 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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भाग्यफल एवं कर्मफल-
सम्पूर्ण विश्व में सभी व्यक्ति अपना-अपना कर्म करते हैं. इसके बावजूद सभी व्यक्तियों को कर्मफल की प्राप्ति एक समान नहीं होती।
कोई व्यक्ति अत्यंत दरिद्र अवस्था में होता है और कुछ व्यक्ति सफलता की ऊँचाइयों पर बैठे होते हैं। यह एक ऐसा विषय है जो असंख्य व्यक्तियों को परेशान करता है। नीचे कोई रहना नहीं चाहता, ऊपर सभी पहुंच नहीं पाते।
परिणामस्वरूप भीतर ही भीतर असंतोष पनपने लगता है। यहां पर असंतोष की आवश्यकता नहीं है, अपितु अपने भीतर झांकने की आवश्यकता है।
किसी के पीछे रह जाने के और किसी के आगे निकल जाने के लिए दो कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी हो सकते हैं- एक पूर्व जन्मों का भाग्यफल एवं दो, वर्तमान जन्म का कर्मफल ।
भाग्यफल व्यक्ति को हर हाल में भोगना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति को पिछले सौ सालों तक के कर्मों का फल किसी भी जन्म में भोगना पड़ता है। इसके लिये व्यक्ति को कुछ अधिक करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
कर्मफल के लिये व्यक्ति को भाग्य पर निर्भर न रहकर अपने जो कार्य हैं, उन्हें पूर्ण निष्ठा एवं श्रम के साथ करते रहना चाहिए। इसका फल भी व्यक्ति को कभी अच्छा, तो कभी कम अच्छा अवश्य मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति के साथ भाग्यफल एवं कर्मफल प्रबलता के साथ जुड़ा हुआ है।
कुछ व्यक्ति भाग्य के भरोसे रहकर कर्म की पूरी तरह उपेक्षा कर देते हैं। उनके सामने आगे बढ़ने के अनेक अवसर आते हैं, परन्तु वे उसका समुचित लाभ नहीं उठा पाते हैं। अवसर निकलने के पश्चात् वे काफी लम्बे समय तक इसके बारे में पश्चाताप करते रहते हैं।
कुछ व्यक्ति ऐसा मानते हैं कि वे कुछ कर ही नहीं सकते अथवा वे जो काम करना चाहते हैं, उसके लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। इस बारे में यह लिखना आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों को पर्याप्त साधनों की उपलब्धि सहज में ही नहीं हो पाती, इसके लिये प्रयास करने पड़ते हैं। प्रयास के पश्चात् जितनी हम अपेक्षा करते हैं, उससे कहीं अधिक साधन हमें प्राप्त होते हैं।
यहां पर व्यक्ति की व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी है कि वह अवसरों को पहचाने, उपलब्ध साधनों का सही उपयोग करे, पश्चाताप करने में समय नहीं गवाएं और निरन्तर अपना कार्य पूर्ण श्रद्धा एवं आस्था के साथ करता रहे।
ईश्वर आगे बढ़ने के कुछ अवसर समस्त प्राणियों को उपलब्ध कराता है। यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह इन अवसरों को ठीक से समझे, ठीक से उपयोग में लाये और आगे बढ़े।
हमें हमारे द्वारा किये गये कर्मों का वर्तमान में चाहे वांछित फल न मिले किन्तु हमें कभी भी इससे हतोत्साहित होकर अच्छाई का मार्ग छोड़कर बुराई के रास्ते पर नहीं चलना चाहिये।
 
 
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