Published By:दिनेश मालवीय

धर्म क्या है ?

धर्म क्या है ?

धर्म क्या है ?

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प्रश्न :- धर्म क्या है ?

उतर:- धर्म को अगर एक शब्द में कहना हो तो वो है" ध्यान " । अब इस बात को विस्तार से समझना होगा कि ध्यान कैसे है धर्म , धर्म स्वम् तक पहुचने का विज्ञान है , धर्म परायण व्यक्ति जीवन मे सभी कृत्यों को धर्म पूर्वक निभा कर स्वम् तक कि यात्रा सम्पूर्ण करता है । धर्म मे स्तिथि होने के लिए अनेको नियम ,अनुशासन ,भक्ति ,अहिंसा ,कर्तव्य ,स्वाभिमान ,काम क्रोध लोभ मोह अहम न जाने कितने आचरण करने के बावजूद भी धर्म से भटक सकता है साधक , लेकिन एक ध्यान को धारण करने से साधक स्वम् ही धर्म मे स्तिथ हो जाएगा । जैसे आप किसी से पूछे कि मुझे फूलो के बाग मे जाना है और कृपया उसका पता बताए ,तो आपको बताया जाए के सीधे जाना फिर दाए हो जाना फिर बाए होजाना फिर सीधे हो जाना ,फिर सूर्य की दिशा से तिरछी गली को तरफ हो लेना ,वहाँ से तालाब की तरफ चल पड़ना ओर वहाँ दो तलाब है गन्दे तलाब की तरफ नही मुड़ना ओर एक वृक्ष आएगा उसके सामने ही बाग है ,अलग अलग तरह के आचरण इसी तरह आ मार्ग प्रशस्त करते है धर्म के लिए तो जीव धर्म तक का रास्ता सहज नही पाता ,लेकिन अगर आपको बाग तक के रास्ते पर जाने के लिए सुझाव दिया जाए के बाग से आने वाले फूलो की सुगंधी को महसूस करो और जिधर से आती उसी ओर बढ़ते चलो ,ओर आप सही दिशा की तरफ चल रहे हो इसका एक ही प्रमाण है कि सुगंध बढ़ती जाएगी हर एक कदम सही चलने से । तो आप देखे आपका रास्ता कितना आसान व सुगन्ध मय हो जाएगा ,इसी प्रकार ध्यान के द्वारा धर्म मे सहज ही स्तिथ हुआ जा सकता है ।

ध्यान है भीतर की शांति मौन उसे बरकरार रखते हुए जीवन यापन करे ,तो धर्म मे आ जाएगे व मोक्ष तक कि यात्रा सहज हो सकती है । अब देखो ध्यानी हिंसा नही कर पाएगा ,ध्यानी धोका नही दे सकता उसकी आवश्यकता महसूस नही करेगा , ध्यानी मोहित नही होगा अतार्थ उसे मोह नही पकड़ेगा क्योंकि उसे भीतर ध्यान का रस है और ध्यान के रस से मन खिल उठता है ,मन को वश में करने को कोई आवश्यकता नही रहेगी क्योंकि वो कहि भाग ही नही रहा भीतर के रस में लीन है । ध्यानी हर एक कार्य करेगा ध्यान में रह कर फिर भी निर्लेप रहेगा । कीचड़ में कमल की भांति । ध्यानी के भीतर प्रतिपल एक सहजता महसूस करोगे ,ध्यान कोई ऐसी क्रिया नही जिसे 24 घण्टे में स 1 या 2 घण्टे निकाल कर किया जाए ,हां उसे शुरुआत में इस तरह से समझा अवश्य जा सकता है लेकिन ध्यान तो हरपल भीतर एक रस होने के लिए है ।

जिसका जीवन ही ध्यान हो चुका है वह धर्म मे स्तिथ है । वह उठेगा तो ध्यान पूर्वक बैठेगा चलेगा सोये गा ,खाएगा कार्य करेगा कुछ भी करेगा सब ध्यान पूर्वक ,ओर ध्यान में रहने के लिए कुछ विशेष नही करना केवल भीतर से आती शांति की आभा को उसी प्रकार महसूस करना है जिस तरह स्नान उपरांत ताजगी महसूस करने के लिए कोई विशेष प्रयत्न नही करना पड़ता वह स्वत ही महसूस होती है । ध्यान में का स्नान है । आसान लगाए कुछ समय बैठक कर मन को एकाग्र कर भीतर शांत चित्त हो वही स्नान है मन का ओर उसकी ताजगी दिन भर महसूस करे । प्रतिदिन करने से शांति बढ़ती जाएगी और आप सहज ही प्रतिपल ध्यानी हो जाएगा जिससे आपका जीवन ध्यान मय हो जाएगा और आप धर्म मे स्तिथि हो सकते है व स्वम् तक कि यात्रा कर सकते है ,

जिसके लिए संत कबीर कहते है

कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूँढत बन माहि ।

अर्थ: जिस प्रकार एक कस्तूरी हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढता फिरता है जबकि वह सुगंध उसे उसकी ही अपनी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से मिल रही होती है परन्तु वह जान नहीं पाता, उसी प्रकार धर्म का मार्ग भी जीव के भीतर है लेकिन धर्म परायण होने के लिए केसी केसी साधनाए करता है कितने तीर्थ करता कितने यज्ञ करता है ,लेकिन जो वस्तु भीतर है उसे बाहर खोजने से प्राप्त नही हो सकती ,आशा करता हु भीतर कोई किरण उतरी होगी धर्म की ध्यान की ,धन्यवाद

धर्म जगत

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