रेटिनोपैथी के चरण-
रेटिनोपैथी की शुरुआती अवस्था में रेटिना की रक्त वाहिनियों में बदलाव आता है, ये चौड़ी हो जाती हैं, दीवार मोटी हो जाती है, कमजोर हो जाती है, इनमें द्रव बाहर निकलकर फैल जाता है । दृष्टिपटल में सूजन आ जाती है, कुछ हिस्सों में रक्त प्रवाह कम हो जाता है।
बाद में रेटिना की सूक्ष्म धमनियों में जगह-जगह गांठ बन जाती हैं, दीवार फैल जाती है, यह दशा 'माइक्रो एन्यूरिज्म' कहलाती है। इन धमनियों से खून बाहर निकलकर रेटिना के ऊपर रुई के फोहे के रूप में जमा हो जाता है। ये धब्बे धीरे-धीरे खत्म होते रहते हैं, पर नए बनते रहते हैं।
यदि खून का रिसाव ज्यादा मात्रा में होता है तो खून पूरे रेटिना फैल जाता है। पर्दे पर सफेद-पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे बन जाते हैं। यह हाई एक्जूडेट कहलाता है। यह चरण नॉन प्रोलिफैवरेटिव रेटिनोपैथी कहलाता है।
प्रोलीफैवरेटिव रेटिनोपैथी-
यह गंभीर स्थिति है टाइप- 1, मधुमेह मरीजों में, मधुमेह ग्रस्त महिलाओं में, गर्भावस्था में होने की ज्यादा संभावना होती है। इस स्थिति में निगाह कम हो जाती है, रेटिना स्थायी रूप से दृष्टि ग्रस्त हो सकता है, अपने स्थान से हट सकता है।
नयी रक्त वाहिनियां बनती हैं, यह आँख की स्नायु 'आप्टिक नर्व ' और रेटिना के केंद्र (मैकुला) पर भी बनती है। रक्त वाहिनियां आगे बढ़कर विट्रियस में भी फैल जाती हैं। शुरुआत में रक्त वाहिनियां अकेली होती हैं, बाद में इनके चारों तरफ कोशिकाओं का जाल भी बन सकता है।
नयी रक्त वाहिनियों की दीवार कमजोर होने के परिणामस्वरूप आसानी से फटने के कारण रक्त रिसाव होकर रेटिना पर फैल सकता है। विट्रियस में भर सकता है या रक्त थक्का सिकुड़ता है तो रेटिना अपने स्थान से निकल जाती है, यह दशा 'रेटिनल डिटैचमेंट' कहलाती है, निगाह अत्यधिक कम हो जाती है, अंधे भी हो सकते हैं।
सावधानियाँ एवं उपचार-
हर मधुमेह मरीज में देर-सबेर विभिन्न गंभीरता की रेटिनोपैथी होती है और भिन्न गति से बढ़ती है।
रक्त ग्लूकोज स्तर पर सख्ताई से नियंत्रण करने से रेटिनोपैथी देर से शुरू होकर धीमी गति से बढ़ती है। साथ ही वसा, कोलेस्ट्रॉल स्तर पर भी नियंत्रण करें। यदि असामान्य है तो इन पर भोजन पर और सख्ती से नियंत्रण करें। जरूरत होने पर दवाओं द्वारा भी।
*मधुमेह मरीज यदि साथ में उच्च रक्तचाप ग्रसित है तो रेटिनोपैथी का खतरा ज्यादा होता है। यह तेजी से बढ़ सकती है। अतः रक्तचाप पर भी सख्ताई से नियंत्रण जरूरी है।
* मधुमेह ग्रस्त मरीजों को रक्तचाप से 130/180 मि० ली० से कम पर नियंत्रण करना चाहिए ।
* सिगरेट, तम्बाकू, मादक तत्वों के सेवन से भी इसका खतरा बढ़ जाता है, अतः सेवन न करें।
* यदि वजन ज्यादा है तो डाइटिंग कर सामान्य पर नियंत्रित करें।
* विटामिन-सी, बी-12, ई, ए, एवं अन्य एंटीऑक्सीडेंट सेलेनियम, जिंक इत्यादि सेवन से रक्त वाहिनियों की दीवारें कुछ मजबूत होती हैं, रक्तस्राव की संभावना कम हो जाती है, रेटिना की अन्य संरचनाएँ भी सामान्य रहती हैं। अत: इनका सेवन करें।
* गंदी अँगुलियों, गंदे कपड़े से आँखों को न छुएं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024