Published By:धर्म पुराण डेस्क

क्या है धनतेरस का महत्व? क्यों होती हैं इससे दीपावली के पावन पर्व की शुरुआत, जानिए इतिहास

धनतेरस से दीपावली के पावन पर्व की शुरुआत का उल्लेख सतयुग से मिलने लगता है. कथा यह है कि दुर्वासा ऋषि ने स्वर्ग के राजा इन्द्र को फूलों की माला भेंट की। लेकिन, इन्द्र ने माला अपने हाथी ऐरावत के गले में डाल दी। ऐरावत ने उसे पैरों से कुचल दिया। इससे क्रोधित दुर्वासा ने इंद्र को श्राप दिया कि तीनों लोक श्रीहीन यानी लक्ष्मी हीन, हो जाएंगे। 

इसके बाद भगवान विष्णु के कहने पर देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया ताकि धरती पर फिर समृद्धि आए। समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले. कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत कलश लिए निकले।

धन्वंतरी अमरत्व यानी आरोग्य के देवता हैं। वे हाथ में पात्र लेकर समुद्र मंथन से निकले थे इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा समय के साथ, जुड़ गई। धनतेरस के दिन कुबेर की पूजा भी की जाती है। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। कुबेर लक्ष्मी जी के सेवक भी हैं। इस तरह वे धन के रक्षक हैं।

धन्वंतरि को हिंदू धर्म में देवताओं का वैद्य माना जाता है। वे एक महान चिकित्सक थे, जिन्हें देवपद प्राप्त हुआ। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वे भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र-मंथन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को लक्ष्मी प्रकट हुई थी। इसलिए दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है. 

इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था। इन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहते हैं, जिनकी चार भुजाएं हैं। ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किए हुए हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं में से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे में अमृत कलश लिए हुए हैं। इनकी प्रिय धातु पीतल माना जाती है, इसलिए धनतेरस के दिन पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा है। इन्हें आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। 

इनके वंश में ही दिवोदास हुए, जिन्होंने 'शल्य चिकित्सा' का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया, जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाए गए थे। सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ऋषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही 'सुश्रुत संहिता' लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) थे। 

दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गई।

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