भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण के धाम का वर्णन इस प्रकार हुआ है-
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।
उस परमपद को न सूर्य, न चन्द्र और न अग्नि ही प्रकाशित कर सकती है; और जिसको प्राप्त होकर जीव लौटकर (संसार में) नहीं आते, वही मेरा परमधाम है। उसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न अग्नि। जिसे प्राप्त कर मनुष्य पुन: (संसार को) नहीं लौटते हैं, वह मेरा परम धाम है।
“मेरा परम धाम न तो सूर्य या चंद्रमा द्वारा, न ही अग्नि या बिजली द्वारा प्रकाशित होता है। जो लोग वहाँ पहुँच जाते हैं वे इस भौतिक जगत् में फिर कभी नहीं वापस आते।
परमधाम, जिसे भी सद्गति, मोक्ष या आध्यात्मिक स्वर्ग के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू और जैन धर्म में एक आध्यात्मिक अवस्था का संकेत करता है। यह स्थान भगवान के निकटतम और सर्वोच्च परमात्मा के आवास के रूप में मान्यता प्राप्त करता है। इसे अविनाशी और परिपूर्ण आनंद का स्थान माना जाता है, जहां आत्मा अनन्य भक्ति, समाधि और आध्यात्मिक प्रगति के माध्यम से अपने भगवान या ईश्वर के साथ एकीकृत होती है।
परमधाम को प्राप्त करने के लिए धार्मिक धारणाओं और साधनाओं का पालन करना आवश्यक होता है। यह प्रक्रिया और मार्ग धार्मिक अनुयायों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण तत्व निम्नलिखित हो सकते हैं.
भक्ति: परमधाम को प्राप्त करने के लिए आनंदमय और आत्मिक भक्ति का विकास आवश्यक होता है। भक्ति धर्म में भगवान के प्रति आदर्श और प्रेम के रूप में मान्यता प्राप्त होती है।
कर्म: सत्कर्म, निष्काम कर्म और सेवा के माध्यम से आध्यात्मिक प्रगति करना महत्वपूर्ण है। कर्मयोग के माध्यम से भगवान की सेवा और समर्पण करने के द्वारा आत्मा प्रकट होती है।
ज्ञान: सत्य का ज्ञान प्राप्त करना, आत्मा की स्वरूपता और ब्रह्म की प्रकृति को समझना आवश्यक है। आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से आत्मा परमात्मा से जुड़ी होती है।
अध्यात्मिक अभ्यास: ध्यान, ध्यान करने की प्रक्रिया और ध्येय के साथ एकाग्रता के माध्यम से आत्मा और ईश्वर की अभिव्यक्ति में सामर्थ्य विकसित की जा सकती है।
संस्कार: पावन और नेक संस्कारों के माध्यम से आत्मा को पवित्र बनाए रखना आवश्यक है। दया, करूणा, त्याग, सामर्थ्य, संतोष और प्रेम के संस्कार आत्मा को अपने भगवान के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
परमधाम का प्राप्ति व्यक्ति की आध्यात्मिक साधना, निष्ठा और आचरण पर निर्भर करती है। धार्मिक ग्रंथों और गुरुओं की मार्गदर्शन के माध्यम से आत्मा परमात्मा के संग एकीकृत होती है और परमधाम को प्राप्त करती है।
परमधाम में प्रवेश करने का एक प्रमुख तत्व अनात्म-बोधन, आत्मा के निरंतर ध्यान और भगवान के साथ आत्मीय संवाद का अनुभव होता है। यह आनंद, शांति, प्रेम और मुक्ति का अवसर प्रदान करता है।
सिद्धयोग परमधाम को प्राप्त करने का एक सरल मार्ग है सिद्धि योग में श्री गुरु के संजीवनी मंत्र से शक्तिपात होता है आंतरिक कुंडलिनी जागरण से स्वता ही परमधाम तक पहुंचने की क्रिया संपादित होती है।
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