 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जीवन में यदि कोई तकलीफ है तो उसका कारण आपके प्रारब्ध के दोष या पाप कर्म होते हैं यही पाप कर्म कुंडली में कालसर्प दोष या अन्य किसी दोस्त के रूप में सामने आते हैं।
यदि आप पाप कर्मों को समझ जाएं तो फिर आप कभी भी किसी दोष से युक्त नहीं होंगे। इसलिए आपको पापों के प्रकारों को समझना चाहिए। यदि आप पाप के सभी प्रकारों को समझ कर उनसे दूरी बनाते हैं तो फिर आपको ना तो इस जन्म में न ही अगले जन्म में किसी तरह की कोई परेशानी होगी। हम आपको बता रहे हैं पाप के प्रकार।
पाप के प्रकार-
पापों के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. प्राणातिपात (हिंसा),
2. असत्य,
3. चौर्य,
4. बलात् मैथुन (बलात्कार),
5. द्रव्यमूर्च्छा (परिग्रह-संग्रह का स्वभाव),
6. क्रोध,
7. मान,
8. माया,
9. लोभ,
10. राग,
11. द्वेष,
12. कलह,
13. दोषारोपण,
14. पिशुनता (चुगलखोरी),
15. असंयम में रति (नियम पालन न करने का स्वभाव),
16. संयम में अरति (रुचि न होना),
17. पर परिवाद (परनिंदा),
18. माया-मृषा (कपटपूर्ण मिथ्या),
19. मिथ्या दर्शन रूपी शल्य। बुराई, बुरी नियत और बेईमानी भी पाप कहलाते हैं।
 
 
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