 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मंत्रजप में माला अत्यंत महत्त्वपूर्ण है इसलिए समझदार साधक माला को प्राण जैसी प्रिय समझते हैं और गुप्त धन की भांति उसकी सुरक्षा करते हैं।
माला को केवल गिनने की एक तरकीब समझकर अशुद्ध अवस्था में भी अपने पास रखना, बायें हाथ से माला घुमाना, लोगों को दिखाते फिरना, पैर तक लटकाये रखना, जहाँ-कहीं रख देना, जिस किसी चीज से बना लेना तथा चाहे जिस प्रकार से गूँथ लेना सर्वथा वर्जित है।
जपमाला प्रायः तीन प्रकार की होती है: करमाला, वर्णमाला और मणिमाला।
(क) करमाला :
उँगलियों पर गिन कर जो जाप किया जाता है, वह करमाला जाप है। यह दो प्रकार से होता है : एक तो उँगलियों से ही गिनना और दूसरा उंगलियों के पर्वों पर गिनना। शास्त्रतः दूसरा प्रकार ही स्वीकृत है।
इसका नियम यह है कि चित्र में दर्शाये गये क्रमानुसार अनामिका के मध्य भाग से नीचे की ओर चलो। फिर कनिष्ठिका के मूल से अग्रभाग तक और फिर अनामिका और मध्यमा के अग्रभाग पर होकर तर्जनी के मूल तक जायें। इस क्रम से अनामिका के दो, कनिष्ठिका के तीन, पुनः अनामिका का एक, मध्यमा का एक और तर्जनी के तीन पर्व... कुल दस संख्या होती है। मध्यमा के दो पर्व सुमेरु के रूप में छूट जाते हैं।
साधारणतः करमाला का यही क्रम है, परन्तु अनुष्ठान वेद से इसमें अन्तर भी पड़ता है। जैसे शक्ति अनुष्ठान में अनामिका के दो पर्व, कनिष्ठिका के तीन, पुनः अनामिका का अग्रभाग एक, मध्यमा के तीन पर्व और तर्जनी का एक मूल पर्व- इस प्रकार दस संख्या पूरी होती है ।
श्रीविद्या में इससे भिन्न नियम है। मध्यमा का मूल एक, अनामिका का मूल एक, कनिष्ठिका के तीन, अनामिका और मध्यमा के अग्रभाग | एक-एक और तर्जनी के तीन - इस प्रकार दस संख्या पूरी होती है।
करमाला से जप करते समय उंगलियां अलग-अलग नहीं होनी चाहिए। थोड़ी-सी हथेली मुड़ी रहनी चाहिए। सुमेरु का उल्लंघन और पर्वों की संधि (गाँठ) का स्पर्श निषिद्ध है। यह निश्चित है कि जो इतनी सावधानी रखकर जप करेगा, उसका मन अधिकांशतः अन्यत्र नहीं जायेगाहाथ को हृदय के सामने लाकर, अंगुलियों को कुछ टेढ़ी करके वस्त्र से उसे ढककर दाहिने हाथ से ही जप करना चाहिए।
जप अधिक संख्या में करना हो तो इन दशकों को स्मरण नहीं रक्खा जा सकता। इसलिए उनको स्मरण करने के लिए एक प्रकार की गोली बनानी चाहिए। लाक्षा, रक्तचन्दन, सिन्दूर और गौ के सूखे कंडे को चूर्ण करके सबके मिश्रण से वह गोली तैयार करनी चाहिए। अक्षत, अँगुली, अन्न, पुष्प, चंदन अथवा मिट्टी से उन दशकों का स्मरण रखना निषिद्ध है। माला की गिनती भी इनके द्वारा नहीं करनी चाहिए ।
(ख) वर्णमाला :
वर्णमाला का अर्थ है अक्षरों के द्वारा जप की संख्या गिनना। यह प्रायः अन्तर्जप में काम आती है, परन्तु बहिर्जप में भी इसका निषेध नहीं है।
वर्णमाला के द्वारा जप करने का विधान यह है कि पहले वर्णमाला का एक अक्षर बिंदु लगाकर उच्चारण करो और फिर मंत्र का - अवर्ग के सोलह, कवर्ग से पवर्ग तक के पच्चीस और यवर्ग से हकार तक आठ और पुनः एक लकार - इस क्रम से पचास तक की गिनती करते जाओ। फिर लकार से लौटकर आकार तक आ जाओ, सौ की संख्या पूरी हो जायेगी। 'क्ष' को सुमेरु मानते हैं। उसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
संस्कृत में 'त्र' और 'ज्ञ' स्वतंत्र अक्षर नहीं, संयुक्ताक्षर माने जाते हैं। इसलिए उनकी गणना नहीं होती। वर्ग भी सात नहीं, आठ माने जाते हैं। आठवाँ शकार से प्रारम्भ होता है। इनके द्वारा 'अं, कं, चं, टं, तं, पं, यं, शं' यह गणना करके आठ बार और जपना चाहिए - - ऐसा करने से जप की संख्या 108 हो जाती है।
ये अक्षर तो माला के मणि हैं। इनका सूत्र है कुण्डलिनी शक्ति। वह मूलाधार से आज्ञाचक्र पर्यन्त सूत्र रूप से विद्यमान है। उसी में ये सब स्वर-वर्ण मणिरूप से गुंथे हुए हैं। इन्हीं के द्वारा आरोह और अवरोह क्रम से अर्थात् नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे जप करना चाहिये । इस प्रकार जो जप होता है, वह सद्यः सिद्धिप्रद होता है।
(ग) मणिमाला :
मणिमाला अर्थात् मनके पिरोकर बनायी गयी माला द्वारा जप करना मणिमाला जाप कहा जाता है। जिन्हें अधिक संख्या में मंत्र जप करना हो, उन्हें तो मणिमाला रखना अनिवार्य है।
यह माला अनेक वस्तुओं की होती है जैसे कि रुद्राक्ष, तुलसी, शंख, पद्म बीज, मोती, स्फटिक, मणि, रत्न, सुवर्ण, चांदी, चन्दन, कुशमूल आदि। इनमें वैष्णवों के लिए तुलसी और स्मार्त, शाक्त, शैव आदि के लिए रुद्राक्ष सर्वोत्तम माना गया है। ब्राह्मण कन्याओं के द्वारा निर्मित सूत से बनायी गयी माला अति उत्तम मानी जाती है।
माला बनाने में इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि एक चीज की बनायी हुई माला में दूसरी चीज न आये। माला के दाने छोटे-बड़े व खंडित न हों।
सब प्रकार के जप में 108 दानों की माला काम आती है। शान्तिकर्म में श्वेत, वशीकरण में रक्त, अभिचार प्रयोग में काली और मोक्ष तथा ऐश्वर्य के लिए रेशमी सूत की माला विशेष उपयुक्त है।
माला घुमाते वक्त तर्जनी (अंगूठे के पास वाली उंगली) से माला के मनकों का कभी स्पर्श नहीं करना चाहिए। माला द्वारा जप करते समय अंगूठे तथा मध्यमा ऊँगली द्वारा माला के मनकों को घुमाना चाहिए। माला घुमाते समय सुमेरु का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । माला घुमाते-घुमाते जब सुमेरु आये तब माला को उलटकर दूसरी ओर से घुमाना प्रारंभ करना चाहिए।
यदि प्रमादवश माला हाथ से गिर जाये तो मंत्र को दो सौ बार जपना चाहिए, ऐसा अग्निपुराण में आता है :
प्रमादात् पतिते सूत्रे जप्तव्यं तु शत द्वयम्।
(अग्निपुराण:327.5)
यदि माला टूट जाय तो पुनः गूँथकर उसी माला से जप करो। यदि दाना टूट जाए या खो जाए तो दूसरी ऐसी ही माला का दाना निकालकर अपनी माला में डाल लो। किन्तु जप करो सदैव अपनी ही माला से क्योंकि हम जिस माला पर जप करते हैं वह माला अत्यंत प्रभावशाली होती है।
माला को सदैव स्वच्छ कपड़े से ढक कर घुमाना चाहिए। गोमुखी में माला रखकर घुमाना सर्वोत्तम व सुविधाजनक है। ध्यान रहे कि माला शरीर के अशुद्ध माने जाने वाले अंगों का स्पर्श न करे। नाभि के नीचे का पूरा शरीर अशुद्ध माना जाता है। अतः माला घुमाते वक्त माला नाभि से नीचे नहीं लटकनी चाहिए तथा उसे भूमि का स्पर्श भी नहीं होना चाहिए।
गुरुमंत्र मिलने के बाद एक बार माला का पूजन अवश्य करो। कभी गलती से अशुद्धावस्था में या स्त्रियों द्वारा अनजाने में रजस्वलावस्था में माला का स्पर्श हो गया हो तब भी माला का फिर से पूजन कर लो।
 
 
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