काया सिद्धि काया यानी देह| इस देह को सिद्ध कैसे किया जाए? इस बॉडी को कैसे प्योर किया जाए? योग में हमारे देह के अंदर मौजूद अमृतधारा को प्राप्त करना और उसके जरिए देह को सिद्ध करना काया सिद्धि कहा जाता है|
हमारी ऊर्जा अधोमुखी है यानी ऊपर से नीचे की ओर बहती है| अधोमुखी ऊर्जा और अधोमुखी सहस्त्रदल कमल को ऊर्ध्वमुखी करके उस कमल में मौजूद अमृत सुधा रस को देह के लिए प्रयोग करना ही काया सिद्धि का मार्ग है|
माना जाता है कि सुधा धारा ऊपर से नीचे की ओर बह रही है| नीचे आकर सुधा धारा नष्ट हो जाती है| उस अमृतधारा का हम लाभ नहीं ले पाते|
हमारे शरीर का रस अमृत रूप में बदलकर ऊर्ध्वगामी यानी ऊपर की ओर वायु के माध्यम से चढ़ता है और सहस्त्रार में इकट्ठा होता है|
ऊपर की ओर गति के कारण यह रस अमृत रूप में परिवर्तित हो जाता है| हमारे शरीर के सहस्त्रार में मौजूद इस अमृत रूपी रस का योगी पान करते हैं| इसे गरल चंद्र कहा जाता है| इस गरल चंद्र का ही योगी जन पान करते हैं|
गरल चंद्र के द्वारा देह और मन का शोधन होता है और सिद्ध देह की प्राप्ति होती है|
दिव्य सिद्ध देह की प्राप्ति के लिए बिंदु को निम्नतम यानी नीचे के चक्रों से उठाते हुए ऊपर ले जाया जाता है| जब यह बिंदु उर्ध्व गमन करता है तब आनंद की प्राप्ति होती है|
यह बिंदु जब नीचे की तरफ जाता है यानी अधोगमन करता है, सेक्स की तरफ बढ़ता है, मूलाधार की तरफ जाता है, तब भी आनंद मिलता है लेकिन यह आनंद अस्थाई होता है, इसे मलिन आनंद कहा गया, लेकिन जब यह बिंदु उर्ध्वगामी होता है, आनंद देता है|
बिंदु जब नीचे की ओर जाता है तो काम-देह की उत्पत्ति होती है| और ऊपर की ओर जाता है दिव्य देह प्रकट होता है|
काया सिद्धि में कहा गया है कि इस बिंदु का स्खलन नहीं होना चाहिए|
योगी कहते हैं कि बिंदु का स्वभाव अधोगति करना या नीचे की ओर जाना है| इस स्वभाव को बदलकर योगी उस बिंदु को ऊपर की ओर ले जाते हैं|
योग में जागृत Kundalini पहले उस बिंदु को पूर्ण रूप से अधोगामी बनाती है, कामदेव को संतुष्ट कर फिर उसे ऊपर की ओर जाती है|
बिंदु जैसे-जैसे ऊर्ध्वगमन करता है आनंद बढ़ता चला जाता है| आनंद परमानंद में बदल जाता है| इसके बाद सहजानंद की प्राप्ति होती है| जब इस ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन होता है तब विभिन्न प्रकार के आनंद प्रकट होते है|
विभिन्न मार्ग कहते हैं कि हमारी देह में चार सरोवर मौजूद हैं| काया साधन की सिद्धि होने पर यह सरोवर प्रकट हो जाते हैं| हमारे शरीर के बाएं भाग में कामसरोवर और मानस सरोवर है| दक्षिण भाग में प्रेम सरोवर और अक्षय सरोवर हैं| अक्षय सरोवर हमारे देह में मस्तक में स्थित सहस्त्रदल कमल में मौजूद होता है| यहां काल, रोग, दोष, मृत्यु नहीं है|
काया सिद्धि में तीन भूमि है पहली भूमि प्रवर्तक भूमि, दूसरी भूमि साधक भूमि, तीसरी भूमि सिद्धभूमि|
पहली भूमि में नाम साधना, दूसरी भूमि में गुरु प्राप्ति के बाद मंत्र साधना, मंत्र साधना से कुण्डलिनी का जागरण सिद्धभूमि, कुण्डलिनी के जागरण से सिद्धभूमि में भाव साधना, प्रेम साधना, क्रिया साधना, कला साधना, ज्ञान साधना आदि स्वयम प्रकट होते हैं| साधक सिर्फ दर्शक बन जाता है माँ आदि शक्ति गुरु रुपी कुण्डलिनी कर्ता होती है| इसके बाद सिद्ध अवस्था प्राप्त होती है|
सिद्ध अवस्था में श्री भगवान के नित्य लीला मंडल में प्रवेश प्राप्त होता है| मृत्यु के साथ रुग्ण देह चली जाती है| इसके बाद नई देह प्राप्त होती है| लेकिन चरम सिद्धि प्राप्त नहीं होती| क्योंकि इसमें माया क्लेश यानी माया का अंश मौजूद होता है|
नाथ सम्प्रदाय के अनुसार माया तीन प्रकार की है अशुद्ध माया, शुद्ध माया और महामाया| महामाया चित्तशक्ति रूप है| इसके बाद माया से उत्पन्न विकार तिरोहित हो जाते हैं| मुक्त पुरुष के अनुग्रह से अशुद्ध माया शुद्ध माया में परिणित हो जाती है| देह को भी अमृत मिल जाता है| इस प्रकार जीवन मुक्त पुरुष जीव होकर भी ईश्वर तुल्य होता है|
अशुद्ध जगत के साथ उसका संबंध कुछ थोड़े समय तक रहता है| जब उसे परामुक्ति की प्राप्ति होती है तब योगी चिन्मय ज्योति स्वरूप में अवस्थान करता है| शुद्ध माया भी उस समय नहीं रहती| वहां देह और आत्मा का भेद नहीं रहता|
आत्मा की इच्छा शक्ति के द्वारा ही Kundalini का जागरण होता है| यह कुंडलिनी जागृत होकर नाड़ीगत आवरणों को उपचारित करती है| देह को निर्मल करती है इसी से आत्म शुद्धि होती है| शक्ति के केंद्र स्थित चक्र अधीन हो जाते हैं तब दिव्य देह प्राप्त होती है|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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