Published By:धर्म पुराण डेस्क

प्रेतयोनि क्या है, प्रेतयोनि किसे मिलती है, प्रेतयोनि कैसे प्राप्त होती है, कौन बनता है भूत प्रेत…

प्रेतयोनि- प्रसंगतः यहाँ पर यह भी कह देना उचित है कि चौरासी लाख योनियों में एक प्रेतयोनि भी मानी गयी है। 

कुछ पापों का परिणाम भोगने के लिये प्रेतयोनि मिलती है। जल में डूबकर मरने वाला, अग्नि में जलकर मरने वाला, वृक्ष से गिरकर मरने वाले, किसी के ऊपर अनशन करके मरने वाला आदि मनुष्य प्रेतयोनि में जाते हैं। वहाँ पर भी मृत आत्माओं के लिये वायु-प्रधान-शरीर मिलता है। 

प्रेतों के हृदय में यह इच्छा सर्वदा बनी रहती है कि जहां पर उनका धन है, उसके शरीर के पार्थिव परमाणु हैं, उनके शरीर सम्बन्धी परिवार हैं, वहां पर रहें, अपने सम्बन्धियों को अपनी तरह बनायें। सभी भौतिक पदार्थों का संचयन करने की सामर्थ्य वायु तत्त्व में रहती है। 

यही कारण है कि प्रेत वायु - शरीर प्रधान होने से जिस योनि की इच्छा करता है, वह साँप, बैल, भैंस, आदि शरीर को ग्रहण कर लेता है; परंतु कुछ ही समय तक वह शरीर ठहर सकता है, पीछे सब पार्थिव परमाणु शीघ्र ही बिखर जाते हैं। 

जिसका अन्त्येष्टि संस्कार शास्त्रविहित क्रियाओं से नहीं किया जाता, वह प्राणी कुछ दिनों के लिये प्रेतयोनि प्राप्त करता है। शास्त्रोक्त विधि से जब उसका प्रेत-संस्कार, दशगात्र विधान, षोडश श्राद्ध, सपिण्डन विधान किया जाता है, तब वह प्रेत-शरीर से छूट जाता है। 

मनुष्य से इतर योनियों में जीव के ऊपर पंचकोशों का विकास पूर्ण रूप से नहीं रहता। इसलिये पशु-पक्षियों की आत्मा पूर्व-शरीर के साथ गाढ़ सम्बन्ध (अविनिवेश) नहीं कर पाती, वहां पर प्रकृति माता के सहारे से शीघ्रातिशीघ्र अन्य योनि को जीव प्राप्त कर लेता है। अतएव तिर्यग्-योनियों के लिये दाह संस्कार नहीं बताये गये हैं।


 

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