अहंकार इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है। अहंकार के कारण इंसान कहां से कहां पहुंच जाता है. अपने जीवन उद्देश्यों को भूल जाता है अहंकार के कारण ही इंसान सुख-सुविधाओं के भंवर में फंस जाता है।
अपने अहंकार को पोषित करने के लिए वह सुख सुविधाओं के साथ ताकत भी इकट्ठा करता है। सवाल यह है कि यह ताकत धन दौलत और सुख सुविधाएं क्या जीवन उद्देश्यों की पूर्ति करेगी। बिल्कुल नहीं जीवन के उद्देश्य तो ईश्वरीय गुणों को सीखना है। लेकिन अहंकार के कारण व्यक्ति जीवन के उद्देश्य से दूर होता चला जाता है। लेकिन याद रखिए अहंकार को एक न एक दिन नष्ट होना ही पड़ता है.
एक जंगल में बाँस का पेड़ था और उसके पास ही आम का एक पेड़ भी था। बाँस ऊँचा था, आम छोटा। एक दिन बाँस ने कहा- "देखते नहीं मैं कितना बड़ा हो चला, कितनी तेजी से बढ़ा और एक तुम हो जो इतनी आयु होने पर भी अभी छोटे ही बने हुए हो।" आम ने बाँस के सौभाग्य को सराहा, पर अपनी स्थिति पर भी असंतोष व्यक्त नहीं किया। समय बीतता गया। बाँस पककर सूख चला, किंतु आम की डालियां फलों से लदी और वह अधिक झुक गया।
बाँस फिर इठलाया - "देखते नहीं, मैं सुनहरा हो चला और बिना पत्तियों के भी दूर-दूर से कितना सुंदर दिखता हूँ। एक तुम हो कि जिसे फलों से लदने पर भी नीचे देखना पड़ रहा है।" आम ने फिर भी अपने संबंध में कुछ नहीं कहा। बाँस की सराहना भर उसने कर दी।
एक दिन यात्रियों का एक झुंड वहां पर आया और ठहरने के लिए आश्रय की तलाश की सो फलों से लदा छायादार आम्रवृक्ष सबको सुहाया और वे डेरा डालकर वहाँ रात्रि विश्राम करने लगे। भोजन पकाने के लिए जरूरत आग की पड़ी सो नजर दौड़ाई तो पास में ही सूखा बाँस खड़ा पाया तो उसे काटकर जलाना आरंभ कर दिया। अब बाँस को अनुभव हुआ कि अहंकार को एक न एक दिन नष्ट होना ही पड़ता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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