Published By:धर्म पुराण डेस्क

क्या है वृद्धावस्था ?
वृद्धावस्था एक ऐसी अवस्था है, जो सभी के लिए अप्रिय होती है। प्रत्येक नर-नारी इस अवस्था की कल्पना मात्र से ही चिंतित हो जाता है। वे इसे अपनी जीवन लीला का अंतिम भाग मानकर निरुत्साहित एवं निराशा से युक्त होकर अकर्मण्य हो बैठते हैं।
वास्तव में वृद्धावस्था स्वयं कोई निश्चित अस्तित्व नहीं रखती। इसी हेतु इसकी प्राप्ति कोई निश्चित आयु पर ही नहीं होती।
निर्भरता - वृद्धावस्था निम्न बातों पर निर्भर होती है। देश, काल, आहार विहार, आचार-विचार। इन्हीं बातों पर वृद्धावस्था का शीघ्र या विलंब से आना निर्भर है।
कारण - वृद्धावस्था निम्न कारणों से आती है और इनमें से किसी भी कारण का अति व्यवहार अधिक शीघ्रता से वृद्धत्व ला देता है।
ये कारण है - अनियमित ऋतु- देश, काल एवं स्थल प्रकृति के विपरीत आहार तथा अपौष्टिक भोजन।
ऋतु, देश, काल एवं स्थल की प्रकृति के विरुद्ध दैनिक व्यवहार।
अत्यधिक उपवास, व्यायामरहित जीवन।
दुस्साहस अत्यधिक रति रत रहना।
शोक, क्रोध, चिंता, भय आदि मानसिक क्लेश विभिन्न प्रकार के शारीरिक जीर्ण।
रोग: विपत्ति मय जीवन ।
आयु वृद्धावस्था की आयु जनजीवन के स्वास्थ्य से सम्बन्ध रखती है। पहले सौ वर्ष की आयु, तदनन्तर 75 वर्ष, 60 और गत शताब्दी में 50 वर्ष की आयु से वृद्धावस्था का प्रारम्भ माना गया है। आजकल यदि गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाए तो प्रत्यक्ष रूप से देखने पर अधिकांश जन 35 से 40 वर्ष की आयु में ही वृद्धावस्था का प्रारम्भ अनुभव करने लगते हैं।
शारीरिक इसमें शरीर की सभी इन्द्रियों जैसे हाथ, पैर, मूत्रेन्द्रिय, गुदा, मुख इन पांच कर्मेन्द्रियों की शक्तियां तथा क्रिया दिन पर दिन कमजोर होने लगती हैं। फलस्वरूप चलने-दौड़ने, उठने-बैठने में थकावट होना, अधिक बोलने में भी थकावट होना तथा जोर से न बोल सकना, कम सुनाई देना, जीभ के स्वाद में भी कमी तथा बोलने की कमी, चमड़ी के अन्दर झुर्रियां पड़ जाना • आदि लक्षण देखने में आते हैं।
मानसिक - इस अवस्था में अधिक दुखी रहना, चिंता, क्रोध एवं सदैव ही भयभीत बना रहना, साहस का अभाव, किसी भी कार्य के निर्णय बार-बार बदलना आदि अनेक लक्षण हैं, जो मानसिक वृद्धावस्था के परिचायक होते हैं।
उपद्रव - बालों का सफेद होना, सभी इन्द्रियों का अपने-अपने विषयों में सामर्थ्य के बिना ही अधिक अभिरुचि रखना उपद्रव है, जिन्हें इन्द्रिय लोलुपता कहते हैं। शरीर में दर्द, जोड़ों में दर्द आदि वायु के रोग तथा कफ के विभिन्न रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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