 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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श्राद्ध पक्ष पितृपक्ष मास आज से शुरू हो गया है। यह महीना पितरों के प्रति प्रेम और सम्मान व्यक्त करने के लिए है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर वापस आते हैं। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं।
श्राद्ध के दिन दान-पुण्य किया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से पितरों की प्रसन्नता होती है और आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि तर्पण करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है। यह भी माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान मृत रिश्तेदारों की आत्मा को शांति मिलती है। शाब्दिक रूप से पूर्वजों को जल चढ़ाने की विधि 'तर्पण' कहलाती है।
'तर्पण' कैसे करें?
दो पीतल के या स्टील के पात्र रखिये। एक में जल भरिए और उसमें काले तिल और दूध को मिला दीजिए। इसके बाद आप दोनों हथेलियों की अंजुली निर्मित करें और कुशा लेकर अपने पूर्वज का नाम लीजिए और उनका ध्यान करते अंजुली से पात्र के पानी को खाली वाले पात्र में डालिए। इस तरह कम से कम तीन बार कीजिए।
तर्पण करते हुए इन मंत्रों का जाप करना चाहिए..
तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। (जिसके नाम पर तर्पण कर रहे हैं उनका नाम और गोत्र का नाम पहले ले लें और फिर मंत्र का जाप करें).
पिता जी के लिए तर्पण में जल देने का मंत्र..
तर्पण के समय गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलाकर तीन बार पिता को जलांजलि देना चाहिए . जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों. फिर अपने गोत्र का नाम लेकर बोले, गोत्रे अस्मतपिता (पिता जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
दादा जी के लिए तर्पण में जल देने का मंत्र..
जल देते समय अपने गोत्र का नाम लेकर बोले, गोत्रे अस्मत्पितामह (दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
माता के लिए तर्पण में जल देने का मंत्र..
(गोत्र का नाम) गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
दादी के लिए तर्पण में जल देने का मंत्र..
(गोत्र का नाम लें) गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगाजल वा तस्मै स्वधा नमः,तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
प्रात:काल देवताओं की पूजा करें। दोपहर के समय पितरों की पूजा करें। अपने दैनिक भोजन में अपने पूर्वजों की पसंद की किसी वस्तु को अवश्य शामिल करें। और कौवे को जरूर खिलाएं। माता-पिता के लिए खाना बनाने के लिए लोहे की कड़ाही का प्रयोग न करें।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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