 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जब पांडव वन में रहते थे, तब एक दिन अकस्मात् वायु ने एक दिव्य सहस्रदल कमल लेकर द्रौपदी के सामने डाल दिया। उसे देखकर द्रौपदी बहुत प्रसन्न हो गयी और उसने भीमसेन से कहा कि 'वीरवर! आप ऐसे बहुत से कमल ला दीजिये ।'
द्रौपदी की इच्छा पूर्ण करने के लिये भीमसेन वहां से चल पड़े। जब वे कदलीवन में पहुँचे, तब वहाँ उनकी हनुमान जी से भेंट हो गयी। उन दोनों की आपस में कई बातें हुईं।
अंत में हनुमान जी ने भीमसेन से वरदान मांगने के लिये आग्रह किया तो भीमसेन ने कहा कि 'मेरे उपर आपकी कृपा बनी रहे'।
इस पर हनुमान जी ने कहा कि 'हे वायुपुत्र ! जिस समय तुम बाण और शक्ति के आघात से व्याकुल शत्रुओं की सेना में घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपनी गर्जना से उस सिंहनाद को और बढ़ा दूंगा।
इसके सिवाय अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठकर मैं ऐसी भयंकर गर्जना किया करूँगा, जो शत्रुओं के प्राणों को हरने वाली होगी|
 
 
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