1. जल नेति- सर्वप्रथम जल नेति के लिए नेति लोटा में हल्का गर्म व नमक डाला हुआ जल लें व जिस नासिका से श्वास चल रही हो उसमें पानी डालें व दूसरी नासिका से निकाल दें। यह क्रिया दोनों ओर से करें। अब कपालभाति करें जिससे जल निकल जाये।
2. कुंजल- कुंजल के लिए एक पात्र में नमक मिला हुआ जल गुनगुना लें व उकडू बैठकर यथासंभव 1-2 लीटर जल ग्रहण करें, तत्पश्चात् खड़े होकर झुकें व दो अंगुलियों को छोटी जीभ कौआ (अर्थात् गले के अन्दर ऊपर से लटकता हुआ मांस का टुकड़ा) पर स्पर्श करें। जिससे सम्पूर्ण जल बाहर निकल जाये।
3. कपालभाति- यह क्रिया पद्मासन या किसी सरल आसन में बैठकर गहरी श्वास लें तथा श्वास को छोड़ते रहें, जिसमें शरीर स्थिर रहे व पेट की मांसपेशियां अन्दर की ओर जाएँ, ऐसा करने का प्रयास करें।
4. त्राटक- यह क्रिया एक कोलाहल रहित स्थान में करें। अपनी आँखों की सीध में मोमबत्ती जलायें व लौ को देखते रहें जब तक कि आँसू न गिरने लगे। पुनः इस लौ को अन्तः त्राटक के रूप में देखें। यह क्रिया 1 मिनट से शुरू करें और तीन बार देखें।
5. शंख प्रक्षालन (लघु)- यह हमारे आहार नाल से लेकर बड़ी आंत तक की सफाई की क्रिया है। यह क्रिया तीन चरणों में पूरी होती है।
हल्का नमकीन गुनगुना पानी छः गिलास रख लें। दो-दो गिलास पीने के बाद ताड़ासन, तिर्यक्ताड़ासन, कटिचक्रासन, तिर्यक्भुजङ्गासन व उदराकर्षण आसन सभी आठ-आठ चक्र करें। पूरी आहार नाल की सफाई करता हुआ पानी निकल आएगा।
सावधानियां- किन्हीं कुशल मार्गदर्शक के संरक्षण में ही अभ्यास करें। इसके तुरंत बाद शवासन करें। बाद में खिचड़ी खाएं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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