Published By:धर्म पुराण डेस्क

क्या वास्तव में होता है पुनर्जन्म?

गीता-2/20 में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण आत्मा की 'अमरता को कुछ इस प्रकार प्रकाशित कर रहे हैं-

न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। 

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

अर्थात- यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मती है और न मरती ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाली ही है; क्योंकि यह आत्मा अजन्मा, नित्य, सनातन और 'पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती। इसके अतिरिक्त पुराणादि विभिन्न शास्त्रों में आत्मा की अमरता एवं पुनर्जन्म को विविध कथाओं के माध्यम से 'प्रकाशित किया गया है। 

यही वे शास्त्रीय, शाश्वत व सनातन आधार हैं, जिनके कारण सनातन धर्म में आत्मा की नश्वरता व पुनर्जन्म में अटूट विश्वास है। यही वे आधार है, जिनके कारण सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का सिर्फ शरीर मरता है, उसकी आत्मा नहीं और उस जीवात्मा के द्वारा पूर्वजन्म में किए गए शुभ-अशुभ, पाप-पुण्य, भले-बुरे आदि कर्मों के अनुसार ही मृत्यु के पश्चात उसे नूतन शरीर, नूतन जीवन प्राप्त होता है, सुख-दुःख आदि की नई परिस्थितियाँ व वातावरण आदि प्राप्त होते हैं। जब जीवात्मा मृत्यु के बाद पुनः नवीन शरीर धारण करती है, तब उसे ही पुनर्जन्म कहते हैं।

शास्त्रों से अनभिज्ञ होने के कारण कई लोग आत्मा की अमरता व पुनर्जन्म को महज अंधविश्वास मानते हैं, पर समय-समय पर विभिन्न कालखंडों में हमारे बीच कुछ ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जिनसे पुनर्जन्म की धारणा सच हुई दिखती है। कुछ एक ऐसी कहानियां हैं, घटनाएं हैं, जो ये सिद्ध करती हैं कि आत्मा एक जीवन यात्रा पूर्ण होने के बाद पुनः नई यात्रा शुरू करती है।

ऐसी ही एक घटना जोधपुर में रहने वाले रेलवे कर्मचारी ..

भगवती शरण की बेटी मंजुलता की थी। उसने तीन वर्ष की उम्र में ही कहना शुरू कर दिया कि उसके एक नहीं, दो घर हैं। एक जोधपुर में तो दूसरा भीलवाड़ा में। पहले तो किसी ने उस 3 वर्ष की बच्ची की बातों पर ध्यान नहीं दिया। एक दिन जब भगवती शरण अपने भानजे की शादी में शामिल होने भीलवाड़ा गए तो मंजुलता भी उनके साथ गई। मंजुलता अब 10 वर्ष की हो गई थी। भीलवाड़ा पहुँचते ही उसने वहाँ के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बातें करना प्रारंभ कर दिया। यह सब सुनकर उसके पिता आश्चर्यचकित थे।

मंजु अपने पिता को कभी-कभी भैया भी कह दिया करती थी। जब वे अपनी बहन के घर पहुंचे तो उस घर के बारे में कई ऐसी बातें मंजुलता ने बताई, जिनके बारे में सिर्फ उनकी बहन स्नेहा ही जानती थी। बाद में ज्ञात हुआ कि सन् 1960 में स्नेहा की मृत्यु छत से गिरने से हो गई थी और शायद मंजुलता, स्नेहा का ही पुनर्जन्म है।

इसी तरह सन् 1965 में हिलसा में रहने वाले नंदराघव के घर एक पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम रखा गया नंदन। जब नंदन पाँच वर्ष का हुआ तो उसे अपने पूर्वजन्म की बातें याद आने लगीं। उसने बताया पूर्वजन्म में उसका नाम राहुल था और उसका घर बिहार शरीफ में था। पहले तो घरवालों ने उसकी बातों को नजरअंदाज किया, लेकिन जब वह बार-बार अपने पूर्व जन्म के बारे में बातें करने लगा तो उसके पिता ने सच्चाई का पता लगाने के लिए छानबीन करना शुरू कर दिया।

नंदन के बताए स्थान पर बिहार शरीफ जाकर उन्होंने पता किया। उन्हें पता चला कि बिहार शरीफ में मुकुंद शर्मा रहते हैं, वे उस शहर के नामी वकील थे। उनके बड़े बेटे राहुल की मृत्यु सन् 1964 में तब हो गई थी, जब वह बीस साल का था। 

नंदन ने बताया कि उस जीवन में उसकी मृत्यु के दिन दशहरा का मेला लगा था और वह अपने दोस्तों के साथ मेला देखने निकला था कि तभी वह सामने से आ रही किसी गाड़ी के नीचे आ गया। उसने कहा कि मेरे दोस्तों ने मेरे घरवालों को बुलाया, मुझे अस्पताल ले जाया जाने लगा, पर रास्ते में ही मेरी मौत हो गई। यह कहानी सुनकर मुकुंद शर्मा भी अवाक रह गए; क्योंकि यह एक सच्ची घटना थी और उनके बड़े बेटे राहुल की मृत्यु उसी तरह की दुर्घटना में हुई थी। 

ऐसी ही एक घटना मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में रहने वाले दयाशंकर मिश्र की बेटी सुप्रिया की है। जब सुप्रिया 7 वर्ष की हुई, तभी से वह कहने लगी कि उसका असली घर रीवा में है और उसके तीन बेटे भी हैं। बार-बार जिद करने पर उसके पिता उसे रीवा, उस स्थान पर ले गए, 'जहां वह अपना घर बताती थी। वहाँ पहुँचते ही सुप्रिया अपने घर को पहचान गई। उसके पूर्वजन्म के पति वहाँ बैठे थे। सुप्रिया जाते ही उन्हें पहचान गई, जब उसके तीनों बेटे 'सामने आए तो उन सबको उसने नाम लेकर पुकारा व उनके बारे में ऐसी कई बातें बताईं, जिन्हें और कोई नहीं जानता था। स्पष्ट था कि सुप्रिया ही उन बच्चों की माँ का पुनर्जन्म है।

पुनर्जन्म की ऐसी ही चौंका देने वाली कहानी- न्यूयॉर्क में रहने वाली 30 वर्ष की जूलिया की है। जूलिया एक सुप्रसिद्ध नृत्यांगना थी। बिना कोई प्रशिक्षण पाए ही वह पाँच वर्ष की अवस्था से ही स्वयं ही नृत्य करने लगी थी। 

धीरे-धीरे स्वयं के अभ्यास से ही वह ख्याति प्राप्त नृत्यांगना बन गई। उसे बार-बार ऐसा लगता था कि वह पूर्व जीवन में भी एक जानी-मानी नृत्यांगना थी और उसका नाम लूसिया था। ऐतिहासिक साक्ष्यों को तलाशने पर पता चला कि सचमुच इसी ही नाम की एक नृत्यांगना थी, जिसकी मृत्यु समुद्र में डूब जाने से हो गई थी।

पूर्वजन्म की इन घटनाओं, कहानियों को सुनकर बस, योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गीता - 2/12 में अर्जुन को कहा गया वह शाश्वत सत्य याद आने लगता है-

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।

न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥

अर्थात- न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।


 

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