सोऽहं साधना-
सोऽहं साधना जीव व ईश्वर के मिलन का बोध कराती है। वास्तव में मनुष्य हर समय श्वास लेता-छोड़ता है व सोऽहं साधना करता रहता है, पर एकाग्रता न होने के कारण वह पहचान नहीं पाता है। इसमें श्वास लेते हुए 'सो' की ध्वनि तथा श्वास छोड़ते हुए 'हम' की ध्वनि होती है।
विधि - पदमासन या सुखासन में स्थिर बैठे। शरीर सीधा व शिथिल। धीरे-धीरे श्वास लें व छोड़ें। श्वास लेते हुए "सो" की ध्वनि सुनें व भावना करें कि हम विश्व प्राण को धारण कर रहे हैं, फिर श्वांस छोड़ते हुए "हम्” की ध्वनि करते हैं। जिसमें भावना करें कि कषाय कल्मषों व अहंकार को "बाहर कर रहे हैं। भाव "जो वो है वही मै हूँ"। स्थिर बैठे रहें, सोऽहम् ध्वनि को सुनते रहें।
कोई विचार या बाहरी आवाज आपको आकृष्ट न करने पाए। हर अन्दर जाने वाली श्वास "सोऽऽऽ" बाहर जाने वाने वाली श्वास "हम्ऽऽऽ"। धीरे-धीरे श्वास लंबी होती जाएगी. एकाग्रता बढ़ती जाएगी पूरी सजगता श्वसन प्रणाली पर होगी। “जो वो है वही मैं हूँ" का भाव बलवान् होता जाएगा।
कोई भी श्वास आपकी जानकारी के बगैर न अन्दर आएगी न बाहर जाएगी। पूरी सजगता, पूरी तन्मयता से 10 मिनट तक यह साधना करें। थोड़ी देर के बाद 'सोऽहम्' मंत्र से चेतना को हटाएँ। बाहरी वातावरण के प्रति सजग हों। मन ही मन साधना के प्रभाव को जानें-समझें। थोड़ी देर स्थिर बैठे रहें, फिर धीरे-धीरे हाथ पैर हिलाते हुए दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ें। हाथों को आँख पर रखें, फिर धीरे-धीरे आँख खोलें। सोऽहम् साधना समाप्त हुई ।
डॉक्टर प्रणव पंड्या के अनुसार शुभम साधना अपने आपको जानने की साधना है इस साधना से व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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