Published By:धर्म पुराण डेस्क

जब जॉन्डिस पहुंच जाए दिमाग में

नवजात शिशुओं में होने वाला पीलिया एक आम समस्या है और कई बच्चों को इससे गुजरना पड़ता है।

यह समस्या सही इलाज और थोड़ी सी सावधानी के साथ आमतौर पर एकदम ठीक हो जाती है लेकिन यदि इलाज न हो या कोताही बरती जाए तो यह गंभीर और जानलेवा भी हो सकती है।

कार्निटस की समस्या:

नवजात शिशुओं में पीलिया का होना एक बहुत ही सामान्य बात है। आंकड़ों की मानें तो करीब 80 प्रतिशत नवजात इस समस्या से गुजरते हैं। आमतौर पर साधारण इलाज और देखभाल से बच्चे इस समस्या से उबर जाते हैं लेकिन इसे नजरअंदाज करना घातक हो सकता है। 

कार्निटस की स्थिति इसी का उदाहरण है। नवजात शिशुओं में बिना इलाज के गंभीर हो चुके पीलिया के कारण या रक्त में बिलीरुबिन नामक पिगमेंट की मात्रा अत्यधिक हो जाने से दिमाग को पहुंचने वाली क्षति ही कार्निटस कहलाती है। इसे एक्यूट बिलीरुबिन एन्सेफ्लोपैथी भी कहा जाता है। 

यही कारण है कि पीलियाग्रस्त होने वाले नवजातों को लेकर सतर्कता रखने को कहा जाता है। इस स्थिति में बिलीरुबिन का स्तर इतना ऊंचा हो जाता है कि वह दिमाग तक फैल कर सेंट्रल नर्वस सिस्टम के ऊतकों को क्षतिग्रस्त कर देता है।

पीलिया के मुख्य लक्षण:

यूं जॉन्डिस के कई लक्षण बड़ों और बच्चों में समान हो सकते हैं लेकिन मुख्य तौर पर नवजात शिशुओं में पाए जाने वाले पीलिया के कुछ प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं।

● चेहरे का पीला या नारंगी रंग का होना तथा आंखों और मसूड़ों का सफेद पड़ना।

● सोने या सो कर उठने में थोड़ी परेशानी होना।

● पेशाब की मात्रा का घट जाना या बहुत गहरे रंग की पेशाब होना।

● स्तनपान करने में दिक्कत आना, बोतल से दूध पीने में परेशानी होना।

● हलकी घबराहट, बेचैनी और फिर चुप होने में मुश्किल आना, आदि।

कई बार यह भी हो सकता है कि नवजात या थोड़ा बड़ा शिशु चेहरे के पीलेपन के अलावा कोई लक्षण ही प्रकट न करें। ऐसे में डॉक्टर से राय अवश्य लें। पीलिया की स्थिति गंभीर होने पर चेहरे पर रहने वाला पीलापन शरीर के बाकी हिस्सों तक भी फैलने लगता है।

कार्निटस के लक्षण:

गंभीर पीलिया और कार्निटस की स्थिति में लक्षण भी गंभीर हो जाते हैं। इसके आम लक्षणों में शामिल हैं ..

● अकड़ा हुआ, निस्तेज या पिलपिला शरीर। 

● तेज-तीखी आवाज में निरंतर रोना या चिल्लाना।

● आंखों का अजीब तरह से घूमना या अनियंत्रित होना। 

● शरीर का धनुष की तरह हो जाना जिसमें सर, गर्दन और एड़िया पीछे की तरफ मुड़ जाएं और बाकी शरीर आगे की तरफ इसके अलावा दौरे पड़ना। 

● बच्चे के सिर पर आगे की और मुलायम सा उभार दिखने पर इसे नजरअंदाज न करें बल्कि तुरंत चिकित्सक से सलाह लें।

वजहें जो है बीमारी के पीछे:

इस समस्या के पीछे आमतौर पर जो कारण होते हैं, उनमें शामिल हैं- बच्चे में लिवर का ठीक से विकसित न हो पाना, लिवर की बीमारी या लिवर का क्षतिग्रस्त होना, लाल रक्त कोशिकाओं का नष्ट होना जो कि अक्सर बच्चे और मां के रक्त समूह के भिन्न होने के कारण भी हो सकता है। 

प्रीमैच्योर बर्थ- विशेषकर 37 हफ्तों के पहले ही बच्चे का जन्म हो जाना, किसी विशेष सिंड्रोम की वजह से शरीर में बिलीरुबिन का बहुत अधिक उत्पादन या बाइल डक्ट में आने वाला कोई अवरोध आदि। 

ये वे कारण हैं जो गंभीर पीलिया और कार्निटस की स्थिति का कारण बन सकते हैं। इनके अलावा कुछ और भी स्थितियां हैं जो कार्निटस की आशंका को और बढ़ा सकती हैं। इनमें जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना, सेप्सिस, मेनेंजाइटिस, विशेष प्रकार के एंजाइम की कमी आदि शामिल हैं

आगे भी हो सकती है समस्या:

कार्निटस की स्थिति न केवल गंभीर होती है बल्कि इसके परिणाम आने वाले कई सालों तक भी नजर आ सकते हैं। शोध बताते हैं कि जिन नवजातों में यह स्थिति बनती है उनमें उम्र बढ़ने और वयस्क होने के बाद भी कुछ समस्याएं आ सकती हैं। इन समस्याओं में सम्मिलित हैं

■ श्रवण क्षमता का खोना या सुनने में परेशानी। 

■ दिखाई देने में समस्या।  

■ अविकसित दांत और जबड़े की हड्डी। 

■ दिमाग को क्षति पहुंचने के कारण होने वाले मूवमेंट डिसऑर्डर्स। 

■ डिस्लेक्सिया सहित बौद्धिक या विकास संबंधी अन्य समस्याएं।  

■ धब्बे वाले दांत, मिर्गी, आदि। 

इलाज है संभव:

पीलिया के संदर्भ में इलाज के लिए बच्चा कितने घंटे की उम्र का है और उसका बिलीरुबिन स्तर कितना है, इस बात को मुख्य तौर पर ध्यान में रखा जाता है। 

साधारण पीलिया के मामलों में बच्चे को बहुत सामान्य इलाज की जरूरत होती है और वह घर पर भी डॉक्टर की सलाह से किया जा सकता है लेकिन कार्निटस की स्थिति में इलाज हॉस्पिटल में ही किया जाना आवश्यक होता है। 

कार्निटस से पीड़ित नवजातों को इन्क्यूबेटर में विशेष प्रकार की लाइट्स में उनकी आंखों को कवर करके रखा जाता है। इन बच्चों को अधिक दूध या फॉर्मूला मिल्क की आवश्यकता भी होती है और कई बार इनके गले में फीडिंग ट्यूब भी डाली जाती है। 

ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता भी हो सकती है। इसके अलावा समस्या की तीव्रता और लक्षणों के आधार पर फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, एजुकेशनल कोचिंग, ऑर्थोपीडिक डिवाइसों का उपयोग, दवाइयों का उपयोग आदि भी अपनाया जाता है। 

जरूरी यह है कि तुरंत इलाज की ओर बढ़ा जाए क्योंकि पीलिया के गंभीर मामलों को कार्निटस में बदलने में 24 घंटे से भी कम का समय लग सकता है। इसलिए सर्तकता रखनी बहुत जरूरी है।


 

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