Published By:धर्म पुराण डेस्क

गोमुखासन क्या है, गोमुखासन कैसे किया जाता है, गोमुखासन के लाभ

योगासन-गोमुखासन-

गोमुखासन योग प्रक्रिया में मुख्य आसन है अतः इस पर चर्चा करना आवश्यक है। सर्वप्रथम आसन पर ध्यान देते हुए हमें आसन कैसे करना चाहिए? इसकी जानकारी संक्षेप में निम्न प्रकार से है आसन करते हुए ध्यान रहे कि आसन अपनी शारीरिक क्षमता से धीरे-धीरे, थकान व तनाव से बचते हुए करें। 

जितना संभव हो उतने समय ही आसन अवस्था में बैठें, धीरे-धीरे समय को बढ़ावें। यदि थकान/तनाव महसूस हो तो बीच-बीच में विश्राम करते हुए आसन प्रक्रिया को दोहराएं। ध्यान रहे आसन में झटके नहीं लगें इसलिए सही अवस्था में बैठे जैसे कि आसन के लिए उपयुक्त हो। 

साथ ही आसन करने से पूर्व प्रत्येक आसन के उद्देश्य एवं लाभ की जानकारी अवश्य प्राप्त करें। सरल अवस्था के आसन शुरू करते हुए ही कठिन अवस्थाओं के आसनों पर जाएं।

दूसरी प्रक्रिया में आसन लगाते हुए जहां संभव हो मूलबंध जरूर लगावें। बंध तीन प्रकार के होते हैं। जिसमें मूलबंध मुख्य है। मूलबंध का मतलब गुदाद्वार (मलद्वार) का आकुंचन व प्रसारण करना है। इससे त्रिदोष वात, पित्त व कफ का नाश होता है. भूख अच्छी लगती है। यह योग/प्राणायाम अभ्यास के लिए बहुत उपयोगी है।

गोमुखासन जैसा कि नाम से ही विदित है, गोमुखासन यानि इस आसन में शरीर का आकार गोमुख के समान हो जाता है। इस आसन को करने के लिए उचित आसन (दरी या चद्दर) का प्रयोग करते हुए जमीन पर बैठे। 

अब बायें पैर को आगे से मोड़कर पीछे की तरफ लाएं। ध्यान रहे, एड़ी का हिस्सा गुदा पर लग जाए, फिर दायें पैर को आगे से मोड़कर उसकी ऐड़ी बांयें नितम्ब की बगल में लगा दें। पैरों के पंजे खासतौर पर सीधा करके जमीन से लगा दें तथा घुटने एक-दूसरे से सटे रखें। 

तत्पश्चात् दायें हाथ को कंधे के पीछे ले जाकर व बायें हाथ को बायीं ओर उलटकर बायीं बगल के नीचे से होकर पीठ की तरफ ले जाने का प्रयास करें। दांयें हाथ व बायें हाथ की अंगुलियों पीठ के पीछे (ग्रिप) आपस में मिला लेवें। 

उपरोक्त क्रिया करने के पश्चात् ध्यान रहे कि कमर ऊपर की तरफ खिंची हुई हो। आँखें पूर्णरूप से खुली हों, श्वास क्रिया लम्बा गहरा श्वास-प्रश्वास करना चाहिए। उपरोक्त प्रकार की क्रिया एक तरफ की क्रिया है। पुनः पैर, हाथ बदलकर दूसरी तरफ की क्रिया करनी चाहिए।

ज्योतिष मंथन-

लाभ : इस आसन से हृदय व फेफड़ों की स्वाभाविक मालिश होती है। दमा व क्षय में यह आसन बहुत लाभदायक है। इससे रक्त संचार सुचारू रूप से होता है। फेफड़ों के छिद्र शीघ्र साफ होते हैं, पाँव, भुजाएं, कंधे, घुटने व कमर को बल मिलता है। 

साथ ही शरीर के जोड़ लचीले बनते हैं और हड्डियां मजबूत होती हैं। इससे पीठ व साइटिका के दर्द में भी फायदा होता है। साथ ही गुर्दा रोग, मधुमेह, बवासीर, रक्तचाप में भी बहुत लाभ होता है। सुविधा हेतु आसन करते हुए चित्र प्रस्तुत है। 

संक्षेप में योग से आरोग्य की तरफ जाने हेतु निम्न बातों का अवश्य ही ध्यान रखें : 

1. योगाभ्यास हमेशा क्रमवार ही करना चाहिए। जैसे- 1. यौगिक क्रियाएं, 2. आसन, 3. प्राणायाम, 4. विश्राम। प्रशिक्षित योग संस्थान से जुड़ते हुए, योग शिक्षक के निर्देशों में योग करें। अपनी डॉक्टरी जाँच करावें, जिससे रोग के अनुसार शिक्षक आपके लिए उचित आसन व योग करवा सकें।

2. योगाभ्यास करने से कम से कम एक घंटा पहले और इसके तुरंत बाद कुछ नहीं खाएं।

3. योगाभ्यास के समय ढीले कपड़े ही पहनें।

4. फर्श पर प्लास्टिक, चादर या कम्बल बिछावें। साथ ही योगाभ्यास खुले, हवादार स्थान पर ही करना उचित है। पसीना आने पर पसीना तौलिये से नहीं पोंछें, इसे हथेली से ही रगड़ें।

5. आसन अपने शरीर, मन और अपनी आत्मा पर नियंत्रण करते हुए एकाग्रता सहित करें। यदि किसी प्रकार की थकान या बीमारी हो तो योगाभ्यास नहीं करें या जैसा आपके शिक्षक बताएं उसी के अनुसार योगाभ्यास करें। अंत में योग चिकित्सा में रोग के मूल कारण का पता लगाने का प्रयास किया जाता है और अंदरूनी तालमेल के द्वारा शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक पहलुओं को सुदृढ़ कर, रोगों का उपचार किया जाता है। 

यह नवजीवन का संचार करने वाली पद्धति है जो शरीर और मस्तिष्क के बीच तादात्म्य स्थापित करती है।

गोपाल लाल शर्मा


 

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