कुण्डलिनी जागरण और एक्टिवेशन में क्या अंतर है.. अतुल विनोद
जागरण यानी पूर्णता की अवस्था, सक्रियता यानी अपूर्ण जागृति। कार को स्टार्ट करके उसमें बैठकर उसे चलाते हुए आगे की यात्रा कर पाने की क्षमता जागरण है। लेकिन कार को स्टार्ट करके उसे चलाना या बंद कर पाने में अक्षमता एक्टिवेशन है।
जब तक आप जागरण व सक्रियण या सक्रियकरण में अंतर नहीं समझेंगे आप सही रूप में आध्यात्मिक यात्री नहीं बन पाएंगे|
आप कृत्रिम ध्यान विधियों से अपने चक्रों या कुंडलिनी ऊर्जा को सक्रिय करके खतरा मोल ले सकते हैं| क्यूंकि कुडलिनी के तीन भाग होते हैं| हम अप्राकृतिक रूप से बलात साधनाओं के जरिये ऊर्जा के केन्द्रों को सामान्य से अधिक सक्रिय कर लेते हैं| यानी कुण्डलिनि के भौतिक रूप जो कि प्राण है उसे गतिमान कर देते हैं | ये ऊर्जा नियंत्रित नहीं होती क्यूँकि इसका चेतनात्मक भाग अब भी निष्क्रिय है|
कार स्टार्ट कर ली लेकिन ड्राइवर अभी भी सोया हुआ है| कुण्डलिनी की कार प्राण और मन है जबकि ड्राइवर आत्मा है| जब तक आत्मा रुपी गुरु इस ऊर्जा को अपने नियंत्रण में नहीं लेती इसे मन सम्भाल नहीं पायेगा| फिर मन व प्राण कहीं भी गति करेंगे| महायोग में आत्मा जागृत होकर कुण्डलिनी के सुप्त भाग प्राण व मन के सुप्त भागों को विधिपूर्वक योग आदि से जागृत करवाती है|
जैसे आपने किसी कृत्रिम ध्यान विधि से आज्ञा चक्र सक्रिय कर लिया, वह अपना खेल दिखाना शुरू कर देता है आवाजें, दृश्य, अनुभव आने लगते हैं। सिर में प्रेशर, दर्द, झनझनाहट, सपने। यानी चक्र एक्टिवेट हो गया पर इसका करोगे क्या? थर्ड आई खुल गयी बिना ड्राइवर के गाड़ी चालू कर दी। बस खड़े खड़े शोर करती रहेगी, ईंधन खत्म करेगी, चलाना तो आता नही तो जो भी करोगे उससे गाड़ी और बहकेगी, शोर करेगी सब किसी काम का नही।
कुंडलिनी का आत्म भाग (अभौतिक रूप) ड्राइवर है पहले वो जागृत हो और कुंडलिनी ही चक्रों को जागृत करे, क्योंकि उसे ही मालूम है चक्रों को एक्टिवेट करके उन्हें कंट्रोल करना ओर चलाना। इसे ही जागृति कहते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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