निमोनिया के बारे में हर व्यक्ति को सजग रहना चाहिए कोरोना वायरस सबसे ज्यादा कॉम्प्लिकेशंस निमोनिया के कारण ही हुए थे।
रोग डिप्लोकोकस निमोनिया (Diplococcus Pneumonia) नामक जीवाणु के कारण होता है. इसकी चार जातियां होती हैं. प्रथम तीन प्रकार के जीवाणुओं से उत्पन्न हुआ रोग अत्यन्त तीव्र होता है. चौथे प्रकार का निमोनिया अपेक्षाकृत सौम्य होता है. इस रोग का जीवाणु निमोनिया से आक्रान्त व्यक्ति के थूक में सदा उपस्थित रहता है और इसका संक्रमण श्वास-प्रश्वास द्वारा निकट रहने वाले व्यक्तियों में हो सकता है.
निमोनिया के सहायक कारण ..
अधिक भीड़ भाड़ वाले स्थान, गंदे मकान जहां पर शुद्ध वायु नहीं पहुंचती हो वहां पर यह अधिक होता है. दुर्बल व्यक्ति, शक्ति से अधिक श्रम करने वाले लोग और जिनके पास शीत से रक्षा करने का कोई साधन न हो, ऐसे लोग इस रोग से अधिक ग्रसित होते हैं.
वर्षा ऋतु के उत्तरार्द्ध और शीत के प्रारंभ में विशेषकर जब ऋतु परिवर्तन होता है, यह रोग अधिक होता है. कुछ रोगों के उपद्रव स्वरूप भी निमोनिया हो जाता है, जैसे- मधुमेह, रोहिणी, प्लेग, इन्फ्लुएंजा, हृदय विकार, आंत्रिक ज्वर, मदात्यय आदि.
निमोनिया के रोगी को खांसी, छींक आदि से जीवाणु बाहर निकलते हैं और वायुमंडल से श्वास-प्रश्वास लेने वाले निकट के व्यक्ति के मुख तथा नाक में ये प्रवेश कर जाते हैं जो निमोनिया रोग को उत्पन्न करते हैं. यदि पुरुष का शरीर दुर्बल हो अथवा शीत लग जाए तो ये जीवाणु श्वास मार्ग से फुफ्फुस में चले जाते हैं और वहां पर शोथ उत्पन्न कर देते हैं. साथ ही कुछ जीवाणु रक्त में प्रवेश कर उसे जीवाणु मुक्त कर देते हैं. इस प्रकार निमोनिया का प्रसार होता है और रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति को हो जाता है.
लक्षण-
एकाएक रोग का आक्रमण होते ही रोगी को शीत मालूम होती है. इसके बाद 10-12 घंटे के भीतर रोगी को ज्वर 104 डिग्री तक बढ़ जाता है. बेचैनी, सिरदर्द, अग्निमांद्य, पसलियों में पीड़ा आदि लक्षण होते हैं. ज्वर संतत स्वरूप का होता है. आठ दिन तक तापक्रम में एक डिग्री से अधिक कमी-बेशी नहीं होती है. होंठों पर फुंसियां निकल आती है, सांस तथा नाड़ी की गति तेज हो जाती है किंतु नाड़ी की अपेक्षा श्वास की गति अधिक तीव्र होती है.
सांस लेने में कठिनाई होती है तथा खांसते समय पसलियों में तीव्र पीड़ा होती है। जिसके कारण रोगी खांसी को रोकना चाहता है. कई बार खांसने पर थोड़ा-सा कफ निकलता है जो कालापन लिए हुए कुछ-कुछ लाल होता है, यह अत्यंत चिपकने वाला होता है.
ज्वर प्रायः 7वें, 9वें अथवा अन्य विषम दिनो में एकाएक उतर जाता है. यह प्रायः ज्वर 9वें दिन उतर ही जाता है. यदि ज्वर इसके बाद उतरता है तो धीरे-धीरे उतरता है. यह शारीरिक उपद्रवों तथा रोगी की दुर्बलता के कारण होता है, ज्वर उतरने के साथ फुफ्फुस की विकृति एकाएक दूर नहीं होती लेकिन अन्य सभी लक्षण दूर हो जाते हैं.
दो साल तक के बच्चों में ब्रांको निमोनिया होता है. इसमें विकृति फुफ्फुस के ऊपरी भाग में होती है. कफ कम निकलता है, लेकिन जो निकलता भी है बच्चा उसे निगल जाता है. सिरदर्द, निद्रानाश, कंपन तथा फेफड़ों में जकड़न होती है और सिर पीछे की ओर झुक जाता है. कान के मध्य में सूजन, फुफ्फुसावरण में पूय बनना तथा एकत्र होना अतिसार आदि इसके लक्षण हैं.
बाल, वृद्ध, मदिरा पीने वाले, मधुमेह रोगी, वृक्क विकार वाले तथा दुर्बल व्यक्ति निमोनिया की चपेट में अधिक आते हैं. निमोनिया से पीड़ित व्यक्तियों में से 14 से 20 प्रतिशत रोगी काल कवलित हो जाते हैं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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