संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जो स्वप्न न देखता हो। यह बात अलग है कि निद्रा टूटने पर कुछ स्वप्न याद ही नहीं रहते हैं और कुछ की स्मृति निद्रा टूटने के बाद भी बनी रहती है।
निद्रा एक ऐसी अवस्था है, जिसमें शरीर की समस्त क्रियाएं स्थगित हो जाती हैं। योग शास्त्र के अनुसार 'शवासन की यह सर्वोत्तम स्थिति है। मनुष्य की बाह्य क्रियाएं तो स्थगित हो जाती हैं, पर मस्तिष्क एक क्षण के लिए भी नहीं रुकता है।
जाग्रतावस्था में हम स्वयं इसका अनुभव कर सकते हैं। भले ही हम मौन बैठे हो, चल फिर रहे हो, यात्रा कर रहे हो, हमारा मस्तिष्क कुछ न कुछ करता सोचता ही रहता है। निद्रावस्था में इन्द्रियों के शिथिल पड़ जाने पर मस्तिष्क के विचार सजीव - साकार होने लगते हैं। चलचित्र की भांति हम उनको देखते हैं। यही स्वप्न हैं।
शरीर शास्त्रों के अनुसार हमारा मस्तिष्क केवल एक है। इसकी संरचना अत्यन्त जटिल मानी गयी है। मनोवैज्ञानिक मन-मस्तिष्क के दो रूप मानते हैं। एक चेतन और दूसरा अचेतन। जाग्रतावस्था में हमारा चेतन मन सक्रिय रहता है।
सुप्तावस्था में हमारा अचेतन मन सक्रिय हो जाता है। स्वप्न हमारे अचेतन मन के क्रियाकलाप ही हैं। यह क्रिया कलाप बड़े ही रहस्यमय होते हैं, पर जब भविष्य की सूचना देने लगे, तो मानव का चौंकना स्वाभाविक था। स्वप्न किसी रहस्यमयी शक्ति के अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं। कोई न कोई. रहस्यमयी शक्ति अवश्य है, जो स्वप्नों के माध्यम से भविष्य की सूचना देते हैं।
प्राय: ऐसे उदाहरण पाये जाते हैं कि अमुक व्यक्ति ने स्वप्न में अपने किसी परिजन या परिचित को भैंस पर बैठकर जाते देखा, तेल लगाये देखा और अगले दिन उसकी मृत्यु की सूचना आ गयी। इसी तरह और भी स्वप्नों का अलग अलग फल सामने आता है। इस प्रकार यह प्रमाणित है कि कुछ स्वप्न भविष्य का संकेत देते हैं, पर यह कहना कठिन है कि कौन सा किस समय का स्वप्न भविष्य सूचक है?
स्वप्नों के इसी परिणाम के कारण प्राचीन काल से ही इनका अध्ययन मनन किया गया। पक्षी शास्त्र और शकुन शास्त्र की भांति स्वप्न भी शास्त्र में आ गये। हमारे देश के अनेक प्राचीन तपस्वियों, मुनियों, चिंतकों और ऋषियों ने इस संबंध में अनुसंधान किये और अपने अपने मत दिये।
स्वप्नों का वर्णन अनेक धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध महावीर आदि की माताओं ने जन्म से पूर्व स्वप्न देखे और इस प्रकार भगवान और महापुरुषों के जन्म का भविष्य संकेत दिया । स्पष्ट है कि स्वप्न संबंधी मान्यताएं अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही हैं।
स्वप्नों का विश्लेषण हमें अपने प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। अथो इवल्वाहुजगरिव देश एवास्यैष इति यानि व जाग्रत पश्यति तानि सुप्तः।
'अब यही इसका जाग्रत के देश के समान देश है, ऐसा वह कहते हैं, क्योंकि जाग्रत में जीव जो पदार्थ देखता है, स्वप्न की अनेक दशाएं हैं।
अधिकांश स्वप्न निद्रा टूटते ही लुप्त हो जाते हैं। इतना तो स्मरण है कि स्वप्न देखा है पर क्या? याद ही नहीं पड़ता है।
स्वप्न का व्यापक अध्ययन करने और प्राचीन शास्त्रों के अनुसार स्वप्नों की दशा इस प्रकार है -
(1) रुग्णावस्था, कमजोरी के कारण देखे गये स्वप्न कुछ अर्थ नहीं रखते हैं।
(2) रात्रि के प्रथम, द्वितीय प्रहर में देखे गए स्वप्नों का फल कुछ नहीं होता है और हो भी तो बहुत विलंब से चरितार्थ होते हैं।
(3) मादक द्रव्यों का सेवन करने वालों के स्वप्न व्यर्थ होते हैं। उनका कोई फल नहीं मिलता है।
रात्रि के अंतिम प्रहर में स्वस्थ शरीर दशा में देखे गए स्वप्नों का कुछ अर्थ होता है और वह शीघ्र चरितार्थ होते हैं ।
वैज्ञानिकों की शोध के अनुसार स्वप्नों का दारोमदार खानपान पर भी निर्भर करता है। पाया गया है कि मांसाहारी भोज्य के स्वप्न प्रायः व्यर्थ होते हैं। हल्का सात्विक निरामिष भोजन कर्त्ताओं केही स्वप्न स्वच्छ और सार्थक होते हैं।
गोविन्द सिंह
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