 Published By:बजरंग लाल शर्मा
 Published By:बजरंग लाल शर्मा
					 
					
                    
" पांच तत्व मिल मोहोल रच्यो है, तो अंत्रिख क्यों अटकानो ।
याके आसपास अटकाव नहीं , तुम जाग के संसे भानो ।।"
पृथ्वी जल तेज वायु और आकाश इन पांचों तत्वों को मिलाकर इस नश्वर ब्रह्मांड रूपी महल की रचना की गई है । इस महल का आधार क्या है ? किसके ऊपर यह महल खड़ा है ? इसके आसपास या ऊपर नीचे कोई सहारा तक नहीं है । किसके सहारे यह अंतरिक्ष में अटका हुआ है ?
हम जिस ब्रह्मांड में रहते हैं ऐसे-ऐसे अनेक ब्रह्मांड हैं , जिनकी गिनती नहीं की जा सकती है । प्रत्येक ब्रह्मांड के स्वामी नारायण हैं तथा प्रत्येक नारायण की नींद में ये अलग - अलग ब्रह्मांड बने है । प्रत्येक ब्रह्मांड के चारों तरफ अष्टावरण का घेरा है - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, और चित्त इनमें अंतिम तीन घेरे अहंकार के हैं ।
कोई भी जीव अपने ब्रह्मांड के बाहर नहीं जा सकता है । प्रत्येक ब्रह्मांड में चौदह लोकों के ऊपर विस्तृत अंतरिक्ष है उसमें चांद सूरज तारे तथा अन्य नक्षत्र घूमते रहते हैं ।
इस ब्रह्मांड के अंदर जो सूर्य है वह दिखने में बड़ा लगता है, और तारे इसकी तुलना में बहुत ही छोटे दिखाई देते हैं । जो सबसे छोटा तारा है वह भी इतने बड़े विशालकाय गैसों का पिंड हैं कि उनमें अनेकों सूर्य समा जाएं । परंतु वे इतने छोटे इस कारण दिखते हैं कि वे हमसे बहुत दूर हैं। सूर्य नक्षत्र हमारे सबसे पास का तारा है ।
सूर्य पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है । वहां से सूर्य का प्रकाश हमारे पास 8 मिनट में पहुंचता है । दूसरे तारे तो इतनी दूर है कि उनका प्रकाश हमारे पास तक पहुंचने में किसी को चार वर्ष और किसी को लाखों करोड़ों वर्ष लग जाते हैं । जबकि प्रकाश की गति एक सेकंड में लगभग तीन लाख किलोमीटर है ।
स्वप्न के अंतर्गत जो पांच तत्वों का महल खड़ा हुआ है उसके अंदर जो जीव उत्पन्न हुए हैं , इनको तो सपने के बाहर का ज्ञान नहीं हो सकता है । परंतु जो दृष्टा आत्मा है उसका शरीर स्वप्न का नहीं है । वह स्वप्न को देखने के लिए नींद के बाहर से आती है और बाहर जा सकती है । उसके द्वारा ही ज्ञात किया जा सकता है कि इस ब्रह्मांड की रचना का रहस्य क्या है ?
" सुन कि विध केती कहूं , ए इंड जाके आधार ।
नेत नेत केहेके फिरे , निगम को अगम अपार ।। "
इस शून्य मंडल का विस्तार कितना बताया जाए ? समस्त ब्रह्मांड का आधार ही वही है । वेद ने भी उसे नेति-नेति 'इसका अंत नहीं है' ऐसा कह कर उसे अगम एवं अपार बताया ।
बजरंग लाल शर्मा
 
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