जब पांडव वन में रहते थे, तब एक दिन अकस्मात् वायु ने एक दिव्य सहस्रदल कमल लेकर द्रौपदी के सामने डाल दिया। उसे देखकर द्रौपदी बहुत प्रसन्न हो गयी और उसने भीमसेन से कहा कि 'वीरवर! आप ऐसे बहुत से कमल ला दीजिये ।'
द्रौपदी की इच्छा पूर्ण करने के लिये भीमसेन वहां से चल पड़े। जब वे कदलीवन में पहुँचे, तब वहाँ उनकी हनुमान जी से भेंट हो गयी। उन दोनों की आपस में कई बातें हुईं।
अंत में हनुमान जी ने भीमसेन से वरदान मांगने के लिये आग्रह किया तो भीमसेन ने कहा कि 'मेरे उपर आपकी कृपा बनी रहे'।
इस पर हनुमान जी ने कहा कि 'हे वायुपुत्र ! जिस समय तुम बाण और शक्ति के आघात से व्याकुल शत्रुओं की सेना में घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपनी गर्जना से उस सिंहनाद को और बढ़ा दूंगा।
इसके सिवाय अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठकर मैं ऐसी भयंकर गर्जना किया करूँगा, जो शत्रुओं के प्राणों को हरने वाली होगी|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024