता नहीं होता कि कब जीवन की आखिरी सांस बंद होने वाली है।
ज्ञानी पुरुष मृत्यु के अस्तित्व को स्वीकारते नहीं और कहते हैं कि परिवर्तनशील विश्व में किसी चीज का नाश नहीं होता। भक्त कहते हैं कि मृत्यु तो मंगलमय घटना है। क्योंकि भगवान के घर से बुलावा आया है।
कर्मयोगी कहते हैं- मृत्यु अर्थात जीवन रूपी व्यापार का हिसाब देने भगवान के घर जाना। मृत्यु में मनुष्य की मृत्यु होती है लेकिन मृत्यु के भय से भी बहुत मनुष्य मरते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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