 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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यदि चन्द्रमा से केन्द्र में बृहस्पति हो तो गजकेसरी योग बनता है।
गजकेसरी योग-
गजकेसरी संजात: तेजस्वी धन्य धान्यवान्।
मेधावी गुणसम्पन्नो राज्यप्राप्ति नरो भवेत्॥
डॉ भोजराज द्विवेदी के अनुसार चंद्र से केंद्र में गुरु, एवं गुरु से केंद्र में चंद्रमा परस्पर 1, 4, 7, 10 स्थानों में हों तो गजकेसरी योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति अनेक मित्रों, प्रशंसकों एवं संबंधियों से घिरा रहता है एवं उनके द्वारा सराहा भी जाता है।
ऐसा जातक स्वभाव से विनम्र, विवेकवान एवं गुणग्राही होता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति गांव, शहर का मुखिया, नगर पार्षद, मेयर वगैरा होता है। ऐसा जातक मनुष्यों का नेता होता हुआ यशस्वी होता है तथा मृत्यु के बाद भी उसकी यश-गाथा अक्षुण्ण रहती है। गुरु व चंद्रमा की स्थिति जितनी बलवान होगी, यह योग भी उतना ही बलवान होगा।
डॉ वीबी रमन के अनुसार फल - जातक के सम्बन्धी अनेक होंगे, वह नम्र और उदार स्वभाव का होगा। वह गांव या शहर का निर्माण करेगा या उनके ऊपर शासन करेगा; मृत्यु के बाद भी उसकी प्रसिद्धि बनेगी। यहाँ और अन्यत्र फलों की प्राप्ति में काफी अन्तर की व्याख्या कर देनी चाहिये।
मूल लेखक कहते हैं कि इस योग में उत्पन्न व्यक्ति गाँव या शहरों का निर्माण करेगा। इन फलों की शाब्दिक व्याख्या से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। उन्हें आधुनिक स्थिति और देश के अनुसार अपनाना चाहिए। इस योग में उत्पन्न व्यक्ति नगर पालिका का सदस्य बन सकता है, इंजीनियर बन सकता है या यदि योग वास्तव में प्रबल है तो मेयर बन सकता है।
किसी योग के निर्धारित फल में योगकारक के बली और निर्बल होने के अनुसार संशोधन करना चाहिये। गांव से जिला में मजिस्ट्रेट होते हैं और उनके अलग-अलग अधिकार होते हैं। एक छोटे से पुण्य स्मारक के निर्माण और बड़े मंदिर के निर्माण में काफी अंतर है। योग दिया जाता है किन्तु ग्रहों भावों और नक्षत्रों के बल के अनुसार योग के फलों में अंतर हो जाता है।
 
 
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