 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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शिव आदि और अनंत है। भगवान शिव परमात्मा है, परम पिता परम शिव से शिव पैदा होते हैं शिव से ब्रह्मा विष्णु महेश पैदा होते हैं। वास्तव में शिव कोई आकार नहीं शिव परमात्मा हैं। एक तत्व है जो हर जगह व्याप्त है।
परमात्मा शिव का तात्विक रूप कोई कुल परिवार नहीं है और न कोई जाति है। संसार के सब परिवार उसके ही हैं। सबका स्वामी और मुखिया वही है। शिव तो समूची मानव जाति का आदि पुरुष है, परम पिता है तथा सब जातियाँ उसी की है। उसमें न कोई ऊँची है न नीची हैं|
भगवान शिव अकाल पुरुष हैं। वे काल के चंगुल में नहीं हैं। वे तो काल के स्वामी महाकाल है। शिव ही इस सृष्टि का जन्मदाता, पालनकर्ता और संहारकर्ता पुरुष है। इसलिए वह परम पुरुष है। शिव के ऊपर सांसारिक प्राणियों की तरह काल नहीं मंडराता, काल तो स्वयं शिव का दास है। वह परम पुरुष तो आलेख है उसका कोई नाम रूप नहीं है।
सूफी संत मौलाना रूम कहते हैं- “ वे नामे ॐ ॐ नामे न दारम्-हर नामे कि ख़ानी सर बर आमद - ॐ।" उसका नाम ले-लेकर शुरू करता हूँ परन्तु क्या नाम लूँ ? उसका तो कोई नाम है ही नहीं और हर नाम उसी का है, लेकिन उसे किसी भी नाम से पुकारो वह आ जाता है। यही भाव गुरु नानकदेव जी का भी है।
एक शिव ही सत्य है। वह संतोष है। संतोष उसे होता है, जिसे कहीं से कुछ नहीं चाहिए। परमपिता शिव स्वयं पूर्ण है। वह किसी से कुछ नहीं लेता। जो शिव को पा लेता है, वह संतुष्ट हो जाता है। उसके मन में कोई कामना नहीं रहती। सत्य वह परमात्मा ही है। इसी सत्य को गहराई से समझते ही एक साधारण मनुष्य भी आत्मा से सुन्दर हो जाता है।
 
 
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