 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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चुप-साधन समाधि से श्रेष्ठ है; क्योंकि इससे समाधि की अपेक्षा शीघ्र तत्त्व प्राप्ति होती है। चुप-साधन स्वत: है, कृति साध्य नहीं है, पर समाधि कृति साध्य है। चुप होने में सब एक हो जाते हैं, पर समाधि में सब एक नहीं होते। समाधि में समय पाकर स्वतः व्युत्थान होता है, पर चुप-साधन में व्युत्थान नहीं होता।
चुप-साधन में वृत्ति से सम्बन्ध-विच्छेद है, पर समाधि में वृत्ति की सहायता है| 'चुप साधन' से आप सहज ही सहजा अवस्था में प्रतिष्ठित हो जायेगें। सहज अवस्था जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति (गाढ़ी निद्रा), मूर्छा आदि नहीं है। सुषुप्ति और सहज अवस्था में यह अन्तर है कि सुषुप्ति में हम बेहोश रहते हैं। जबकि सहज अवस्था में हम जाग्रत / सचेतन, होशपूर्ण रहते हैं।
सहजा अवस्था में अपनी सत्ता मात्र होने मात्र की ज्ञान दीप्ति / अनुभूति मात्र रहती है। इस प्रकार देखा जाए तो चुप होना नही है। चुप / मौन / ठहराव / विश्राम तो हमारा स्वभाव है। आत्मा कर्ता और भोगता नही है। कर्ता और भोगता प्रकृति है। आत्मा शरीर मन, बुद्धि आदि से युक्त न होने से असंग है। किन्तु मन, बुद्धि, शरीर आदि उसी की शक्ति से उत्पन्न तथा क्रियाशील होते हैं। 'चुप साधन' द्वारा यह धीरे-धीरे प्रकट होकर विलीन हो जाते हैं। तब मात्र आत्मा असंग रूप से रह जाती है। यही कारण है कि सहजावस्था स्वाभाविक है।
'चुप साधन' में यदि नींद आये तो भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिये। यदि निद्रा न आये तो केवल चुप रहना चाहिए। चुप रहने से अत्यधिक शक्ति उत्पन्न होती है। क्रिया करने से शक्ति का क्षय होता है। इसीलिये जब हम कार्य करते हैं। तो थक जाते हैं। सोने पर हममें ठहराव से पुनः शक्ति प्राप्त होती है। इस प्रकार क्रिया रहित होना / न करना ही परमात्मा का स्वरूप है। जो नित्य प्राप्त है। करने का प्रारम्भ और अन्त होता है। न करने का न प्रारम्भ है और न अन्त। इसलिए न करना नित्य है।
इसी को कबीर दास ने साधो! सहज समाधि भली कहा है। इसका साधन बाहर और भीतर से चुप होना है। कुछ न करने से सभी कुछ हो जाता है। 'चुप साधन' में भगवान तथा संसार किसी का भी चिंता न कर मात्र चुप / मौन रहना है। इसमें मन का निरीक्षण भी नही करना है। क्योंकि हम मन का निरीक्षण तभी करते हैं। जब हम मन से सम्बन्ध मांगते हैं। हमें 'चुप साधन' में मन की तरफ देखना ही नहीं है। यही अन्तिम साधन है। इसी से जीवन मुक्ति/सहज समाधि घटित होती है।
'चुप-साधन' का महत्व और प्रक्रिया-
'चुप-साधन' का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति, आत्मा के अद्वितीय स्वरूप की अनुभवना, और आत्मा और परमात्मा के एकता की प्राप्ति है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने मानसिक चिंतन को संकेतों, विचारों, और अंतर्मन के गहराईयों में डूबने के लिए प्रेरित किया जाता है।
चुप-साधन का मतलब है केवल शांति और चुप रहना नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक साधना है जिसका उद्देश्य आत्मा के अद्वितीय स्वरूप को पहचानना है। यह तरीका साधक को उसके अंतर्मन की गहराइयों में विचारों और भावनाओं की गहराइयों में जाने की अनुमति देता है, जिससे वह आत्मा की अद्वितीयता को समझता है.
'चुप-साधन' में अपने मानसिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है और उन्हें विचारों के द्वारा शांत किया जाता है. इसके लिए, साधक को ध्यान और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से अपने मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित करना होता है। वह अपने मानसिक चिंतन को एक स्थिति के बिना विचार किए चुप करने की कठिन प्रक्रिया का पालन करता है.चुप-साधन और समाधि के अंतर की व्याख्या
चुप-साधन और समाधि दोनों ही मानसिक प्रक्रियाएं हैं, लेकिन उनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर है:
1. स्वाभाविकता:
चुप-साधन: चुप-साधन एक प्राकृतिक, सामान्य स्थिति है, जिसे व्यक्ति अपने दिन-प्रतिदिन के कार्यों के दौरान भी प्राप्त कर सकता है. यह व्यक्ति के अंतर्मन की उपस्थिति होती है, जिसमें वह विचार और विचारों के बीच एक चैतन्य स्थिति का अनुभव करता है.
समाधि: समाधि एक गहरी ध्यान प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने मन को पूरी तरह से एक विशेष विषय पर समर्पित करता है। यह अत्यंत सामर्थ्य और अद्वितीय अनुभव की ओर जाने की कोशिश होती है.
2. साधन की स्वतंत्रता:
चुप-साधन: चुप-साधन एक व्यक्ति की इच्छा और सामर्थ्य के आधार पर चालित होता है. व्यक्ति इसे कभी भी और कहीं भी प्राप्त कर सकता है.
समाधि: समाधि अधिक नियमित और ध्यान की अभ्यास की आवश्यकता होती है. यह विशेष मार्गों, उपायों और गुरुओं के मार्गदर्शन में ही प्राप्त की जा सकती है.
3. अद्वितीयता:
चुप-साधन: चुप-साधन व्यक्ति को उसके मानसिक स्थिति में एक स्थिति का अनुभव कराता है, जो उसके विचारों और विचारों के बीच की असली अद्वितीयता को प्रकट करती है.
समाधि: समाधि एक अद्वितीय अनुभव है, जिसमें व्यक्ति की सभी भिन्नता और अलगाव समाप्त हो जाती है. यह अद्वितीय अवस्था का अनुभव होता है.
4. उद्देश्य:
चुप-साधन: चुप-साधन का प्राथमिक उद्देश्य अंतरंग शांति, स्वयं के साथ मिलन, और चित्त की स्थिति को नियंत्रित करना होता है.
समाधि: समाधि का प्राथमिक उद्देश्य आत्मा के परमात्मा के साथ एकीकरण और उच्च ज्ञान की प्राप्ति होती है.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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