वस्तुतः ओम को ही प्रणवः कहा जाता है। प्रणवः ईश्वर का वाचक है। प्रणवः के जप से अद्वितीय शक्ति प्राप्त होती है। कठोपनिषद में कहा है कि ओम का आलम्बन ही सर्वश्रेष्ठ आलम्बन है और परम आलम्बन है। इसका जप करने से क्रमशः चित्त के सभी मल दूर होते हैं और आत्मज्योति प्रदीप्त होती है। इसलिये इसका जप करना चाहिये और जप करते हुये यह बोध जाग्रत रखने का प्रयास करना चाहिये कि जो समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त सत्ता है, जो सर्वज्ञ सत्ता है, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी के ज्ञाता हैं और ज्ञानशक्ति की पराकाष्ठा जिनमें हुई है, जिनके ज्ञान का ऐश्वर्य अनंत है, किसी से तुलनीय नहीं है और जो श्रद्धापूर्वक अर्थ का मनन करते हुये जप करने पर परम कृपालु गुरू की तरह अनुग्रह करते हैं और भीतर प्रकाश देते हुये साधक को निरंतर उच्चतर चेतना स्तर की ओर ले जाते हैं और अंत में आत्मस्वरूप का बोध कराते हैं, वे परमगुरू सर्वव्यापी होने से इसी क्षण मेरे भीतर और बाहर सर्वत्र उपस्थित हैं और अपना अनुग्रह कर रहे हैं तथा मेरा समर्पण जितना पूर्ण होता जायेगा उतना ही मेरे भीतर आत्मज्योति प्रदीप्त होती जायेगी और आत्मज्ञान से मैं जगमग हो जाऊंगा। यह अडिग निष्ठा रखते हुये जप करे और जप का समय अपनी शक्ति और चित्त की सामर्थ के अनुसार बढ़ाता चला जाये। आगे का काम परमगुरू स्वयं करेंगे।
प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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