 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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ईश्वर की प्रार्थना प्रत्येक देश में और प्रत्येक धर्म में किसी-न-किसी रूप में की जाती है। व्यक्तिगत रूप में अथवा सामूहिक रूप में, घर में मंदिर में संस्थाओं में अथवा आश्रमों में प्रार्थना होती है- यह हम देखते हैं। इन प्रार्थनाओं को देखकर हमारे मन में स्वभावतः यह प्रश्न उठता है कि सच्ची प्रार्थना क्या है, उसका उद्देश्य क्या है, उसका महत्व क्या है तथा प्रार्थना करने से हमें क्या लाभ होता है।
प्रार्थना संत की, भक्ति और महात्माओं के जीवन को समृद्धि है, शांति है, बल है। वे अपने जीवन को प्रत्येक पड़ी और प्रत्येक पल में प्रार्थना के अगम्य प्रभाव और अपरिमित शक्ति का अनुभव करते हैं। प्रार्थना के निर्मल और शांत जल में निमज्जन करने वालों को जो परमानन्द प्राप्त होता है, उसके सामने संसार का कोई सुख अथवा स्वर्ग के विलास वैभव का कोई आनन्द कोई बिसात ही नहीं रखता।
सच्ची प्रार्थना केवल ईश्वर की पूजा या बाह्य उपासना-मात्र नहीं है, बल्कि प्रार्थना में लीन हुए मनुष्य के भीतर से सहज ही निस्सृत होने वाला तथा परमेश्वर के अगाध शक्ति-सागर में विलीन होने वाला एक अदृश्य आत्मसुख का स्रोत है।
अखिल ब्रह्माण्ड के नष्ट सर्वशक्तिमान् सर्वोद्धारक परम पिता 'सत्यं शिवं सुन्दरम्'- स्वरूप, सर्वव्यापी होकर भी अदृश्य रहने वाले परमात्मा के साथ एकता न होने का मानवीय प्रयास ही 'प्रार्थना' है। प्रार्थना का अन्तिम ध्येय और फल परमात्मा के साथ आत्मा का ऐक्य सम्पादन है। वाणी और विचार से अतीत महान प्रभु के साथ आत्मा का यह तादात्म्य भी वर्णनातीत है, निगूढ़ है।
हृदय को गहराई से अनन्य प्रेम और श्रद्धा पूर्वक की गई प्रार्थना मनुष्य के तन और मन पर अद्भुत प्रभाव डालती है। प्रार्थना के द्वारा मनुष्य में जो बुद्धि को निर्मलता और सूक्ष्मता, जो नैतिक बल, जो आत्मश्रद्धा, जो आध्यात्मिक शक्ति और आत्म विकास तथा जीवन को उद्विग्न और संतप्त करने वाले जटिल सांसारिक प्रश्नों को सुलझाने की पारदर्शी समझ और ज्ञान की प्राप्ति होती है, उसकी तुलना में इस जगत में दूसरी कोई ऐसी शक्ति या रसायन नहीं है, जो मनुष्य के जीवन पर इतना चमत्कारिक प्रभाव डाल सके।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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