 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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पं. अजनी उपाध्याय
अस्त ग्रह क्या है- सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है। कोई भी ग्रह सूर्य से एक निश्चित अंश पर स्थित हो तो उसे अस्त माना जाता है। ग्रहों के अस्त होने का शाब्दिक अर्थ है कि ग्रह अपने राजा के इतने सन्निकट हो जाता है कि वह अपने राजा के तेज और ओज से ढक जाता है और क्षितिज पर दृष्टिगोचर नहीं होता है परिणामस्वरूप उसका प्रभाव नगण्य हो जाता है। अस्त ग्रह को कुपित और विकल भी कहा जाता है।
ग्रहों के अस्त होने के अंश- अस्त होने का दोष सभी आठ ग्रहों का होता है। सभी ग्रह सूर्य के निकट आने पर अस्त होते हैं। अस्त होने की स्थिति को अंशों के आधार पर निर्धारित किया जाता है अर्थात सूर्य से ग्रह के बीच एक निश्चित अंशों की दूरी रह जाने पर उस ग्रह के अस्त होने का दोष माना जाता है।
चन्द्रमा जब सूर्य से 12 अंशों के अन्तर्गत होता है तो अस्त माना जाता है। मंगल 70 अंशों पर, बुध 13° अंशों पर, बृहस्पति 11° अंशों पर शुक्र 9° अंशो पर और शनि 15° अंश की परिधि में आ जाने पर अस्त होते हैं। ये प्राचीन मान्यताएं हैं।
वर्तमान में कुछ विद्वानों का मत है कि ग्रह को तभी अस्त मानना चाहिए जब वह सूर्य से 3° अंश या इससे कम अंशों की दूरी पर स्थित हों अनुभव में यह तथ्य सत्य के काफी निकट है लेकिन इसका आधार यह मानना चाहिए कि जो ग्रह सूर्य से न्यूनतम अंशों से पृथक होगा उसे उसी अनुपात में अस्त होने का दोष लगेगा।
जो ग्रह सूर्य के बराबर अथवा उसके समीप अंशों पर होता है, उसे पूर्ण अस्त माना जाता है। सूर्य अंशात्मक युती वाला ग्रह परम अनिष्ट हो जाता है। शेष बातों में थोड़ा बहुत शुभत्व रहता है। जो ग्रह सूर्य में 8° अंशों की दूरी पर होता है, उसे आधा अस्त माना जाता है जो ग्रह सूर्य से 15° अंश की दूर पर होता है उसे पूर्ण उदय माना जाता है।
 
 
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