 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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सकारात्मक सोच का प्रभाव व्यक्ति अपने जीवन में अनेक लोगों के सम्पर्क में आता है, अनेक लोगों के साथ काम करता है तथा अनेक स्थितियों में अनेक लोगों के साथ व्यवहार करता है।
यह सब जीवन का आवश्यक हिस्सा है। इसी के साथ व्यक्ति अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है, मेल-मिलाप करता है। यह आवश्यक नहीं कि एक व्यक्ति के विचारों से सभी सहमत हो। असहमति का होना कोई विशेष बात नहीं होती है, लेकिन अनेक व्यक्ति, अनेक अवसरों पर इस बात को लेकर असहज हो उठते है कि दूसरे व्यक्ति उसकी बात को ठीक प्रकार से मान नहीं रहे हैं।
यही से व्यक्ति की सोच में परिवर्तन आना प्रारंभ हो जाता है। कुछ व्यक्ति इस स्थिति को बिलकुल सामान्य रूप से लेते हैं। असहमति से उत्पन्न हुई कुंठा को तुरन्त निकाल बाहर करते हैं। इसके विपरीत कुछ व्यक्ति इस कुंठा को अपने भीतर उसी प्रकार से बनाये रखते हैं जैसे कि एक व्यक्ति अपने गमले में रोज पानी डालता है।
यह सोच व्यक्ति के अन्दर एक नकारात्मक प्रभाव करती है। वह व्यक्ति अपने आपको दूसरों से धीरे-धीरे अलग करता चला जाता है। यह समझता है कि अन्य व्यक्ति उससे सहमत नहीं हो सकते।
यह स्थिति व्यक्ति को कभी-कभी बहुत हानिकारक हालत में धकेल देती है। इसलिये अपनी सोच में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। कोई आपसे सहमत नहीं होता है तो कोई बात नहीं। अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक बनाये रखें।
सकारात्मक सोच के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति में ऊर्जा बनी रहती है और वह नया कुछ करने को हमेशा तत्पर रहता है। नई विचारधारा बनती है, सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं। आपका व्यक्तित्व एक विलक्षण ओज से परिपूर्ण हो उठता है।
दूसरे व्यक्ति आपसे आवश्यकता से अधिक प्रभावित होने लगते हैं। इसी के साथ आपको महसूस होता है कि आप अन्य व्यक्तियों से काफी ऊपर उठ गये हैं। यह सब आपकी सकारात्मक सोच का ही परिणाम हैं।
 
 
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