Published By:अतुल विनोद

शक्ति क्या है शक्ति कौन है, शक्ति आराधना कैसे करें..

Weaklings have no place in the world.

'कमजोरों के लिये संसार में कहीं जगह नहीं है।' 

हमें अपनी पूरी शक्तियों का ज्ञान नहीं है, इसलिए हम संसार को भार जैसे मालूम हो रहे हैं और हमारा कहीं ठिकाना नहीं है। क्योंकि हमको खुद अपनी शक्ति में बिलीफ नहीं है। परमात्मा ने किसी को निर्बल या बलवान नहीं बनाया है। हम अपनी अवस्था को जैसी चाहो वैसी बना सकते हैं। 

हमारे प्राचीन ऋषि, मुनि, महात्माओं की शक्तियाँ और सिद्धियाँ थीं। इन बातों के राग अलापने से उन्नति की तरफ हम कुछ भी नहीं बढ़ सकते।

प्रयत्न करो, पुरुषार्थ करो, परिश्रम करो, तप करो और भीतर जो शक्ति का भण्डार पड़ा है उसे खोल दो। 

कोई इसे पराशक्ति, ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति कहते हैं। कोई चितिशक्ति कहके पुकारते हैं; कोई जगत माता, जगदंबा, जगत जननी के नाम से स्मरण करते हैं। यह आनन्दमयी चितिशक्ति उपास्य की ही शक्ति है। उपासक को बिना इस शक्ति की सहायता के परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती।

'नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः'– शक्तिहीन को न आत्मा की और न परमात्मा की ही प्राप्ति हो सकती है। इसलिये शक्ति की उपासना करो। चिति शक्ति पूर्ण प्रेमस्वरूप है; चितिशक्ति सत्य स्वरूप है; चितिशक्ति सर्वव्यापक है, चेतनमय है।

चितिशक्ति की प्रसन्नता के लिये तुम्हें बलि देना होगा लेकिन हिंसात्मक बाह्य बलि नहीं। अपने अहंकार रूपी मस्तक को प्रेम रूपी तलवार से पृथक् करके उनके चरण कमलों में समर्पण करो। प्राणी मात्र पर प्रेम करो। चितिशक्ति जगत जननी जगदम्बा है; 

चितिशक्ति का रहस्य:

सनातन धर्म कहता है तुच्छ-से-तुच्छ कीट और महान-से-महान प्राणी ब्रह्मा तक में सब में है-सर्वप्रिय है। क्योंकि उसका निवास सब प्राणियों में है, सब उनकी प्रिय सन्तति हैं। सबकी रक्षा और पालन अपने ऊपर कष्ट लेकर कर रही है। चिति शक्ति प्रेमरूप है, चर-अचर प्राणिमात्र में व्यापक है।

संत कहते हैं भूत मात्र में चिति शक्ति है, इसलिये सबको आत्मवत् समझो। बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री-पुरुष, रङ्क-राजा, साधु या पापी, मूर्ख या विद्वान, सबके प्रति प्रेम की धारा बहाओ। शुद्ध विचारों को ही निरंतर अन्तःकरण में उदय होने दो। अशुद्ध विचार पास भी न फटकने पावे। शुद्ध विचार और शुद्धाचरण ही माँ को प्रसन्न करने का उपाय है। सद्विचार करो, शुद्धाचरण का पालन करो; अगर माँ को प्रसन्न करना है, शुद्ध विचार अखण्ड हृदय में जागृत रखो।

शक्ति का संचय करो, गुरु शक्ति की ही उपासना करो; शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सब कुछ है; शक्ति की ही सर्वत्र आवश्यकता है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, साहसी बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो।

तुम निरे मिट्टी के पुतले नहीं हो, हाड़-मांस और रक्त के थैले नहीं हो, निर्जीव मुर्दे के समान नहीं हो, किन्तु एक सजीव शक्ति सम्पन्न चेतन आत्मा हो। तुम्हारे जीवन का मकसद किसी विशेष उद्देश्य को पूर्ण करना है।

धर्म कहता है प्रत्येक मनुष्य में दैवी शक्ति छिपी हुई है और वह सब कुछ कर सकता है। समस्त मानसिक और शारीरिक निर्बलताओं पर विजय प्राप्त करो और जीवन को आनंदमय बनाओ। कोई निर्बल व्यक्ति स्वतंत्र नहीं हो सकता। 

शक्ति स्वयं ईश्वर का रूप है। यह शक्ति सर्वव्यापक है। यह शक्ति तुम्हारे भीतर गुप्त है। तुम इस शक्ति के बल से अपनी परिस्थिति बदल सकते हो। तुम में शक्ति है। शक्ति तुम्हारे भीतर-बाहर हर जगह मौजूद है।

शक्ति तुम्हारी जननी है, तुम्हारे शरीर और प्राणों की जननी है। जगत में और तुम्हारे शरीर में जो है-चेतन है, उस सबकी वही दयामयी जननी है। 

यह कल्पना करो कि तुम सदा शक्ति में ही रहते हो, शक्ति में ही चलते हो और शक्ति में ही जीवित रहते हो। आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, दायें-बायें, सब तरफ शक्ति ही-शक्ति को देखते रहो।

तुम अपनी मन:स्थिति को उस महान शक्ति से संयुक्त कर लो जिससे सब शक्तियां प्रवाहित हो रही हैं।

शक्ति की प्रार्थना:

रात्रि के पिछले हिस्से में अपने बिस्तर से उठ बैठो और शांत होकर एक दिव्य ध्वनि को, जो सारे संसार में गूंज रही है, ध्यान से सुनो। यह ध्वनि तुम्हारे हृदय मंदिर में हो रही है। हृदय मंदिर ही चिति शक्ति का निवास स्थान है। अङ्ग-प्रत्यंग को ढीला करके शांति और स्थिरता से किसी भी सुखासन से बैठ जाओ और प्रार्थना करो|

दयामयी जननी! आनन्दमयी, स्नेहमयी, अमृतमयी गुरु शक्ति माँ!! तुम्हारी जय हो। माँ! 

जिस प्रकार बिना पंख के पक्षी अपनी माँ की बाट जोहते रहते हैं, जैसे भूख से पीड़ित बछड़े अपनी माँ की बाट देखते रहते हैं, वैसे ही गुरु शक्ति माँ! मैं तुम्हारी बाट देखता रहता हूँ। तुम जल्दी से आकर मुझे दर्शन दो। तुम मेरे मन में, शरीर में व्याप्त हो। मैं तुम्हें समझ सकूँ, तुम्हारा दर्शन कर सकूँ, ऐसी बुद्धि शक्ति मुझे प्रदान करो।

'हे माँ! तुम्हारा स्मरण करने से समस्त जीवों के भय का नाश होता है और शांत-चित्त से स्मरण करने से अत्यन्त शुद्ध बुद्धि तुम देती हो। दरिद्रता, दुःख और भय का नाश करने वाली तुम्हारे सिवा कौन है। सबों के उपकार के लिये तुम्हारा चित्त सदा दया से सुकोमल रहता है।'

गुरुदेव के प्रति समर्पित रहो, गुरु मंत्र का निरंतर जाप करो| 

इस साधन से तुम्हें विलक्षण बातें मालूम होंगी।

इसका सिद्धांत यह है कि समस्त विश्व का संचालन और ज्ञान जिस महत्तत्त्व द्वारा हो रहा है उसे गुप्त मन या सर्वव्यापक मन कहते हैं। उसको चलाने वाली गुरु शक्ति है। प्रतिदिन इस गुरु शक्ति की श्रद्धा के साथ उपासना करने से शक्ति तुम्हें प्रेम करेगी, चाहेगी। तुम भूल भी जाओ, माँ तुम्हें कभी नहीं भूलती।

जिन-जिन कामनाओं को पूर्ण करना हो उनको गुरु शक्ति से कह दो और अनन्य चिंतन करो, तत्काल तुमको उन पदार्थों की प्राप्ति होगी जो तुम्हारे हित में हैं।

विद्या, धन, बल, ऐश्वर्य- ये सब इस पराशक्ति से ही उत्पन्न होते हैं और शक्ति का साधन करने से जरूर फलसिद्धि होती है। ग्रंथ कहते हैं इस महाशक्ति की उपासना से तुममें आश्चर्यजनक शक्ति की जागृति होगी और तुम असाध्य से भी असाध्य कार्य को साध्य कर सकोगे। 

संसार में जीवित रहना हो तो शक्ति-सम्पादन करो और यह समझते रहो कि तुम माँ की गोद में सदैव सुरक्षित हो और समग्र शक्तियों का भण्डार तुम्हारे अन्दर है।

जय गुरुदेव…


 

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