Published By:धर्म पुराण डेस्क

ग्रहण क्या है ग्रहण काल का महत्व क्या है?

ग्रहण काल का महत्व-

जीवन में सब कुछ तो दुबारा भी प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु क्षण जो बीत गया है उसे दुबारा वापस नहीं लाया जा सकता, नक्षत्रों का जो संयोग, ग्रहण का जो प्रभाव इस बार बन रहा है, वह एक बार बीत गया तो दुबारा नहीं आ सकेगा। 

सूर्य ग्रहण तो आएगा पर जो नक्षत्र संयोग इस बार है, वे ठीक उसी प्रकार नहीं होंगे। हो सकता है, आपको अपने जीवन काल में दस सूर्य ग्रहण का लाभ उठाने का अवसर मिले, परन्तु जो अवसर एक बार चूक गए तो जीवन में मात्र नो ही ग्रहण बचेंगे और कौन जाने कल कैसी परिस्थिति हो, साधना कर सके या नहीं कर सके इसलिए श्रेष्ठ साधक यही है, जो क्षण के महत्व को पहचान कर निर्णय लेने में विलंब नहीं करते हैं।

साधना की प्रक्रिया उतनी कठिन या जटिल नहीं होती, महत्व तो क्षण विशेष का होता है, भारतीय ऋषियों ने काल ज्ञान और ज्योतिष पर इतने अधिक ग्रंथ लिखे हैं, तो उसके पीछे मतव्य यही है कि काल बहुत बलवान होता है।

अवतारों के जीवन में भी ग्रहण की महत्ता के प्रसंग देखने को मिलता है। भगवान राम ने अपने गुरु से दीक्षा ग्रहण के समय ही प्राप्त की थी, इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने भी सान्दीपनि ऋषि से दीक्षा प्राप्त की थी, तो उस समय ग्रहण काल चल रहा था क्योंकि ग्रहण के समय ही तपस्या को, दीक्षा या साधनात्मक प्रवाह को पूरी तरह से ग्रहण किया जा सकता है।

17 महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने जा रहा था, उधर कौरवों की सेना सुसज्जित हो चुकी थी, भीष्म, द्रोणाचार्य, कौरव सभी अपने-अपने रथो पर आरूढ़ थे। इस ओर पाण्डवों की भी सेना तैयार खड़ी थी कि कब युद्ध का बिगुल बजे और युद्ध प्रारंभ हो। 

पांडवों ने श्रीकृष्ण से युद्ध को प्रारम्भ करने की स्वीकृति मांगी, परन्तु कृष्ण ने उन्हें रोक दिया। कृष्ण ने कहा, कि यदि अभी युद्ध आरम्भ हो गया तो विजय किसकी होगी निश्चित नहीं कहा जा सकता है, परन्तु अभी कुछ देर में ही सूर्य ग्रहण लगने वाला है, 

यदि तब युद्ध का शंखनाद किया जाए, तो विजय निश्चित ही पाण्डवों के हाथ लगेगी। कृष्ण ग्रहण के इन सिद्ध क्षणों को समझ रहे थे और निश्चित समय पर जब पांडवों ने युद्ध प्रारम्भ किया तो इतिहास साक्षी है, कि एक-एक सारे कौरव काल के गर्त में समाते चले गए परन्तु पांडवों को कुछ भी नहीं हुआ। विजय श्री पाण्डवों के हाथ लगी।

विश्व तंत्र ज्योतिष पत्रिका के अनुसार ग्रहण काल वह समय है जब वातावरण स्वयं सिद्धिमय हो जाता है और बिना किसी कठिनाई के सरलता से सिद्धियां प्राप्त होती है। 

कई तंत्र शास्त्रों में एवं पुराणों में सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण में मंत्र-दीक्षा लेने के लिये सर्वोत्तम समय बताया गया है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए सूर्यग्रहण के समान और कोई समय है ही नहीं। सूर्यग्रहण में अनायास ही यन्त्र-मन्त्र की सिद्धि हो जाती है।
 

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