Published By:धर्म पुराण डेस्क

कैसी होनी चाहिए शासक की जीवन चर्या

आचार्य चाणक्य के सूत्र और शासक -सरयूसुत शासन की प्रतिष्ठा और जनकल्याण में शासक की जीवन चर्या का बहुत महत्वपूर्ण रोल है..!

आचार्य चाणक्य ने शासक की जीवन चर्या के लिए जो सूत्र दिए हैं, उनमें काम और क्रोध को शासक का परम शत्रु बताया गया है। इंद्रियों पर संयम के साथ ही शासक को ज्ञान तथा अनुभव की दृष्टि से वृद्ध एवं विद्वान व्यक्तियों की संगत में रहकर अपनी बुद्धि का सतत विकास करना चाहिए। चाणक्य के अर्थशास्त्र के अनुसार, राज्य का कल्याण चाहने वालों और समाज के आदर्श लोगों को विद्वानों तथा समर्पित अधिकारियों को सम्मानित करना भी शासक की जीवन चर्या में शामिल होना चाहिए। आचार्य चाणक्य ने पर-स्त्री गमन पर- द्रव्य हरण तथा जीव- हत्या के रूप में हिंसा के दोषियों का परित्याग करने की शासक को शिक्षा दी है। 

आचार्य चाणक्य ने शासक को अधिक सोने, प्रशासनिक कार्यों को करते समय ऊंघने, वेशभूषा के प्रति सतर्क रहने तथा अनुचित आचरण करने से बचने को महत्वपूर्ण बताया है। शासक को अन्यायपूर्ण कार्यों को करने से भी सदैव बचना चाहिए। शासक के आचरण की शुद्धता पर चाणक्य के अर्थशास्त्र में काफी जोर दिया गया है। आचार्य चाणक्य ने धर्म, अर्थ और काम के संतुलित उपयोग को शासन की अच्छी जीवनचर्या बताया है। इन तीनों में से किसी एक का सामान्य मात्रा से अधिक असंतुलित उपयोग न केवल शासक के लिए, बल्कि उसके परिवार के सदस्यों के लिए भी अनर्थकारी एवं दुष्फल प्रदायक सिद्ध होता है। 

शासक को भोग और त्याग में संतुलन बनाए रखना ही हितकर है। संतुलन बिगड़ जाने पर राज्य में अव्यवस्था और अराजकता भी हो सकती है, जिससे शासक को सदा बचना चाहिए आचार्य चाणक्य ने धर्म, अर्थ और काम में अर्थ की ही प्रधानता बताई है। धन और काम भी धन पर ही निर्भर हैं। धन से ही धर्म कार्यों का निर्वहन और कम की पूर्ति संभव हो सकती है। आज लोकतांत्रिक सरकारें वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही हैं। कोई भी सरकार शासन संचालन के लिए बिना कर्ज लिए अपनी आय और व्यय को पूरा नहीं कर पा रही हैं। शासकों को राज्य में धन अर्जन की व्यवस्थाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहिए।

 जहां-जहां से भी न्यायोचित धन शासन को मिलता है अथवा मिल सकता है, उन स्रोतों पर सतत निगरानी रखना आवश्यक है। आज स्थिति यह है कि शासन में वित्तीय संसाधन कम हो रहे हैं। आय के नए साधन बनाए नहीं जा रहे हैं। पुराने जो साधन हैं, उन्हीं पर ज्यादा टैक्स लगाया जा रहा है। ज्यादा टैक्स भी अच्छे शासन की निशानी नहीं है। आज पेट्रोल और डीजल पर इतना अधिक टैक्स बढ़ गया है कि जनता असहज महसूस कर रही है ।पेट्रोल डीजल ऐसी वस्तु हैं, जिनके कारण दूसरे क्षेत्रों में भी महंगाई बढ़ती है। आचार्य चाणक्य धन को सबसे आवश्यक बता रहे हैं तो इसका आशय यह है कि आम लोगों से सरकार कर वसूली न्यायोचित ढंग से करें। 

कर वसूली में ढिलाई और अराजकता भी कई बार शासन को नुकसान पहुंचाती है। जो लोग इसके लिए जिम्मेदार होते हैं उन पर कड़ी निगरानी नहीं हो तो राज्य को मिलने वाले कर में लीकेज होता है और सरकार को नुकसान होता है। किसी भी शासक को अर्जन के साथ धन के सही उपयोग पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जनता का जो धन किसी भी स्वरूप में खर्च किया जा रहा हो, पर बहुत बारीकी से सोच-विचार होना चाहिए। आज इसके ठीक विपरीत हो रहा है। 

जनता के धन को हर व्यक्ति अपना धन समझकर उपयोग करने की कोशिश करता है। कई बार यह उपयोग अराजक ढंग से होता है और इसके कारण सरकारें वित्तीय संकट में फंस जाती हैं । अंततः इसका नुकसान आम लोगों को ही होता है। आचार्य चाणक्य ने शासक की जीवन चर्या में एक और महत्वपूर्ण बात कही है कि शासक को अपने वरिठों और सचिवों को यह अधिकार देना चाहिए कि वे किसी भी अनर्थकारी और अनुचित कार्य को रुकने का साहस कर सकें। अगर शासक अपने सचिवों को उसे रोकने का अधिकार नहीं देता तो व्यवस्था चरमराना सुनिश्चित है। आज यही हो रहा है किस शासकों के सचिव, प्रमुख सचिव और मुख्य सचिव मुंह-देखी बात करते हैं। अच्छे पदों पर बने रहने के लिए शासकों की गलत और जनविरोधी बातों में भी हां में हां मिलाते हैं। इससे सरकार की प्रतिष्ठा को प्रभावित होती है। 

यह शासक की बुद्धिमत्ता है कि अपने शासन में ऐसा वातावरण बनाए कि सचिवों और अन्य किसी भी जागरूक व्यक्ति को किसी भी अनर्थकारी कार्य को रोकने के लिए वे शासक को साहस के साथ सुझाव दे सकते। यद्यपि यह कठिन है क्योंकि शासक जब पद पर बैठता है तब उसे ऐसा लगता है कि शायद उससे बुद्धिमान कोई है ही नहीं है। वह अपने शासन में आचरण भी चिलम से करता है। आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र और हमारे दूसरे शास्त्रों में जो बातें हजारों साल पहले कही गई हैं, उनका पालन करने की बजाय आज तमाम तरह की घोषणा संगोष्ठी में विशेषज्ञ करके जाते हैं जो कि हमारे शास्त्रों में स्पष्ट रूप से लिखी हुई है। कम से कम उनका तो पालन किया ही जाना चाहिए ताकि जन सामान्य को बेहतर शासन मिल सके। आचार्य चाणक्य ने बताये मंत्रियों के ये गुण |आचार्य कौटिल्य के सूत्र मंत्री पास या फेल?

 

 

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